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श्रीमदब्दुलकलामचरितम् महाकाव्यम्- Srimad Abdul Kalam Charitam Mahakavyam with Hindi Meaning (Set of 2 Volumes)

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Item Code: HBB448
Author: PREM SHANKAR SHARMA
Publisher: Satyam Publishing House, New Delhi
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 2024
ISBN: 9789359094632
Pages: 1010
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 1.48 kg
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description

प्राक्कथनम्

विहरति कलहंसः शुभ्रकीर्तिर्जगत्यां, प्रणमति कविलोकस्तं त्रिवेणीकवीन्द्रम् ।

विलसति सुरवाणीकाव्यकासारकुन्दो, मम गुरुरभिराजः पूरयेन्मां कृपाभिः ।। । ।।

मिलति रविसुतेयं जाह्नवीं पुण्यतोयां, भवति खलु पवित्रः सङ्गमस्तु प्रयागे।

वितरति मनुजेभ्यः पुण्यतीर्थं प्रसाद- मकुरुत मयि वर्षां तीर्थराजोऽमृतस्य ।। 2 ।।

तीर्थराज प्रयाग परम वन्दनीय एवं अपूर्व पुण्यों का प्रदाता है, यह मुझे आज अतीत में झांकने पर स्पष्ट अनुभव हो रहा है। लोकसेवाआयोग के साक्षात्कारहेतु मुझे प्रथमवार अपने श्रद्धेय पिता कविवर स्वर्गीय पं० शङ्करलाल शर्मा जी के साथ प्रयाग जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनके साथ सङ्गम-स्नान के उपरान्त साक्षात्कार दिया और अपने गृह-जनपद अलीगढ़ लौट आया और चयन के प्रति पूर्ण आश्वस्त न होने के कारण सहजभाव से अपने अध्यापन-कार्य में तल्लीन हो गया। चयन हो जाने पर मुझे लगा कि तीर्थराज प्रयाग के स्नानपुण्य और पुण्यात्मा पिता के आशीर्वाद और नियति की भावी योजना के फलस्वरूप यह सम्भव हुआ है, क्योंकि सेवानिवृत्ति से पूर्व मुझे प्रयागराज में पुनः अपर जिलाधिकारी के रूप में पदस्थ होकर सेवा करनी थी और वहाँ पर वाराणसेय सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्वकुलपति एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान तथा मूर्धन्य साहित्यकार, परमादरणीय त्रिवेणी कवि प्रो० अभिराज राजेन्द्र मिश्र जी, जो अब पद्मश्री से भी समलङ्कृत हो चुके हैं, के गुरुत्वाकर्षणबल से आकृष्ट होकर विज्ञान और गणित का विद्यार्थी होते हुए भी संस्कृत की ओर उन्मुख होकर काव्य सृजन में प्रवृत्त होना था। ऐसे अगाध महासागर का कृपापात्र बनने में मेरे मित्र डॉ० राजेन्द्र त्रिपाठी रसराज, जो इलाहाबाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय में संस्कृत के प्राध्यापक हैं, ने सुलभ सेतु का कार्य किया। शुभस्य शीघ्रं को मान्यता देते हुए मैंने एकलव्य की भाँति माननीय प्रो० अभिराज जी को गुरु स्वीकार कर संस्कृतगीतों की रचना प्रारम्भ कर दी एवं श्रीगुरुदेव की कृपा से सेवानिवृत्ति से पूर्व ही साठ संस्कृत गीतों के सङ्ग्रहस्वरूप प्रथम पुस्तक 'गीर्गीतिः' प्रकाशित होने के साथ ही मेरी संस्कृतकविता की यात्रा प्रारम्भ हो गयी। गुरु जी ने प्रोत्साहित करते हुए संस्कृत-काव्य में और अधिक सक्रिय होने का आग्रह किया।


































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