इस "श्री कृष्ण चरित मानस" महाकाव्य के रचयिता स्वयं हम सबके पिता श्री हैं। अपने पूर्वजों और माता-पिता के प्रति तो प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा अगाध होनी ही चाहिए अन्यथा वह सन्तान अतीव भाग्यहीन है जो माँ-बाप के प्रति अनन्य भाव न रखे । हमारे पिता जी एक अच्छे विद्वान्-पण्डित और धर्म प्रचारक सुधी वक्ता हैं साथ-साथ एक महाकवि भी, इससे अधिक गौरव की बात हम लोगों के लिए और क्या हो सकती है । हम सब ऐसे पिता को पाकर धन्य हैं। जिन्हें पाकर हमारा कुल कृतार्थ हुआ और जिन्होंने हम लोगों के साथ-साथ अपने पूर्वजों का भी गौरव बढ़ाया है, ऐसे मेरे पिताजी अवश्य चिरस्मरणीय एवं हमारे आदर्श रहेंगे ।
किसी वस्तु या सत्साहित्य के सृजन में कठोर तप, निष्ठा, रुचि, पुरुषार्थ और साथ-साथ विद्या-विवेक की आवश्यकता होती है, इसके बिना कोई नवल सृजन नहीं हो सकता । हम सब अपने पूज्य पिताजी के परिश्रम और निष्ठा पर बलिहारी हैं कि जिन्होंने अथक भगीरथ प्रयास करके ऐसे महाकाव्य की रचना की। आशा है सुकृती सज्जन इसे अवश्य स्वीकारेंगे ।
ईश्वर की कृपा से हरप्रसाद चन्द्रकला देवी जन कल्याण ट्रस्ट के अन्तर्गत "निर्भीक प्रकाशन" द्वारा अनेक पुस्तकों को प्रकाशित किया जा चुका है। पं० देव नारायण तिवारी "निर्भीक” रचित यह श्री कृष्ण चरित मानस प्रकाशित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है एवं इसके साथ ही उन सभी दानी दाताओं के प्रति पुनः आभार व्यक्त कर रहा हूँ कि जिन्होंने अपना पुनीत सहयोग ट्रस्ट को देकर मेरे प्रकाशन कार्य को सुगम कर दिया है और मैं अनेक ग्रन्थों को प्रकाशित कर पाया हूँ ।
आज यह जन मन भावन पतित पावन ग्रन्थ 'श्रीकृष्ण चरित मानस' प्रकाशित करते हुए अपने को गौरवान्वित समझ रहा हूँ। आशा है पं० देव नारायण तिवारी "निर्भीक” की यह कृति भी पूर्व कृतियों की भांति बल्कि उनसे भी अधिक जन मन रञ्जक और भक्ति भाव से ओत प्रोत होकर साहित्य जगत् और भक्तों के हृदय में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगी। कारण इसकी रचना शैली अत्यन्त सरल-सुबोध और गेय है, जिससे पाठक गण मुग्ध मन से इसका भक्ति-भाव मय गायन कर सकेंगे और यह बड़ी सहजता से उनके हृदय में अपना स्थान बना लेगी ।
इस ग्रन्थ के प्रकाशन में जिसने अपना सत्विक अर्थ-दान प्रदान किंया है उनके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता और आभार प्रकट करता हूँ, अन्यथा यह कार्य समय पर होना असम्भव था परमात्मा से प्रार्थना है कि उनके यश और श्री में निरन्तर वृद्धि होती है ।
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