श्री श्री सिद्धिमाता: Shri Shri Siddhi Mata

Best Seller
Express Shipping
$15
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA959
Publisher: Anurag Prakashan
Author: राजबाला देवी (Rajbala Devi)
Language: Hindi
Edition: 2012
ISBN: 9788189498559
Pages: 111
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 130 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

<meta content="Microsoft Word 12 (filtered)" name="Generator" /> <style type="text/css"> <!--{cke_protected}{C}<!-- /* Font Definitions */ @font-face {font-family:Mangal; panose-1:2 4 5 3 5 2 3 3 2 2;} @font-face {font-family:"Cambria Math"; panose-1:2 4 5 3 5 4 6 3 2 4;} @font-face {font-family:Calibri; panose-1:2 15 5 2 2 2 4 3 2 4;} /* Style Definitions */ p.MsoNormal, li.MsoNormal, div.MsoNormal {margin-top:0in; margin-right:0in; margin-bottom:10.0pt; margin-left:0in; line-height:115%; font-size:12.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} p.MsoNoSpacing, li.MsoNoSpacing, div.MsoNoSpacing {margin:0in; margin-bottom:.0001pt; font-size:12.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif";} .MsoPapDefault {margin-bottom:10.0pt; line-height:115%;} @page WordSection1 {size:8.5in 11.0in; margin:1.0in 1.0in 1.0in 1.0in;} div.WordSection1 {page:WordSection1;} -->--></style>

निवेदन

'श्री श्री सिद्धिमाता' धारावाहिक रूप से लिखा गया जीवनचरित नहीं है। माँ के निकट उनका जीवनचरित पूर्वापर क्रम से धारावाहिक रूप में सुनने का सौभाग्य और अवसर मुझे कभी नहीं मिला। उनके साथ वार्तालाप के सिलसिले में विभिन्न समयों में, जब जितना जान सकी तभी उसे भरसक भलीभांति लिपिबद्ध करने का मैंने प्रयत्न किया। इस संग्रह में विभिन्न विषयों तथा विभिन्न कालों के यथार्थ क्रम का सदा ध्यान नहीं रखा गया। पीछे मैंने सब घटनाओं को क्रम से सजाने की चेष्टा की। माँ के श्रीमुख से मैंने जिन महात्माओं का विवरण सुना था, उनका वर्णन यथाशक्ति भलीभांति किया है। माँ की काया का भेदन कर निकले हुए ॐकार, मूर्ति, बीज, मन्त्र, वाणी, अक्षर आदि जो कुछ इस ग्रंन्थ में उल्लिखित हुए हैं वे सभी मेरी अपनी आँखों से देखे हैं, उनमें कुछ भी अतिरंजन नहीं है।

कायाभेदी वाणी का प्रकाश होने के बाद कार्यवश मुझे दो बार बाध्य होकर माँ के समीप से दूर रहना पड़ा है। उस समय माँ की अवस्था का अविच्छिन्न रूप से वर्णन करना मेरे लिए सम्भव नहीं हो सका। इसके अलावा पूर्वसंग्रह के कई कागज खोजने पर मुझे नहीं मिले, मैं माँ के ब्रह्मप्रवेश के समय का विवरण भी विस्तार से नहीं दे सकी।

माँ के भक्त सेवक शशांक को माँ के जीवन के अन्तिम कई वर्ष माँ के निकट रह कर उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उसने बातचीत के सिलसिले में माँ के श्रीमुख से पूर्वजीवन की कई घटनाएँ सुनी थीं। इसलिए मेरे समीप पहले से संगृहीत माँ के जीवन और लीलाओं से सम्बन्ध रखने वाली जो बहुत-सी घटनाएँ थीं, उनकी सहायता से उन्हें पुन : मिलाकर भलीभांति मैंने लिख ली थीं। ये लेख नौ वर्ष तक यों ही पड़े रहने के बाद बनारस गवर्नमेन्ट संस्कृत कॉलेज के भूतपूर्व प्रिंसिपल मेरे श्रद्धास्पद गुरुभाई श्रीयुक्त गोपीनाथ कविराज के उत्साह, प्रयत्न और परिश्रम से प्रासङ्गिक आलोचना के रूप में इस समय ग्रन्थ के आकार में परिणत हुए हैं। जलपाइगुड़ी-निवासी एवं वर्तमान समय में काशीप्रवासी श्रीमान् सदानन्ददास ने जिस असाधारण धैर्य, परिश्रम और कायिक क्लेश को सहकर इस ग्रन्थ का सम्पादन किया है वह अनुपम है। इस कार्य में श्री श्री माँ की प्रेरणा और अनुग्रह का स्पष्टत: अनुभव हुआ है । पूर्वोक्त कविराज महोदय ने स्वेच्छा से इस स्वल्पकाय पुस्तक की भूमिका लिख दी इसमें उन्होंने श्री सिद्धिमाता के सम्बन्ध में एवं उनकी साधन प्रणाली के विषय में अपने अनुभव में आये हुए अनेक तथ्य दिये हैं। इसको मैं श्री श्री माँ के चरणों में समर्पित उनकी श्रद्धांजलि ही समझती हूँ।

यहाँ पर और भी एक बात उल्लेखनीय प्रतीत हो रही है। श्री श्री सिद्धिमाता-आत्मकथा उगे जीवनी के नाम से श्रीयुक्ता तरुबाला देवी ने जो ग्रंथ पहले प्रकाशित किया है, उसमें माँ की जो कायाभेदी वाणी प्रकाशित हुई है वह केवल श्रीमान् प्रभात लिखित कायाभेदी वाणी की ही प्रतिलिपि है वर्तमान पुस्तक में भी संशोधित रूप में यह वाणी दी गई है एवं उसके साथ-साथ मन्त्र, बीज, ध्यान आदि भी दिये गये हैं, जो प्रभात द्वारा लिखित वाणी में पहले प्रकाशित नहीं किये गये है।

माँ के भक्त श्रीयुक्त हरिचरण घोष महाशय ने माँ का सत्संग प्राप्त करने के बाद उनके श्रीमुख से जो सुना था और स्वयं उन्हें जो अनुभव हुआ था, उसका कुछ अंश प्रथम परिशिष्ट () के रूप में दिया गया है। माँ के शिष्य और भक्त श्रीमान् प्रभातकुमार बन्धोपाध्याय विरचित श्री श्री माँ के स्वरूपवर्णनात्मक 'लीला-कीर्तन' के नाम से एक कविता द्वितीय परिशिष्ट () के रूप में दी गई है एवं उन्हीं से परिदृष्ट कायाभेदी वाणी का इस पुस्तक में संनिवेश किया गया है। माँ के अन्यतम भक्त श्रीयुक्त शम्भुपद गुप्त मित्र की अनुभूति तृतीय परिशिष्ट () के रूप में दी गई है इन सभी लोगों के प्रति मैं विनयपूर्वक कृतज्ञता प्रकट करती। यदि धर्मपिपासु पाठक और पाठिकाएँ इस पुस्तक के परिशीलन से तृप्त होंगी तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूँगी।

श्री श्री माता सम्पूर्ण जगत् का कल्याण करें उनके श्रीचरणों में यही मेरी एकमात्र प्रार्थना है।

 

Sample Pages











Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at [email protected]
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through [email protected].
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories