इस तंत्रोक्त दुर्गा सप्तशती की रचना माँ की शक्तिपीठ, नागौर पर दर्शनार्थ आये एक तपोमूर्ति महात्मा जी की प्रेरणा से हुई। उन्होंने एक अति प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपि सौंपते हुए निर्देश दिया कि इसे यथासम्भव शुद्ध और व्यवस्थित करके सुन्दर कलेवर में माँ के भक्तों हेतु प्रकाशित किया जाये।
अनेक विद्वानों से परामर्श और महात्माजनों से इसकी शुद्धता को परखकर अब इसे सामान्यजन हेतु उपलब्ध कराया गया है। इस ग्रन्थ के निर्माण के समय बम्बई व वाराणसी से प्रकाशित इस प्रकार की कुछ अन्य प्रतियाँ भी देखने में आईं, जिनके सम्बन्ध में विद्वानों से चर्चा करने पर इनमें कुछ अपूर्णता पाई गई, जिसे इस ग्रन्थ में पूर्णता प्रदान की गई है। कुछ बीज मन्त्रों में मामूली अन्तर भी पाया गया जिसे विद्वानों से चर्चा करके श्रेष्ठ संस्करण ही इसमें सम्मिलित किया गया है।
यह संशोधित, शुद्ध व सम्पूर्ण संस्करण अनेक वर्षों के कठिन परिश्रम का परिणाम है। कई विद्वानों ने इस पुस्तक के प्रकाशन से पूर्व ही इसके पाठ व जप के सफल अनुभूत प्रयोग किये हैं। सभी विद्वान इस सम्बन्ध में एक मत हैं कि यदि कोई पाठक/साधक सब विधि विधान करके पाठ करता है तो वह प्रशंसा का पात्र है। किन्तु कलियुग में सामान्यजन से ऐसी अपेक्षा करना उचित प्रतीत नहीं होता। वर्तमान में शायद ही कोई सामर्थ्यवान होगा जो सब विधान पूर्णता से कर सके। अतः जितना विधान सरलता से किया ज सके, जिसे करने में मन प्रसन्न रहे, उतना ही करें। जितना विधान अधिक या न्यून करना हो उतना संकल्प में अधिक या न्यून क दें। कलियुग में माँ के प्रति हृदय से शुद्ध श्रद्धाभाव ही सबसे बड़ा समर्पण है।
प्रस्तुत पुस्तक के सभी बीजमन्त्र शुद्ध हैं, यह पहली ऐसी मुद्रित पुस्तक है, जिसके अधिकाधिक बीजमन्त्रों का पाठ या जप इसके प्रकाशन से पूर्व ही कई साधकों ने करके सिद्धि प्राप्त की है। इनका प्रयोग सिद्धिप्रद है।
इस तंत्रोक्त सप्तशती के दिव्य सात सौ मन्त्रों में प्रत्येक मन्त्र में 'ऐं' इस बीज का प्रयोग किया गया है। इस सम्बन्ध में तन्त्रकोप में सुस्पष्ट लिखा है - 'ऐं' बीज अनेक दिव्य शक्तियों का बीज है, सरस्वती के बीज की तरह दुर्गा का प्रधान बीज होने के कारण 'ऐं' इस बीज का प्रयोग प्रति मन्त्र में किया गया है।
इसके अतिरिक्त और जो भी रहस्य हो वह स्वयं माँ भवानी जानें। पूर्ण श्रद्धा, समर्पण और भक्तिभाव से यह पाठ तत्क्षण फल देने वाला है। यह सुनिश्चित है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12491)
Tantra ( तन्त्र ) (986)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1890)
Chaukhamba | चौखंबा (3352)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1442)
Yoga ( योग ) (1093)
Ramayana ( रामायण ) (1389)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23031)
History ( इतिहास ) (8222)
Philosophy ( दर्शन ) (3378)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2532)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist