जब मैं बहुत छोटी थी तो मैंने बहुत सी प्राचीन कथाएँ सुनीं। मैं एक जिज्ञासु बच्ची थी और जब मुझे कहानी समझ न आती तो मैं कई प्रकार के प्रश्न पूछा करती। ऐसा बारंबार होने लगा तो मेरा परिवार मेरे इस व्यवहार से तंग आ गया और उन्होंने मुझसे कहा, "कथाओं में वही बताया जाता है, जो हमारे ग्रंथों में लिखा है। इसलिए, तुम्हें इन्हें ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लेना चाहिए।"
तब मैंने अपनी ओर से प्रश्न-उत्तर करने बंद कर दिए मेरे पास और कोई चुनाव नहीं था। परंतु मैं जानती थी कि वे कहानियाँ जिस रूप में सुनाई जाती थीं, मैं उन्हें वैसा ही स्वीकार नहीं कर सकती थी।
जब मैं बड़ी हुई, वही प्रश्न मेरे मस्तिष्क में चक्कर काटते रहते थे। मैंने सोचा, "क्या मैं इन कहानियों की वैसी ही व्याख्या कर रही हूँ, जैसी मुझे करनी चाहिए? क्या मेरा मत उचित है?"
परंतु इस बार मेरे पास संबंधित विषय से जुड़ी पुस्तकों की कोई कमी नहीं थी और मैं उन विषयों पर अपनी राय कायम कर सकती थी।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12480)
Tantra ( तन्त्र ) (984)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1884)
Chaukhamba | चौखंबा (3348)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1439)
Yoga ( योग ) (1089)
Ramayana ( रामायण ) (1395)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (22987)
History ( इतिहास ) (8207)
Philosophy ( दर्शन ) (3314)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2537)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist