जन्मतिथि: 02 फरवरी 1961, हिसार।
पिता प्रो ओमप्रकाश
माता: श्रीमती अमरलता
पति: प्रो राजेन्द्र कुमार गम्भीर
शैक्षिक योग्यता: एम० ए० (गोल्ड मेडलिस्ट), एम० फिल०, पी-एच डी (सितार वादन)।
शिक्षण अनुभव: 34 साल।
सम्मान पुरस्कार : 1. सात वर्षों तक निरंतर हरीवल्लभ संगीत सम्मेलन में स्वर्ण पदक. 2. राष्ट्रीय सांस्कृतिक अवार्ड (1979), 3. लार्यस क्लब, जालंधर द्वारा सितार वादन के लिए सम्मान (1980), ऑस्ट्रेलियन डेलीगेट्स द्वारा विशेष सम्मान (1981), 5. पूर्व प्रधानमंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल द्वारा महिला एस डी कॉलेज, जालंधर में अवॉर्ड ऑफ ऑनर (1988), 6. श्री बाबा हरिवल्लभ संगीत महासभा, जालंधर (पंजाब) में मल्हार उत्सव में विशेष सम्मान (2007), 7. अंतरराष्ट्रीय यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया, रोहतक द्वारा सम्मानित (2009), 8. स्वतंत्रता दिवस पर शिक्षा मंत्री, हरियाणा सरकार द्वारा सम्मानित (2010). 9. आकाशवाणी द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत वाद्य में 'ए' ग्रेड (2011), 10. हरियाणा ललित कला संस्थान द्वारा कर्मभूमि सम्मान (2011), 11. बेस्ट टीचर अवॉर्ड (2010-2011). 12. दैनिक भास्कर महिला पुरस्कार (2012). 13. संगीत सभा, पठानकोट (पंजाब) द्वारा सम्मानित (2013), 14. दैनिक जागरण द्वारा सम्मानित (2013), 15. श्रीहित हरिवंश संगीत सौरभ सम्मान (2013) श्रीहित अंबरीष महाराज द्वारा, 16. माँ दयावंती वेल्फेयर सोसाइटी, हिसार द्वारा हरियाणा गौरव अवार्ड (2015), 17. सितार सी डी लण्डन (यू० के०) द्वारा गोडयीयस रेडियो केन्द्र से प्रसारित की गई (2015), 18. चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा इण्टरनेशनल सितारिस्ट अवॉर्ड (2017), 19. श्रमिका श्री सम्मान (2017), 20. राष्ट्रीय पत्रिका "सांझी सोच" हिसार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान (2017), 21. मनु मुक्त मानव ट्रस्ट द्वारा नेशनल अवॉर्ड (2018), 22. बेस्ट ऑफ द बेस्ट नेशनल अवॉर्ड वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु द्वारा (2018), 23. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हरियाणा के राज्यपाल श्री सत्यदेव नारायण आर्य द्वारा नारी सशक्तिकरण स्टेट अवॉर्ड (2019)
संगीत, गायन, वादन तथा वादन तीनों ललित कलाओं को समुच्य है। इन तीनों का समन्वय एक दूसरे में इस प्रकार है कि इन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता किन्तु फिर भी इन तीनों कलाओं का अपना-अपना, स्वतन्त्र अस्तित्व हैं। जहाँ ये कलाएँ एक दूसरे के साथ मिलकर उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हैं वहीं एकल प्रस्तुति में भी नित-नवीन आयाम स्थापित करती है। इसी श्रृंखला में अपनी-अपनी कलाओं को उत्कृष्ठता के चरम तक पहुँचाने तथा अपनी विशिष्टता को दर्शाने के लिए घराना परम्परा का उदय हुआ। तीनों कलाओं में घराना-परम्परा का महत्त्व माना जाता है। घरानों ने अपनी कला को शिष्यों के माध्यम से शिखर तक पहुँचाया। यही कारण है कि गुरु-शिष्य परम्परा के संवर्धन में घरानों की भागीदारी सम्पान के योग्य एवं प्रशंसनीय है।
डॉ० रेणुका गम्भीर, सितार की एक प्रतिभाशाली तथा उत्कृष्ट वादन शैली का प्रतिनिधित्व करती है। यह कमठ तथा संगीत को समर्पित महिला हैं। इन्होंने बचपन से ही सितार वादन के क्षेत्र में कुछ कर दिखाने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। अर्जुन की भाँति इन की दृष्टि सदैव अपने लक्ष्य पर ही केन्द्रित रही जिसका सुखद परिणाम आज सबके सम्मुख है। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए तथा परिस्थितियाँ भी इसके अनुकूल न थी फिर भी धैर्य और संयम का परिचय देते हुए इन्होंने कभी अपने लक्ष्य की पकड़ को ढीला नहीं होने दिया। डॉ० रेणुका ऐसी सौभाग्यशाली महिला है जो संगीत अपनी गूदड़ी से ही लेकर उत्पन्न हुई। इन्हें एक नहीं अपितु तीन-तीन गुरुओं का शिष्यत्व प्राप्त हुआ है तथा आज वादन की बुलन्दियों को छू रही है।
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