पुस्तक के विषय में
कहावतें लोकसाहित्य की अन्य विधाओं से हटकर हैं । प्रत्येक कहावत में एक अदृश्य घटना, अदृश्य कहानी छिपी होती है । वह घटना जब घटी होती है, कालांतर में वह घटना अर्थात कहानी एक वाक्य में सिमटकर कहावत बन जाती है और एक अरसे के बाद कहावत के पीछे की कहानी का पूर्णत: लोप हो जाता है और शेष बची रह जाती है कहावत । यही कहावत जनजीवन के बोल-चाल में बनी रहती है । हर कहावत में रक रंग होता है जिसमें पूरी शिद्दत से सौंदर्य छिपा रहता है जो बड़ा प्रभावी होता है ।
कहावतों के पीछे छिपी कहानियों को खोजने की यायावरी यात्रा बहुत मनोरंजक रही है । इसमें तरह-तरह के खट्टे-मीठे अनुभव लेखक प्रताप अनम को प्राप्त हुए ।
प्रताप अनम की शुरुआती खोज ने विषय के अनुरूप कार्य को गति प्रदान की और निकटता से सभी पहलुओं को समझते हुए सभी रचनाओं को एक सूत्र में पिरोने का सार्थक कार्य किया ।
कहावतों के अनुसार कहानियों का लोकपक्ष कितना मुखर हो सका है तथा लोकजीवन मैं कितनी रची-बसी हैं, यह आप पढ़कर ही जान सकेंगे ।
डा. प्रताप अनम का जन्म 15 सितंबर 1947 में उत्तर प्रदेश के इटावा नगर में हुआ था । आपने एमए. करने के बाद पी-एच.डी. की जिसमें साहित्य ढूंढना और उस पर शोध, दोनों ही प्रकार के कार्य शामिल थे। लेखक ने हिंदी प्राच्य संस्थानों तथा पुस्तकालयों में प्राचीन पांडुलिपियों और ग्रंथों का अध्ययन किया । लोकसाहित्य, हस्तशिल्प कला एवं कला में विशेष रुचि रही हे । 'कंचनरेखा' त्रैमासिक पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन किया । दिल्ली में आने के बाद 1978-79 में 'श्री अरविंदों कर्मधारा' मासिक पत्रिका का संपादन किया । इसके बाद स्वतंत्र रूप से साहित्य लेखन, संपादन तथा पत्रकारिता आरंभ की । देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लिखा। सन् 1976 से लखनऊ आकशवाणी तथा 1977 से दिल्ली के आकाशवाणी केंद्रों से वार्ताएं, आलेख, कहानियां तथा अन्य रचनाएं प्रसारित हो रही हैं । लखनऊ दूरदर्शन, दिल्ली दूरदर्शन तथा उपग्रह दूरदर्शन केंद्रों सै रचनाओं का प्रसारण हुआ तथा दूरदर्शन दिल्ली के लिए समाचार लेखन किया। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद भी किया है । इनकी कहावतों की कहानियां नामक कृति को हिंदी अकादमी, दिल्ली ने सम्मानित किया है ।
भूमिका
समाज लोकसाहित्य का अथाह सागर है । इसमें जो जितनी डुबकियां है, वह उतनी ही लोकसाहित्य की मोती, मणियां आदि निधियां निकालकर लाता- है । लोकगीत, लोकगाथाएं, लोककथाएं लोकोक्तियां, कहावतें, मुहावरे आदि लोकसाहित्य की निधियां हैं । इनके संग्रह होते आए हैं । शब्दकोश की तरह कहावत कोश भी बनाए गए हैं।
कहावतें लोकसाहित्य की अन्य विधाओं से हटकर हैं । प्रत्येक कहावत में एक अदृश्य घटना, अदृश्य कहानी छिपी होती है । वह घटना जब भी घटी होती है, कालांतर में वह घटना अर्थात कहानी एक वाक्य में सिमटकर कहावत बन जाती है । और एक अरसे के बाद कहावत के पीछे की कहानी का पूर्णत : लोप हो जाता है और शेष बचा रह जाती है कहावत । यही कहावत जनजीवन के बोलचाल में बनी रहती है ।
'कहावतों के पीछे छिपी इन अदृश्य घटनाओं या कहानियों पर कार्य नहीं हुआ है और न ही घटनाओं के तत्वों को लेकर कहावतों की कहानियों का सृजन ही किया गया है । इसी अछूते कार्य को मैंने अपने कार्य के लिए चुना है । यह काय अपने ढंग का है - नया, दुरूह एवं खोजपरक । प्राचीन ग्रंथों एवं पुस्तकों में कुछेक कहावतों की कहानियां व अदृश्य घटनाओं के कुछ संकेत मिलते हैं । उनमें अधिकतर कथानक पूर्ण वैज्ञानिक, तथ्यपरक एवं सहज प्रतीत नहीं होते।
कहावतों के पीछे छिपी कहानियों को खाजने की यायावरी यानी यात्रा बहुत मनोरंजक रही है । इसमें तरह - तरह के खट्टे मीठे अनुभव प्राप्त हुए । उनमें से एकादि बानगी यहां प्रस्तुत है -
एक कहावत है ' मियां की जूता, मियां का मर । ' ड्सके पीछे छिपी घटना के बारे में जगह-जगह जाकर पूछा । दिल्ली में ही जामा मस्जिद, तुर्कमान गेट, लाल कु आ आदि तमाम इलाकों मैं बुजुर्गों से प्रुछा, तो कुछ लोग तुनक गए और एकादि लड़ने को आमादा होते से दीखे । जैसे तैसे उन्हें समझाया और आगे बढ़ गए । कुछ लोगों ने इस कहावत के संदर्भ में एक ही तरह की परोक्ष घटना घटने की संभावना बताई । उन्हीं तत्वों का सार लेकर इस कहावत की कहानी लिखी।
इसी तरह एक कहावत के संदर्भ में और कहावत है ' हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा आय ' । इसके लिए भी इटावा, कानपुर, आगरा, मथुरा आदि कई जगह के रंगरेजों और पंसारियों से पूछा। दिल्ली में भी सीताराम बाजार, सुईवालान, फतेहपुरी आदि जगहों पर रंगरेजों से पूछताछ की और खारी बावली की गलियों में बसे किराना बाजार में बुजुर्ग पंसारियों तथा अन्य लोगों से मिला । कुछ लोग तो बात करने से कतराएं । कुछ लोगों ने मुझे सिरफिरा समझा । कुछ लोगों ने आत्मीयता से बात की । अंत में फतेहपुरी मस्जिद के दरवाजे से एक रंगरेज से पता चला कि बिना हरड़ और फिटकरी के वह कौन-सी चीज है जिससे कपड़ों में रंग चोखा अर्थात सुंदर हो जाता है। साथ-ही-साथ इसके पीछे घटी घटना के बारे में भी पूछताछ की ।
रंगरेज के बताने से मैं संतुष्ट नहीं हुआ । अलग- अलग रंगों में कपड़े के तीन टुकड़े रंगे । फिर उस रंगरेज की बताई चीज मिलाकर तीन टुकड़े उसी प्रकार अलग- अलग रंगे । सूखने पर देखा कि चीज मिलाकर रंगे गए टुकड़े सुंदर और चमकदार यानी चोखे हैं ।
इस प्रकार अनवरत घूमते रहने पर कहावतों की परोक्ष घटनाओं के कथासूत्र मिले और वे सूत्र जो संभावित सूत्र हो सकते थे, उन्हीं को लेकर इन कहावतों की कहानियों का सृजन किया ।
फिर भी कहावतों के बारे में यह निश्चित नहीं किया जा सकता है कि कोई कहावत किसी समय में अमुक व्यक्ति ने कही या लिखी, या कोई कहावत बनने का कारण अमुक रहा, या किसी कहावत की कहानी, कथा या वृत्तांत अमुक है । कुछ कहावतें ऐसी अवश्य हैं, जिनमें ऐतिहासिक घटनाओं तथा पात्रों के उल्लेख मिलते हैं, लेकिन वे घटनाएं कहावतें कब बनीं, इसके प्रामाणिक आधार नहीं मिलते हैं । फिर भी कुछ कहावतों का समय आदि यह कहकर निश्चित कर लेते हैं कि उस समय अमुक पात्र ने यह बात कही होगी ।
पटना में आयोजित 'नवसाक्षर कार्यशाला' के दौरान डॉ. बलदेव सिहं बद्दन से इस संदर्भ में बात हुई जिसका परिणाम है यह पुस्तक । इसके प्रकाशन के लिए मैं ' नेशनल बुक ट्रस्ट ' का विशेष तौर पर, मित्र संपादक डॉ. श्री ललित मंडोरा को धन्यवाद देना चाहूंगा ।
कहावतों के अनुसार कहानियों का लोकपक्ष कितना मुखर हो सका है तथा लोकजीवन में कितनी रची-बसी हैं, यह आप पढ़कर ही जान सकेंगे ।
