मनुष्य की जिंदगी में अभी-अभी हुई थीं दाखिल छोटी-छोटी कहानियाँ। तेजी से लिखता ही जा रहा था वह। लगती थीं छोटे बच्चों की, लेकिन पढ़े कोई भी। उनके आने से कविता, लेख मानो पीछे ही छूट गए। कविता, यों भी बहुत वरिष्ठ नहीं थी। कहानियों की बड़ी बहन। मनुष्य मुड़ता था कविता की ओर, लेकिन कभी-कभी। लेख तो वहुत ज्यादा नाराज हुए। एक दौर में कितना पागल था मनुष्य इन लेखों के पीछे। सरकारी बस से दिन-रात सफर करता था। कहीं भी सो जाता था। खाने के लिए कुछ भी चल जाता था। यह मेहनत कुछ महीनों की, कभी-कभी कुछ सालों की भी। और अब? एक ही जगह पर बैठे-बैठे उसे लिखना चाहिए। आरामतलब हो गया है! दो-तीन पन्ने लिख मारे और बन गई कहानी। अरे! ऐसे कैसे पूरी हो गई आधे-पौने घंटे में? और वो कविता? उसे तो कागज का इतना-सा टुकड़ा भी काफी हो जाता है। नन्ही जान, लेकिन सवार हो गई आदमी के सिर पर...
कविता समझ गई लेख के विचार। बोली, "लेख भैया, मैं छोटी हूँ; लेकिन क्या ये मेरा गुनाह है? लोग कहते हैं, साहित्य में पहले मेरा जन्म हुआ। लेकिन अब? पहले ये आदमी मुझसे कितना प्यार करता था? आते-जाते मैं ही सूझती थी उसे। मुझे ही चाहता था वह। कभी-कभी अड़ जाता था किसी शब्द के लिए। मैं भी उठाती थी उसकी झुंझलाहट का मजा। फिर हौले से दो-चार शब्द सरका कर गायब हो जाती थी उसके सामने से। क्या बताऊँ, मनचाहा शब्द मिलने पर कैसा खुश होता था वह। लेकिन अब? अपना दुख व्यक्त करने के लिए मनुष्य कविता लिखता है। लेकिन मैं क्या करूँ?"
अलमारी के ऊपरी खाने में थीं दूसरों के द्वारा लिखी हुई अनेक कितावें। ऊपर से उपन्यास बाबू चिल्लाया, "क्या फालतू बकवास ! इतनी-सी जान और कितनी बकवास ! काहे की कहानियाँ और काहे की कविताएँ... जीवन कितना विशाल होता है, ये क्या जानें? और वह समय का विशाल पट? उसका तो नाम भी पता नहीं होगा इनको, और ऊपर से ऐसी बड़ी-बड़ी बातें...बित्ता पर कुछ उठाना और उसी को जीवन कहना... कैसा दुस्साहस !
ऊपर दर्शन वाले दार्शनिक हँसते हैं...खी-खी! "सब कुछ काल्पनिक । उपन्यास बाबू, सॉरी टू से, सब कुछ काल्पनिक । झाँकता हूँ कभी-कभी तुम्हारे इलाके में। कैसे-कैसे होते हैं वो लोग और कहते हैं समय का विशाल पट...! अरे मनुष्य की जिंदगी इतनी-सी। उसकी दृष्टि कितनी होगी? हमें नहीं होता इतना सीमित रहना उपन्यास बाबू ! मनुष्य के इतिहास का तो जायजा लेते ही हैं हम, लेकिन उससे पहले युग की प्राणीसृष्टि का भी अध्ययन करना पड़ता है हमें। समझे!"
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