दो शब्द
श्री एल० सी० शर्मा. भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष पढाते है तथा जर्नल ऑफ एस्ट्रोलोजी में इनके शोधपूर्ण ज्योतिषीय लेख छपते रहते हैं।
इस पुस्तक मे इन्होंने अपने अनुभूत सिद्धान्तो को प्रस्तुत किया है। एक भाग मुहूर्त का है जिसे इन्होंने संक्षेप में समझाकर उपयोगी बनाया है। विवाह पर इनके अनुभवों पर आधारित शोघ उपयोगी सिद्ध होंगे। हिन्दुतानी परपरा में विवाह का संबंध हमेशा सन्तान से ही रहा है इसलिए शर्मा जी ने सन्तान संबंधी शोध भी इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। ज्योतिष के शिक्षक जो विद्यार्थियों को पढाते हैं उनको और ज्योतिषियों की अपेक्षा फलित में वैज्ञानिक शैली की ओर ध्यान देना पडता है जो आप इस पुस्तक में पाइयेगा । इस प्रकार इनकी और भी पुस्तके भविष्य में छपेंगी।
लेखक
इस पुस्तक के लेखक प० लक्ष्मी चन्द्र शर्मा, ज्योतिष विशारद, भारत सरकार के ग्रह मन्त्रालय, नई दिल्ली से सहायक निदेशक के पद से जनवरी 1989 मे सवा-निवृत हुए । ज्योतिष के अध्ययन मे इनकी रूचि अपने सेवाकाल से ही थी और ये अपने सहयोगी अधिकारियों को उनके स्थानान्तरण, पदोन्नति आदि सेवा-सम्बन्धी विषयो पर ज्योतिष परामर्श देते थे । ये भारतीय विद्या भवन, नई दिल्ली के ज्योतिर्विज्ञान संस्थान में ज्योतिषाचार्य हैं । फलित ज्योतिष व अष्टकवर्ग का अध्यापन करते हैं और आचार्योपरान्त ज्योतिष मे शोध कार्य से सम्बद्ध हैं । यही से प्रकाशित 'जनरल आफ एस्ट्रोलोजी के लिए ये हिन्दी व अग्रेजी मे लेख लिखते है । इनके लेख हिन्दी के दैनिक समाचार पत्रो मे भी छपते हैं। सितम्बर 1999 के लोकसभा के चुनाव के विषय में 16.09.1999 के दैनिक 'वन्देमातरम' मे छपी इनकी भविष्य वाणी कि ''एन० डी० ए० को लगभग 300 सीटो पर विजय प्राप्त होगी'' शत प्रतिशत सत्य हुई । देश की राजनैतिक गतिविधियो सहित सभी विषयो पर ये नि:शुलक ज्योतिष परामर्श देते हैं । टैलीविजन के एक विशेष चैनल पर 'एस्ट्रोलोजिकल प्रडिकशन्ज' नामक ज्योतिष के कार्यक्रम में समय-समय पर इनकी वार्ता प्रसारित होती है।
ईस पुस्तक में इन्होंने आधुनिक परिपेक्ष मे मुहूर्त की व्यवहारिक अपयुक्तता तथा विवाह व सन्तान सम्बन्धी विषयों का पराशरी जैमिनी, और अष्टकवर्ग पद्धति द्वारा तथ्यों के आधार पर सहज व सरल भाषा में सुन्दर तर्क-संगत ढंग से वर्णन किया है । आशा है यह पुस्तक ज्योतिष के सभी छात्रों तथा ज्योतिष में रूचि रखने वाले अन्य व्यक्तियों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।
आभार
गुरू गोविंद दोऊ खडे का के लागूँ पाँव ।
बलिहारी गुरू आपने जो गोविंद दियो बताय ।।
सर्व प्रथम मैं अपने ज्योतिष गुरू, ज्योतिष भानु देवज्ञ श्री के० एन० राव, आई० ए० ए० एस० भारत सरकार के महा लेखाकार के कार्यालय से महानिदेशक के पद से सेवानिवृत का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने ज्योतिष पर अपनी 25 पुस्तको और अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलनों में अपने भाषणों तथा अनेकों शत प्रतिशत सत्य हुई भविष्य वाणियों द्वारा ज्योतिष जगत पर अमिट छाप छोडी है और जिनके निरन्तर मार्गदर्शन व प्रोत्साहन से यह पुस्तक लिखी गई।
मैं श्री शिवराज शर्मा, का बहुत आभारी हूँ जिन्होनें पुस्तक का प्रारूप पढा और कुछ अच्छे सुझाव दिए।
मैं श्रीमती पदमा राघवन का आभारी हूँ जिन्होंने पुस्तक के प्रारूप पढने में सहायता की।
मैं श्री सजय अग्रवाल का बहुत आभारी हूँ जिन्होने कम्यूटर टाइपिंग का कार्य बहुत शीघ्र, सुन्दर व सुचारू ढंग से किया और पुस्तक के प्रकाशन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
मैं 'सागर पबलिकेशन्ज' के श्री सौरभ सागर जी का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने पुस्तक के प्रकाशन में विशेष ध्यान दिया।
मैं अपने परिवार के सभी सदस्यो विशेषतया-पुत्र-आर० के० शर्मा पुत्र वधु श्रीमती अन्जु शर्मा जिन्होंने प्रथम पृष्ठ के डिजाइन व सज्जा में सहायता की और पौत्र राहुल और रोहित का आभारी हूँ जिनके लिए, पुस्तक लेखन की अवधि में, मैं कोई समय नही दे सका।
प्राक्कथन
या देवी सर्व भूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम, ।।
वैदिक काल में भारत, शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, शिल्प, कला आदि सभी क्षेत्रों में संसार के सभी देशों से आगे था। दूसरे देशों से विद्यार्थी यहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे । नालन्दा विश्व विद्यालय का नाम पूरे ससार मे उच्च शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था परन्तु महाभारत काल मे जैसे इस महायुद्ध में बडे-बडे योद्धा काम आए उसी प्रकार से बडे-बडे विद्वान पंडित भी उस भीषण युद्ध मे समाप्त हो गए और कालान्तर में धीरे-धीरे शिक्षा आदि देश की उन्नति के कार्यो मे गिरावट आ गई। ज्योतिष जिसे वेदांग और प्रत्यक्ष शास्त्र कहा गया है वह भी धीरे-धीरे लुप्त होता गया क्योंकि अधिकतर अज्ञानी व स्वार्थी लोगों ने अपने लाभ के लिए शास्त्र के श्लोकों का उल्टा अर्थ लगाना आरम्भ कर दिया जिसके कारण धर्म व ज्योतिष के ऊपर से जन-साधारण का विश्वास उठ गया जिसका परिणाम यह हुआ कि धर्मपरायण तथा ज्योतिष में विश्वास रखने वाले व्यक्ति इस दैवी विद्या के लाभ से वंचित हो गए और साधारण जनता के लिए तो ज्योतिष का अर्थ केवल बच्चे के जन्म के समय पंडित जी से पूछना कि बच्चा गण्ड मूल में तो उत्पन्न नहीं हुआ और माँगलीक तो नहीं है या जब वह बडा हो गया तो उसके विवाह का मुहूर्त निकालने, तक ही सीमित रह गया।
स्वतन्त्रता प्राप्त करने के पश्चात पिछले पाँच दशकों में जहाँ शिक्षा, विज्ञान, इन्जिनियरिंग तथा अन्य विकास के कार्यों में उन्नति हुई है, वहाँ ज्योतिष का भी प्रचार व प्रसार बढा है। विशेषतया बडे-बडे नगरों में, इस विषय मे लोगो की जिज्ञासा बढी है। कम्प्यूटर के आने से, कम्प्यूटर पर जन्म पत्रियाँ बनने लगी हैं किन्तु वे सब कितनी ठीक हैं यह फिर एक विवाद का विषय है । इसी प्रकार कुछ संस्थाएँ खुल गई है जहाँ बहुत थोड़े समय में अर्थात कुछ महीनों में ही ज्योतिष का अध्ययन पूरा करा दिया जाता है। ज्योतिष के प्रचार के लिए यह ठीक है किन्तु यदि इस अध-कचरे और अधूरे ज्ञान को व्यवसाय के रूप में प्रयोग किया गया तो वह उचित नही होगा क्योकि ज्योतिष जो एक दैवी विद्या है इसका ज्ञान तभी होता है जब पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से इसका अध्ययन चयन किया जाए और इसका लाभ फलादेश करने वाले को तभी प्राप्त होता है जब इसका प्रयोग शुद्ध भावना से किया जाए । इस दिशा मे प्रगति के लिए, ज्योतिष के वैज्ञानिक ढ़ंग से, पठन, पाठन और अन्वेषण तथा छात्रो में ज्योतिष के प्रचार-प्रसारके लिए एक जागृति उत्पन्न करने की आवश्यकता है जिसका प्रयास भारतीय विद्या भवन के ज्योतिर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में पिछले 10 वर्षो से किया जा रहा है। भौतिक शास्त्र और रसायन शास्त्र की तरह से ज्योतिष भी एक पूर्ण विज्ञान है जिसे संसार के वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं। ज्योतिष की प्रथक-प्रथक विद्याओं- पराशरी जैमिनी, ताजिक तथा उनमे उपलव्य, भिन्न-भिन्न विधियो-जैसे षोडशवर्ग, विशोत्तरी दशा अष्टोत्तरी दशा, कालचक्र दशा, योगिनी दशा, चर दशा तथा मन्डूक दशा आदि के प्रयोग से किसी व्यक्ति के जन्म समय अथवा किसी घटना के होने के समय के आधार पर भविष्य में होने वाले घटना-क्रम का फलादेश किया जा सकता है और जन्म का समय यदि ठीक है तो 60 प्रतिशत से शत प्रतिशत तक फलादेश सही पाया गया है। यदि कहीं परिणाम में कोई त्रुटि रहती है तो वह ज्योतिष शास्त्र की कमी के कारण नहीं बल्कि बताने वाले के अनुभव की कमी व अनभिज्ञता के कारण हो सकती है। एक अनुभवी ज्योतिष वेता जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर परामर्श देकर जन कल्याण में अपना योगदान करता है ।
इस पुस्तक मे तीन महत्वपूर्ण विषयों-मुहूर्त, विवाह और सन्तान का सक्षिप्त रूप से वर्णन किया गया है। जो व्यक्ति ज्योतिष में विश्वास नहीं रखते हैं उनको भी विवाह करने या सन्तानोत्पत्ति के समय इनके बारे में या किसी अन्य शुभ कार्य के लिए मुहूर्त पूछने के लिए एक ज्योतिषी का परामर्श लेना पडता है।
साधारण मनुष्य का विश्वास है कि जब सब कुछ पूर्व-निधार्रित है तो मुहूर्त की क्या आवश्यकता है और उसकी क्या उपयोगिता है। इसका सब से अच्छा उदाहरण भारत की स्वतन्त्रता का समय है। हमारे देश के नेताओं ने अपनी सदबुद्धि से 24 घन्टे के अल्प समय में सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध मुहूर्त 14 अगस्त की मध्यरात्रि के 12 बजे के बाद के मुहूर्त का चयन करके स्वतन्त्रता की घोषणा की जिसके कारण आज हमारा देश पिछले 50 वर्षो से संसार का सबसे बडा गणतन्त्र और शक्तिशाली देश है जिसकी आवाज संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर सम्मान से सुनी जाती है और दूसरी ओर हमारा पडौसी देश है जहाँ 50 वर्षो में से 25 वर्ष से अधिक सेना का शासन रहा है, नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता नहीं है और जहाँ की अर्थ-व्यवस्था चरमरा गई है । किसी कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखकर उसे आरम्भ करने से, व्यक्ति अपने वाले अरिष्ट से बच सकता है और उसे कार्य में सिद्धि व सफलता प्राप्त होती है।
12.10.1999 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मन्त्री मियाँ नवाज शरीफअपने सेनापति जनरल परवेज मुशरफ्फ को अपदस्थ करने से पूर्व यदि किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श कर लेते तो शायद स्थिति बदल जाती और न उनका तख्ता पलटा जाता और न उनकी जान को खतरा होता। उस समय उनकी केतु-शुक्र-चन्द्र की दशा चल रही थी जो उनकी कुण्डली मे मारकेश है। चन्द, अष्टम भाव में अष्टमेश, वक्री मारकेश शनि से दृष्ट है और एक मारकेश ग्रह मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकता है । ऐसी भयावह परिस्थिति मे मुहूर्त की बडी उपयोगिता है।
हिन्दु ज्योतिष, नक्षत्रों पर आधारित है । अत मुहूर्त के अर्न्तगत नक्षत्रों के गुण व स्वभाव के आधार पर उनका अलग-अलग वर्गीकरण प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है । पंचाग के पाँचो अंगों-तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण तथा उनसे बनने वाले शुभ योग और भिन्न-भिन्न कार्यो के लिए उनके प्रयोग का वर्णन किया गया है । हिन्दु समाज में प्रचलित षोडश सस्कारों में से कुछ मुख्य सस्कार दिए गए हैं । इसी प्रकार मुहूर्तों में भी शपथ ग्रहण, ग्रह प्रवेश, ग्रह निर्माण आदि कुछ विशेष मुहूर्त दिए गए हैं । विवाह मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण संस्कार है । विवाह न होने या देर से होने, वैवाहिक जीवन में तनाव होने अथवा तलाक हो जाने के ज्योतिषीय कारणों का वर्णन इस भाग में किया गया है । मांगलीक दोष, द्वि-भार्या योग, कुमार योग, वैधव्य योग व विधुर योग से युक्त भ्रान्तियों को भी कुछ कुणडलियों की जाँच से स्पष्ट किया गया है।
सन्तान एक बहुत ही जटिल विषय है । कुछ लोग जीवन भर सन्तान के लिए देवी-देवताओं से मन्नतें माँगते रहते है किन्तु नि:सन्तान रह जाते है । कुछ माता-पिता पुत्रोत्पत्ति के लिए तरह-तरह के उपाय व पूजा पाठ करते रहते हैं किन्तु उनके यही केवल कन्याओं का ही जन्म होता है। कुछ महिलाए गर्भवती होने पर भी बच्चे को जन्म नहीं दे पाती और बच्चे की गर्भावरथा में ही क्षति हो जाती है । क्या यह सब किसी पूर्व जन्म के शाप के कारण होता है 'इन सब भिन्न-भिन्न स्थितियों के ज्योतिषीय कारणो को उन जातको की कुण्डलियो के विश्लेषण द्वारा दर्शाया गया है जिन्हें इस विषय पर परामर्श दिया गया था।
विवाह और सन्तान के सदर्भ में विशेषतया प्राचीन ज्योतिष शास्त्रों में दिए गए योगों का प्रतिपादन तथा अपने शोध कार्य व अनुभव द्वारा पाए गए नियमों का पराशरी जैमिनी और अष्टकवर्ग पद्धति से तथ्यो के आधार पर सहज व सरल भाषा मैँ विस्तार से वर्णन किया गया है। यह पुस्तक ज्योतिष के विद्यार्थियों की ज्योतिष-जिज्ञासा व आवश्यकता को ध्यान मे रखते हुए लिखी गई है और आशा है कि यह सभी ज्योतिष मे रूचि व आस्था रखने वालो के लिए लाभदायक सिद्ध होगी।
विषय-सूची
भाग-I मुहूर्त
प्रस्तावना
(i) (viii)
1
मुहूर्त और उसकी उपयुक्ता मुहूर्त क्या है? आधुनिक परिपेक्ष में मुहूर्त की उपयुक्ता
1-2
2
मुहूर्त के मुख्य भाग
3-17
3
शुभ व अशुभ योग
18-23
4
गोचर स्थिति व शोडष संस्कार
24-30
5
कुछ विशेष मुहूर्त
31-48
भाग II विवाह
7
विवाह का सामाजिक स्वरूप
49-76
8
विवाह के समय का निर्णय पराशरी पद्धति व अष्टकवर्ग विधि।
77-82
9
विवाह सम्बन्धी विशेष स्थितियाँ
83-93
10
कुमार यमग अथवा विवाह न होन का योग इसके ज्योतिषीय कारण।
94-102
11
वैधव्य योग अथवा पति का निधन
103-109
12
विधुर योग अथवा पत्नि की मृत्यु
110-114
भाग III सन्तान
13
सन्तानोत्पत्ति पर पूर्व पुण्य कर्मो का प्रभाव।
115-116
14
सन्तानोत्पत्ति के समय के निर्णय के लिए अष्टकवर्ग विधि का प्रयोग। पराशरी सिद्धान्तों और अष्टकवर्ग विधि के समन्वय से विश्लेषण।
117-124
15
सन्तानोत्पत्ति में लडके या लडकी के जन्म का निर्धारण कन्या के जन्म का योग।
125-156
16
सन्तान क्षति अथवा गर्भपात शास्त्रीय नियमो का आधुनिक परिपेक्ष में सत्यापन।
157-181
17
निस्सन्तान योग बच्चो का जन्म न होने के ज्यातिषीय कारण शास्त्रीय नियमों का कुण्डलियों के विश्लेषण से प्रतिपादन, पराशरी व जैमिनी पद्धति का प्रयोग।
182-207
18
पूत कपूत क्यों-पिता-पुत्र संबंध पुत्र-पिता कटु सम्बान्धों के ज्योतिषीय कारण।
208-215
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