सब धरती कागद करूँ..
•ब हम आकाश की ओर देखते हैं, तो आश्वर्य से भर उठते हैं। उसका विराद् ज स्वरूप हमें सम्मोहित कर देता है। हम कहीं भी रहें, वह हमारे साथ होता है। और उसके साथ होने का यह अहसास हमें गर्व से भर देता है। जिस तरह हम आकाश पर गर्व करते हैं, हरी-भरी वसुंधरा पर गर्व करते हैं, इसी धरा पर भरपूर अस्मिता के साथ प्रकट होते उत्तुंग हिम-शिखरों सागर, नदियों, पर गर्व करते हैं, उसी तरह हम लता मंगेशकर पर भी गर्व करते हैं।
अपनी विराटता के बावजूद जो विनम्रता और शालीनता हमें धरती, आकाश, सागर, नदियों और पर्वतराज हिमालय में दिखाई देती है, वैसी ही विनम्रता और शालीनता हमें लता मंगेशकर में भी दिखाई देती है। जिस तरह धरती, आकाश, सागर, हिमालय की विराट् छवि का अंकन करना मुश्किल है, वैसे ही लता मंगेशकर, जिन्हें सब प्यार, श्रद्धा और सम्मान से 'लता दी' कहते हैं, के व्यक्तित्व और कृतित्व को शब्दों में बाँधना आसान काम नहीं है। उनकी दिव्यता और आभामंडल में एक सम्मोहन है, जो हमें अवाक् कर देता है।
लताजी के सुरों का खजाना हमें अचंभित कर देता है। हम उनके गाये जिस भी गीत को याद करते हैं, उसी को गुनगुनाने लगते हैं, और यही गीत हमें श्रेष्ठ लगने लगता है। हर दिल में कोई कलाकार इस तरह प्रतिष्ठापित हो, यह बहुत मायने रखता है। किसी कलाकार के लिए भी यह सब आसान नहीं होता। लताजी की इस प्रतिष्ठा के पीछे एक संघर्ष है, समय की एक बड़ी आवृत्ति है। इस आवृत्ति में तमाम अच्छी-बुरी घटनाएँ हैं, तोड़ देनेवाले हालात हैं और इन सब में आत्मविश्वास से पल-पल समृद्ध होने तथा आगे बढ़ जाने की दास्तान है। जब हम इन सबके बीच से अपनी संवेदना के साथ गुजरते हैं, तब समझ पाते हैं कि किस तर शब्दों में-" लता जब आई तो हम संगीतकार आश्वस्त हो गए कि अब हम धुन बनाते समय किसी भी गहराई तक डूब सकते हैं और अगर हमारी धुन पेचीदा भी हुई, तो भी उसमें मिठास बनी रहेगी, क्योंकि लता के लिए कुछ भी गाना असंभव नहीं है।" लता के 'कंठ' ने जहाँ संगीतकारों की प्रतिभा को नई उड़ान दी, वहीं चुनौती भी दी। उन्हें एक हो आवाज में पवित्रता, माँ को ममता, बाल-सुलभ निश्छलता, नवयौवना की चंचलता, प्रेमिका का राग और स्त्री के तमाम रूपों के साथ नव रस के दर्शन हो गए थे। उनकी छोटी बहन और प्रख्यात गायिका आशा भोंसले लताजी के सुरों में उतार-चढ़ाव की तुलना एक जल-प्रपात से करती हैं-"आपने कभी जल प्रपात को नीचे से ऊपर की ओर जाते हुए देखा है? मैंने देखा है, सुना है। दीदी की जल-प्रपात जैसी तान जब उन्हों सुरों में लौटती है तो लगता है, जैसे पहाड़ की ऊँचाई से गिरा हुआ पानी ठीक उसी रास्ते वापस लौट रहा है।"
यह पवित्रता, निश्छलता शायद इसलिए, क्योंकि उनके लिए गाना पूजा के समान है। वे कहती हैं, "जब मैं गाती हूँ, जूते-चप्पल कभी नहीं पहनती। मेरे पिता का कहना था कि गायन एक तरह से देवी सरस्वती के मंदिर में प्रवेश करने जैसा है। गायन को मैं प्रार्थना की तरह मानती हूँ। अगर आप किसी मंदिर में जाते हैं तो जूते उतारकर जाते हैं। यह ईश्वर के प्रति सम्मान व्यक्त करने का तरीका है।" छोटी सी बालिका लता ने पिता की बात गाँठ बाँध ली।
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