तीन सौ महत्त्वपूर्ण योग
तीन सौ महत्त्वपूर्ण योग पुस्तक उन योगों को प्रस्तुत करती है जो विशेष ज्योतिष-प्रवृत्तियों को दर्शाने वाले हैं । सव ग्रह योगों को योग तथा अरिष्ट अथवा सौभाग्य तथा दुर्भाग्य-दो भागों में बाँटा गया है । यह पुस्तक हमें विभिन्न प्रचलित योगों से अवगत कराती है । सब महत्त्वपूर्ण, सुव्यवस्थित तथा क्रमबद्ध योगों का वर्णन इस पुस्तक में किया गया है ताकि इन योगों से व्यावहारिक जन्मकुण्डली बनाई जा सके । अत: इस पुस्तक की यही मान्यता है कि यह प्रथम पुस्तक है जो सब प्रकीर्ण जानकारी को व्यावहारिक तथा सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करती है ।
डॉ० बी०वी० रमन
डॉ० बी०वी० रमन,ज्योतिष पत्रिका , जो १८१५ में स्थापित की गई थी, के मुख्य सम्पादक अपने जीवनकाल तक रहे । वह ज्योतिर्विद तथा ज्योतिष के अनेक ग्रन्थों के रचयिता थे । उनके ग्रंथ स्रोत रूप में अन्य लब्धप्रतिष्ठित लेखकों द्वारा मान्य थे । उन्होंने अनेक पुस्तकों, सम्भाषणों तथा शोधकार्यो द्वारा विदजनों का ध्यान ज्योतिष- शास्त्र, नक्षत्र-विद्या तुथा खगोल-शास्त्र की ओर आकर्षित किया और मनुष्य के जीवन में इन विधाओं के महत्त्व को स्थापित किया ।
नौवें संस्करण की भूमिका
तीन सौ महत्वपूर्ण योग पर नवां संस्करण प्रस्तुत करते हुए मुझे हर्ष हो रहा है । इस नये संस्करण में संशोधन किया है और कुछ जगहों पर दुबारा लिया गया है ।
काफी भयभीत करने वाले कालसर्प योग पर अनुबन्ध से निस्संदेह रूप सं इस पुस्तक का महत्व बढ़ जायेगा । विभिन्न योगों की विषय सूची सरलता से संदर्भ के लिए काफी लाभप्रद सिद्ध होगी ।
ज्योतिष पर मेरी पुस्तकों के प्रति शिक्षित व्यक्तियों द्वारा रुचि दर्शाने के लिए मैं उनका आभारी हूं । सातवां संस्करण सितम्बर ११७८ में प्रकासित हुआ था और कुछ ही महीनों के भीतर बिक गई । मुझे विश्वास है कि यह संस्करण भी काफी स्वागत के साथ पूवंवत् स्वीकार किया जायेगा ।
इस संस्करण में सांगोपांग संशोधन करने में सहायता के लिये अपनी सुपुत्री गायत्री देवी रमन, सावधानी पूवंक प्रूफ में संशोधन करने के लिये अपने सुपुत्र दी. निरंजन बाबू और बी० सच्चिदानन्द बाबू और इस नये संस्करण को आकर्षक रूप से प्रकासित करने के लिये अहि. बी. एच. प्रकाशन के मेसर्स पी. एन. कामत और जी० के० अनन्तरम का धन्यवाद करता हूं ।
प्रस्तावना
मनुष्य के सामाजिक जीवन में ज्योतिष का अत्यन्त महत्व है । मानव की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के कारण ज्योतिष के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है । अनेक आवश्यकताओं के साथ ज्योतिष का एक निश्चित संबन्ध है जिससे समाज में मानव आवश्यकताओं का विभावन किया जा सकता है । जीवन में सफलता मुख्यत: सम्पन्नता या गरीबी पर निर्भर करती है । ज्योतिष में योमों का उद्देश्य धन, प्रसिद्धि, श्रेणी, स्थिति, खराब स्वास्थय और दुर्भाग्य की सीमा दर्शाना है जो पूर्व जन्म के अपने कर्मेां के अनुसार इस जीवन में मानव के जीवन में प्राप्त होती है । दूसरे शव्दों में ग्रहों के विभिन्न विशिष्ट योग भौतिक और मनःप्रवृत्ति योग फल दर्शाते हैं जो हमारे वर्तमान पर्यावरण की स्थिति नियत करते हैं । हम किस सीमा तक अपने प्रयासों से विरासत में प्राप्त फलों का प्रीतसंतुलन कर सकते हैं । विशेषतायें जो प्रमुख हैं और वह जो अप्रभावी हैं इत्यादि । यह निश्चित रूप से कहा या सकता है कि ग्रहों के संयोजन को योग कहते हैं किन्तु सभी संयोजन योग नहीं हो सकते । केवल विशिष्ट संयोजनों को ही योग कहा जाता है । इस पुस्तक में मैंने उन महत्वपूर्ण योगों का सावधानी पूर्वक चयन करने का प्रयास किया है जो योगों की प्रतिष्ठा यदु। सकते हैं और वे निश्चित शारीरिक या मानसिक स्थिति अथवा धन, सौभाग्य या दुर्भाग्य की सीमा का संकेत देते हैं । इधर उधर से योगों का संग्रह करना आसान है किन्तु प्रमुख योगों का, जो जीवन की प्रमुख घटनाओं में सही उतरते हैं, चयन करना कठिन ही नहीं बल्कि जोखिम भरा है । इस पुस्तक को हम एक अनुसन्धान परक पुस्तक कह सकते हैं क्योंकि इसमें प्रयुक्त सामग्री हमारे द्वारा किये गये अनुसन्धान की योजना का एक अंश है । ऐसा प्रतीत .होता है कि आधुनिक ज्योतिषी पाये गये योगों का अध्ययन करने के लिये अन्वेषण के क्षेत्र को अनदेखी कर देते हैं । यह भारतीय फलित ज्योतिष का सार होता था । अधिकतर आधुनिक लेखक कुछ सामान्य राजयोग या अरिष्ट योग के अतिरिक्त योग के विषय पर मौन हैं । इसी कारण से योगों के फलित महत्व पर काफी दिनों तक पुस्तक की मांग की जा रही थी और इस मांग को पूरा करने के लिए प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित की गई है । काफी पहले यह मांग मेरे पूज्य दादा जी. बी सूर्यनारायण राव द्वारा पूरी की गई थी जिनकी 'सत्य योग मंजरी'' नामक पुस्तक में इस विषय पर कुछ महत्वपूर्ण योगों की चर्चा की गई है । किन्तु मैंने महसूस किया कि सभी महत्वपूर्म योगों पर एक प्रणालीबद्ध पुस्तक प्रकाशित की जाय जिसमेंउदाहरण स्वरूप कुछ जन्म कुण्डलियों का समावेश हो । यह पुस्तक बुनियाद होगी जिद पर भविष्य का अनुसंधान आधारित होगा ।
अत: तीन सौ महत्वपूर्ण योग का उद्देश्य योगों के बारे में कार्यचालन ज्ञान देना है जिसमें कुण्डली की प्रवृत्तियों का विशिष्ट संकेत मिलता है । इस प्रयोजन के लिये अपेक्षित ज्योतिष गणित का प्रारम्भिक ज्ञान पर्याप्त है । योगों को स्पष्ट करने में उद्- भूत मुद्दों के अनेक उदाहरण शामिल किए गये हैं और चूंकि इनका पूर्ण रूप से विवेचन किया गया है अत: इन सिद्धान्तों का अनुपालन करने में पाठकों को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिये । विवादास्पद स्वरूप के मुद्दों पर तर्क नहीं दिया गया है । उनकी व्याव- हारिक ग्राह्यता को ध्यान में रखकर उनपर विचार किया गट है ।