अनुक्रम
नौ
1
आए थे हरिभजन कों, औटन लगे कपास
2
अंधा बांटे रेवड़ी, घूम-घूम अपने को देय
3
मियां की जूती, मियां का सर
5
4
ऊंट की चोरी निहुरे-निहुरे
7
घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने
9
6
गंगा जी की रेता, चंदन समान जान
11
अंधे न्योते, दो-दो आय
13
8
जनम का दुखिया, नाम सदासुख
15
कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर
17
10
चमड़ी जाय, दमड़ी न जाय
18
बकरी दो गांव खा गई
22
12
चूल्हे पर तलवार चलाई, तोऊ चुखरिया मार न पाई
25
घी बनावे खीचडी, नाम बहु को होय
27
14
अल्लाह का घर सब जगह है
29
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया
31
16
चंडूखाने की खबर
33
खरबूजे को देखकर, खरबूजा रंग बदलता है
35
अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे
37
19
साच को आंच कहां
39
20
गरीबी में आटा गीला
42
21
भिखारी क्या मांगे भिखारी से
44
हंडिया में एक चावल देखा जाता है
46
23
मोकों और न तोकों ठौर
47
24
हाथ-पांव की कायली, मुंह में मौंछें जायं
49
बिटौरे से तो उपले ही निकलेंगे
50
26
बनिया मित्र न वेश्या सती
51
तेरा ही चुन्न तेरा ही पुन्न, मेरी तो हवा ही हवा है
54
28
वो सवारी तो गई
56
साझे की हंडिया चौराहे पर फूटती है
57
30
सुनार तो अपनी मां की नथ से भी सोना निकाल लेता है
59
हीरें का चोर हो या खीरे का, चोर तो चोर ही होता है
61
32
काम करे तो काजी, ना करे तो पाजी
63
एक से भले दो
65
34
कौवा कान ले गया
67
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी
69
36
टेढ़ी खीर
71
आते वस्त्रों का, जाते गुणों का
74
38
जैसै को तैसा मिले, सुनिए राजा भलि
76
सौतिन तो जन की भी बुरी
80
40
अक्ल बडी या भैंस
82
41
गर खुदा कौ मेरी जरूरत है, खुद लैला बनके आ जाए
85
मोरी की ईट चौबोर चढ़ी
87
43
मंसा भूत शंका डाइन
89
खरीदार तो कोई और था
91
45
जल में रहकर मगर से बैर
93
घर की मुर्गी दाल बराबर
94
सोना सुनार का, गहना संसार का
95
48
हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आय
96
माया अंट की । विद्या कंठ की
98
बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी
100
कभी घी भर घना, कभी मुट्ठी भर चना
101
52
लदे बैल कसमसाय कलीलो
102
53
गए थे नमाज पढ़ने, रोजे गले पड़ गए
104
खुद गुरूजी बैंगन खाएं औरन को उपदेश सुनाएं
106
55
एक अनार सौ बीमार
108
स्पर नहीं घनेरे, बाहर बहुतेरे
110
सहज पके सो मीठा होय
112
58
बनिया गड़ी ईट उखाड़ता है
114
सांप के मुंह में छछूंदर, न खाते बने न उगलते बने
116
60
बात चलती है, तो दूर तक जाती है
118
गांव में परी भरी, अपनी-अपनी परी
120
62
मरने के बाद वैद्य बहुत हो जाते हैं
122
सौ सयानों का एक मत, सौ मूर्खों के सौ मत
124
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12550)
Tantra ( तन्त्र ) (1003)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1901)
Chaukhamba | चौखंबा (3354)
Jyotish (ज्योतिष) (1457)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1390)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23143)
History (इतिहास) (8257)
Philosophy (दर्शन) (3393)
Santvani (सन्त वाणी) (2593)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist