विश्व-साहित्यमें श्रीमद्भगवद्गीताका अद्वितीय स्थान है। मनुष्यमात्रको कर्तव्य और मुक्तिकी शिक्षा प्रदान करनेवाला यह एक अलौकिक एवं प्रासादिक ग्रन्थ है। इसमें स्वयं भगवान्ने अर्जुनको निमित्त बनाकर मनुष्यमात्रके कल्याणके लिये उपदेश दिया है। इस छोटे-से ग्रन्थमें भगवान्ने अपने हृदयके बहुत ही विलक्षण भाव भर दिये हैं, जिनका आजतक कोई पार नहीं पा सका और न पा ही सकता है।
भगवान् श्रीकृष्णकी दिव्यवाणीसे निःसृत सर्वशास्त्रमयी गीताकी विश्वमान्य महत्ताको दृष्टिमें रखकर इस अमर सन्देशको जन-जनतक पहुँचानेके उद्देश्यसे श्रीमद्भगवद्गीता गीताप्रेसके द्वारा विभिन्न भाष्यों, टीकाओंके साथ विभिन्न भाषाओंमें सतत प्रकाशित हो रही है।
विगत कई वर्षोंसे जिज्ञासु पाठकोंकी विशेष माँगपर ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज प्रणीत 'गीता प्रबोधनी' जो श्रीमद्भगवद्गीतापर एक संक्षिप्त टीका है, साधकोंकी सेवामें प्रस्तुत है। अब यह ग्रन्थाकार चित्रमय मोटे टाइपमें चार रंगोंमें आर्ट पेपरपर पहली बार प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रस्तुत ग्रन्थमें श्रीगीताके मूल श्लोकोंके सरल भाषामें उसका अर्थ एवं संक्षिप्त व्याख्या दी गयी है। परन्तु सभी श्लोकोंकी व्याख्या नहीं दी गयी है। अन्तमें आरती तथा गीतामें साधर्म्य दिया गया है। साथ ही प्रसंगानुसार यथास्थान बहुत ही मनोरम आकर्षक चित्रोंको भी दिया गया है।
आशा है, इसके स्वाध्यायसे सामान्य-से-सामान्य व्यक्ति भी गीताके भावोंको आसानीसे हृदयंगम कर अपने जीवनको धन्य कर सकता है।
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