डॉ. अजय कुमार का जन्म सम्राट अशोक, चाणक्य, रामनुजन एवं प्रथम राष्ट्पति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कर्मस्थली एवं ऐतिहासिक नगरी पाटलीपुत्र (पटना) में हुआ I बचपन से ही संगीत की ओर अभिरुचि को देखते हुये आपके पिताजी श्री गौतम पाठक ने संगीत की पारम्भिक शिक्षा देनी आरम्भ कर दीI पिता जी द्वारा दी गई संगीत शिक्षा एवं माताजी श्रीमती गायत्री द्वारा दी गई उच्य सांगीतिक एवं धार्मिक संस्कार ने आपको संगीत के क्षेत्र कुछ विशेष करने की प्रेरणा जागृत की I संगीत के इस पारम्भिक सफर में तबला वादन की शिक्षा पटना में श्री सुबोध रंजन प्रसाद से प्राप्त की I आप संगीत अध्ययन के सफर को आगे बढ़ाते हुए वनारस पहुंचे तथा संगीत एवं मंच कला संकाय वी.एच.यू. से एम.म्यूज की उपाधि प्राप्त की I इस अध्ययन के दौरान तबला वादन का गूढ़ ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा ने वास्तविक आकृति लेना प्रारम्भ किया, जिसके फलस्वरूप आको वनारस घराने के जादूगर प्राप्त: स्मरणीय पंडित अनोखे लाल मिश्र जी के गुरु शिष्य परम्परां के अन्तगर्त तबला वादन की शिक्षा पंडित अनोखे लाल मिश्र जी के सुयोग्य शिष्य पंडित छोटे लाल मिश्र जी से गुरु शिष्य परम्परा के अन्तगर्त तबला वादन की शिक्षा प्राप्त करने की सौभाग्य प्राप्त हुआ I आपने संगीत संकाय दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्रोफेशर नजमा परवीन अहमद (Emeritus fellow) के मार्गदर्शन में प्राप्त किया I आपके वादन में आपके गुरु की छाप दिखाई देती है जो गुरु के प्रति भक्ति भाव एवं तालीमता का प्रतिक है I सांगत करते समय विशिष्ट रूप से सौन्दर्यपरक चित्तवृति तथा सोलो वादन करते समय वोलो कि शुद्धता, लयकारी तथा तैयारी सभी का संतुलन बनाये रक्ते हुए वादन करना में दिखाई पड़ता है I एम.म्यूज में सर्वोच्य अंक प्राप्त करने हेतु आपको काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कि ओर से पं. ओंकार नाथ ठाकुर सम्मान प्रदान किया गया I इसके साथ ही 2008 में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा संगीत की दिशा में विशिष्ट कार्य हेतु जूनियर फेलोशिप J .R .F दिया गया I इसके साथ साथछात्र रत्न सम्मान,संगीत कला अकादमी इत्यादि सम्मान से आपको सम्मानित किया गया है I आपने तबला वादन परम्परा को पाटलीपुत्र के बाहर विश्व में ख्याति दिलाई ई सन् 2000 में आपने जर्मन वृत्तचित्र 'राग ' में तबला वादन प्रस्तुत कर अंतराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की I सन् 2005 में आप लगातार थाईलैंड के स्त्रीखरीन विरोट यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आमंत्रित किये जाते रहे है I सन् 2008 में S .W .U बैंकाक द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में तबला एवं थाई अवनद्ध वाघों शीर्षक पर सोदाहरण व्याख्यान दिया I आप 2004 से लगातार साहित्य कला परिषद द्वारा आयोजित संगीत कार्यशाला का निर्देशन करते आ रहे है I आपके द्वारा लिखित पखावज की उत्पत्ति विकास एवं वादन शैलियाँ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है I वर्तमान में आप दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय में सेवारत है I
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