कहानियाँ चिरकाल से मनुष्य को आनंदित और रससिक्त करती रही हैं। प्रकृति के विभिन्न उपादानों, यथा- जीव-जन्तु, वृक्ष, नदियों, प्रपात, ग्रह-नक्षत्र, धरती-आकाश-समुद्र इत्यादि में अंतर्निहित जीवन ने मनुष्य की कल्पनाओं को विस्तार दिया है और इनसे जुड़कर कहानियों की उत्पत्ति हुई है। बचपन में दादी-नानी की गोद में बैठकर, कुछ बड़े होने पर समाज से और शिक्षित होने के उपरांत पुस्तकों के माध्यम से कहानियों ने मानव मन को प्रभावित करने का काम किया है।
बुन्देलखण्ड अञ्चल प्रकृति का रमणीक लीला स्थल रहा है, जहाँ अगस्त्य, अपाला, मैत्रेयी, लोपामुद्रा प्रभृति अनेक ऋषियों-ऋषिकाओं ने वैदिक ऋचाओं को अनुस्यूत कर कहानियों की शुरूआत की। रामायण काल में महर्षि वाल्मीकि ने चित्रकूट की सुरम्य उपत्यकाओं में बैठकर 'रामायण' के माध्यम से रामकथा लिखी, जो उनके जीवनकाल में ही जन-मन का कंठहार बन गई और आज भी उतनी ही लोकप्रिय है। महाभारत काल में वेद व्यास ने कालप्रिय (वर्तमान कालपी) में 'महाभारत' की सर्जना की। कालांतर में भवभूति ने यहीं 'उत्तररामचरितम्' लिखकर रामकथा को विस्तार दिया।
हिन्दी साहित्य में देखें तो पाते हैं कि जगनिक ने 'परमाल रासो' या 'आल्ह खण्ड' लिखखकर आल्हा ऊदल को तो अमर किया ही, वीरता के स्पंदन के लिए उत्प्रेरक की भूमिका भी निभाई। कहा जाता है कि अब से कुछ समय पहले तक देश के लगभग सभी गांवों की चौपालों पर वर्षा ऋतु में आल्हा गायन होता था और इसे सुनकर लोगों की शिराओं में वीर रस प्रवाहित होने लगता था। संभवतः इसका गायन वर्षा ऋतु में इसलिए किया जाता था, ताकि सैनिकों में शौर्य की भावना पैदा हो और वर्षा ऋतु समाप्त होते ही युद्ध पर जाने हेतु सैनिकों में शौर्य की भावना पैदा हो और वर्षा ऋतु समाप्त होते ही युद्ध पर जाने हेतु सैनिकों में आवश्यक जोश भरा जा सके।
प्रो. पुनीत बिसारिया लेखन एवं अध्यापन जगत का चिर-परिचित नाम है। वे नवीन, समसामयिक एवं विचारोत्तेजक विषयों पर लेखन के लिए विख्यात हैं। 17 अप्रैल, सन 1974 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के बछरावाँ कस्बे में जन्मे प्रो. पुनीत विसारिया की प्रारंभिक एवं माध्यमिक स्तर की शिक्षा-दीक्षा बछरावों में हुई। सन 1998 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पी-एच.डी की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान समय में वे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी के हिन्दी विभाग के आचार्य पद पर कार्यरत हैं। वे उत्तर प्रदेश शासन की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप हिंदी पाठ्यक्रम निर्माण समिति तथा ई-कंटेन्ट निर्माण समिति के संयोजक रहे हैं, विभिन्न भाषाओं की पाठ्यक्रम निर्माण समिति के सदस्य रहे हैं। वे विश्वविद्यालय की विद्या परिषद के सदस्य हैं और बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय की हिन्दी पाठ्यक्रम समिति एवं हिन्दी शोध समिति के संयोजक के दायित्वों का भी निर्वहन कर रहे हैं। वे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के शिक्षा संस्थान के निदेशक अध्यक्ष एवं हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित कर चुके हैं तथा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला में सह अध्येता रहे हैं। इससे पूर्व वे रामनगर स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बाराबंकी, वीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ तथा नेहरु स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ललितपुर में सेवाएँ दे चुके हैं।
वर्तमान में वे 'सेतु' द्विभाषी शोध जर्नल, पिट्सबर्ग, अमेरिका, 'जनकृति' शोध जर्नल, वर्चा, 'प्रभास', उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ, 'वाग्प्रवाह' शोध जर्नल, लखनऊ, 'युगशिल्पी' शोध जर्नल, गाजियाबाद, 'शोध सरिता', लखनऊ के संपादक हैं तथा 'रिसर्च होराइजंस', अन्तरराष्ट्रीय पीयर रिव्यूड जर्नल, मणिवेन नानावटी वीमेंस कॉलेज, मुंबई के सम्पादक सलाहकार बोर्ड के सदस्य तथा कृतिका अंतरराष्ट्रीय शोध जर्नल के अतिथि संपादक हैं। उनके मार्गदर्शन में पाँच शोधार्थी शोध उपाधि से अलंकृत किये जा चुके हैं तथा दो शोधार्थी शोधरत हैं।
प्रो. पुनीत विसारिया की 'वेदबुक से फेसबुक तक स्त्री', 'मेरी झाँसी', 'आतंकवाद पर बातचीत' 'भारतीय सिनेमा का सफरनामा', 'बौद्ध धर्म नयी सदी-नयी दृष्टि', 'शोध कैसे करें', 'जिन्ना का सच', 'युवाओं की दृष्टि में गांधी', 'भोजपुरी विमर्श', 'बुन्देली महिमा', 'बुन्देली काव्य धारा', 'पण्डित मदनमोहन मालवीय', 'अम्बेडकर की अंतर्वेदना', 'हिन्दी पत्रकारिताः कल आज और कल', 'भारतीय संविधान के निर्माता', 'कलाम को सलाम', 'विष्णु के दशावतार रूप', 'पर्यावरण विन्तन', 'काव्य मंजूषा', 'प्रकीर्ण विविधा', 'काव्य वैभव', 'निवन्ध निकष', 'प्राचीन हिन्दी काव्य', 'अर्वाचीन हिन्दी काव्य', 'अनुवाद और हिन्दी साहित्य', सहदय न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी की न्याय यात्रा', 'प्रो. पुनीत बिसारिया का फेसबुक चिन्तन' समेत कुल 41 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वे 'हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श परम्परा की प्रासंगिकता एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य' विषयक यू.जी.सी. शोध परियोजना पूर्ण कर चुके हैं।
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