परम पूज्य प्रातः स्मरणीय ब्रह्मलीन सद्गुरुदेव स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज के चरण कमलों में कोटि कोटि प्रणाम।
गुरुदेव स्वामी शिवोम् तीर्थ जी महाराज के प्रति श्रध्दा-समर्पण भाव रखने वाले साधकों के लिए एक ऐसी पुस्तक का प्रकाशन किया गया है जिसमें गुरुदेव की सभी पुस्तकों से अमृत-वाणी स्वरुप सार-तत्व को संग्रहीत किया गया है। वर्तमान समय में जीवन की व्यस्तता को देखते हुए, जिन के पास समय का अभाव है उनके लाभार्थ गुरुदेव की वाणी को, दिन में कम से कम एक पैराग्राफ के रुप में उस का अध्ययन तथा उस पर चिंतन-मनन की दृष्टि से यह पुस्तक सुविधा जनक रहेगी। अतः वर्ष के ३६५ दिनों के लिए इस अनमोल पुस्तक से साधकों को गुरुदेव के अमृत वचनों को पढ़कर हृदयंगम करने का सुअवसर प्राप्त होगा। गुरु महाराज द्वारा लिखी गई पुस्तकों का पूर्ण रुपेण अध्ययन करने के लिए यदि आप समय नहीं दे सकते तो, दिन में कम से कम एक पैराग्राफ तो पढ़ ही सकते हैं। साधकों, पाठकों की आध्यात्मिक उन्नति के निमित्त गुरुदेव ने बहुत परिश्रम करके इतनी सारी पुस्तकों को लिखा है। इसलिए हम साधक वर्ग का यह कत्तर्व्य बनता है कि इन अमूल्य पुस्तकों से लाभ उठाएँ।
शक्तिपात् परंपरा तथा शक्त्तिपात् साधन के लिए गुरुदेव द्वज (ब्रह्मलीन परम गुरुदेव स्वामी विष्णुतीर्थ जी महाराज एवं ब्रह्मलीन गुरुदेव स्वामी शिवोम् तीर्थ जी महाराज) ने, शक्तिपात् संबंधित विषय का बहुत ही सरल ढंग से वर्णन किया है। शायद ही कहीं अन्यत्र शक्तिपात् के बारे में इतना साहित्य देखने को मिलेगा। शक्तिपात् दीक्षा से दीक्षित साधकों के लिए यह हमारे गुरुओं की महान अनुकंपा है। जो साधक भी नहीं हैं वे भी गुरुदेव द्वारा लिखित हृदय मंथन तीनों भाग पढ़कर बहुत लाभान्वित हो रहे हैं। कई पाठकों-साधकों के फोन आते है कि हम अध्यात्म के ग्रंथ तो बहुत पढे मगर हृदय मंथन जैसी पुस्तक पहले कभी नहीं पढे। हृदय मंथन के तीनों भाग पढ़कर पता चला कि साधक बनना कितना कठिन काम है, साधक का जीवन कैसा होना चाहिए आदि।
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