बाबा नीब करौरी अपने समय के महानतम संत थें । उनके जन्म काल के बारे में कोई प्रामाणिक विवरण उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ भक्त उनके जीवन का विस्तार 18 वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी तक मानते हैं । बहरहाल उन्होंने 11 सितम्बर 1173 को लौकिक शरीर त्याग दिया ।
बाबा नीब करौरी सर्वज्ञ थे, सर्वशक्तिमान थे और सर्वव्यापक थे । वे कहते थे, मैं हवा हूँ मझे कोई रोक नहीं सकता । मैं धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पृथ्वी पर आया हूँ
बाबा समसामयिक संतों में सर्वोपरि थे । कुछ लोग उन्हें साक्षात् हनुमानजी का अवतार मानते थे तो कुछ संतों का कहना था कि नीब करौरी महाराज को हनुमानजी की सिद्धि है । वह कुछ भी कर सकते हैं । यदि मृत व्यक्ति को पुनर्जीवन देने की क्षमता किसी में है तो वह एकमात्र संत हैं नीब करौरी बाबा ।
बाबा ने कथा, प्रवचन, आडम्बर, प्रचार प्रसार से दूर रह कर दीन दुःखियों की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया । भक्तों का आर्तनाद सुनकर तुरन्त पहुँच जातें और उसे संकट से उबार देते । वे भक्त वत्सल थे, गरीब नवाज थे और संकटमोचक थे । बाबा नीब करौरी का सम्पूर्ण जीवन अलौकिक क्रिया कलापों से भरा हुआ है । कोई शक्ति उन्हें एक जगह बाँध कर नहीं रख सकती थी । वे एक साथ भारत में भी होते और लंदन में भी । लखनऊ में भी और कानपुर में भी । पवन वेग से क्षण भर में ही कहीं भी अवतरित हो जाते । उन्हें कमरे में कैद करके रखना असम्भव था । सूक्ष्म रूप में बाहर निकल जाते और वांछित कार्य सम्पन्न कर लौट आते । महाराजजी का हर क्षण अलौकिक होता वे स्वयं अलौकिक जो थे ।
महाराजजी के भक्तों ने उनकी अलौकिक घटनाओं, लीलाओं और प्रसंगों को विभिन्न पुस्तकों में संकलित किया है । ये पुस्तकें अंग्रेजी में भी हैं और हिन्दी में भी । इस पुस्तक में महाराजजी के सभी अलौकिक किया कलापों को एक जगह संकलित करने का प्रयास किया गया है ।
विश्वविद्यालय प्रकाशन के संस्थापक श्री पुरुषोत्तमदास मोदी साहित्य और अध्यात्म में गहरी रुचि रखते हैं । वे धर्म, संस्कृति, अध्यात्म और संत महात्माओं से सम्बन्धित पुस्तकें सहर्ष प्रकाशित करते रहे हैं । सम्भवत: इसीलिए बाबा नीब करौरी ने उन्हें प्रेरणा दी कि उनके अलौकिक क्रिया कलापों को एक जगह संकलित और प्रस्तुतकिया जाय । श्री मोदी ने यह पवित्र कार्य मुझे सौंपा और महाराजजी की कृपा से मैंने यह कार्य सिर्फ तीन महीने में पूरा कर दिया । महाराजजी के अलौकिक किया कलापों के संकलन में मैंने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है । यदि कोई कमी रह गई होगी तो महाराजजी की प्रेरणा से अगले संस्करण में पूरी होगी, ऐसा मेरा विश्वास है ।
मैं बाबा नीब करौरी के उन सभी ज्ञात अज्ञात भक्तों का आभारी हूँ जिनके प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहयोग से यह पुस्तक तैयार हो सकी । मैं बाबा के अमेरिकी भक्त डॉ ० रिचर्ड एल्पर्ट (जिनका नाम बाबा ने रामदास रखा था) प्रोफेसर मनोविज्ञान, हारवर्ड विश्वविद्यालय, बोस्टन का विशेष आभारी हूँ जिनकी पुस्तक मिरेकिल आव लव से विशेष मदद मिली । इसके अलावा बाबा के परम भक्तों राजी दा और मुकन्दा का भी आभारी हूँ जिनकी पुस्तकों से मुझे खासी सामग्री प्राप्त हुई ।
अन्त में बाबा नीब करौरी के श्री चरणों में यह पुस्तक क्षमा प्रार्थना के साथ समर्पित कर रहा हूँ ।
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