सभी योगों को मुख्यत: दो भागों में बांटा जा सकता है अर्थात योग और अरिष्ट । यद्यपि योग शब्द का अर्थ ग्रहों का संयोजन है, व्यवहार में योग का प्रयोग सौभाग्य वाले ग्रहों के योगों के लिए किया जाता है । अरिष्ट सामान्यत: दुर्भाग्य के लिये होता यद्यपि उन्हें भी योग शब्द में शामिल किया गया है । राजयोग ( राजनीतिक शक्ति), धन योग ( धन के लिये) या ज्ञान योग ( उच्च ज्ञान और आध्यात्मिकता के लिये योग) को योग कहा जा सकता है ।
इस पुस्तक के प्रथम कुछ पृष्ठों में योग की व्याख्या के विषय पर कुछ विवेचन दिया गया है । ज्योतिष के विद्यार्थियो को इसका अवश्य अध्ययन कर ना चाहिये क्योंकि इससे वे किसी विशेष योग के सही प्रभाव का मूल्यांकन कर सकेगे । नाभस योगों सहित विशेष योगों पर उदाहरण के म् साथ विचार किया गया है । जब दो या अधिक योग एक साथ हों, वैसा कि आश्रय और आकृति योग के सम्बन्ध में हो सकता है, तो कठिनाई होती है । इनको समुचित व्याख्या के साथ स्पष्ट किया गया है ।
इस पुस्तक के बाद का भाग अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें राजयोग, अरिष्ट योग और नीच भंग राजयोग जैसे महत्वपूर्ण योगों पर विचार किया गया है जिसके- बारे में हाल ही में ज्योतिष के विद्यार्थियों द्वारा शंका की गई है । अन्तिम पृष्ठों पर समस्त विषय वस्तु का सार दिया गया है । पुस्तक के अन्त में दी गई उदाहरण स्वरूप जन्म कुण्डली पाठकों के लिए विशेष ध्यान देने योग्य है क्योंकि उसमें विद्यमान अनेक योगों में से केवल कुछ ही परिचालित हो सकते हैं और किस प्रकार । इसमें यह भी दिया गया है कि कुछ योगों के सम्बन्ध में संकेत जीबन भर प्रभावी रहता है जबकि कुछ अन्य योगों के सम्बन्ध में केवल एक विशिष्ट दशा के दौरान फल मिलता है हमेशा नहीं ।
जो पुस्तक मुख्यत: पुराने ज्योतिष द्वारा दिये गये सिद्धान्तों पर आधारित हो जैसा कि यह पुस्तक है, उन्हें मूल पुस्तक होने का दावा नहीं किया जा सकता । परन्तु मैं--महसूस करता हूं कि इधर उधर से सूचना को पहली बार एकत्र करके एक व्यवस्थितढंग से प्रस्तुत करने तथा व्यावहारिक उपयोगिता के योग्य बनाने के लिये हम श्रेय का दावा कर सकते हैं । इसकी सत्यता इस बात से स्पष्ट है कि इस पुस्तक में लगभग१५० व्यावहारिक उदाहरण दिये गये हैं जिनमें से अधिकतर का वास्तविक जीवन से संग्रह किया गया है ।
मेरे साथ अनेक पाठक, विद्वान्, बुद्धिजीवी, विद्यार्थी और व्यवसायी हैं । अत: विभिन्न रुचियों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लेखन की अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं विशेष कर यह कि ज्योतिष के व्यावहारिक पहलू से सम्बन्धित पुस्तक का मात्र उद्देश्य विषय वस्तु को प्रस्तुत करना नहीं है । पाठकों को संतुष्ट करने का एकमात्र मार्ग और साथ ही सार तत्र को सुरक्षित रखने के लिये श्रेणीबद्ध रूप में प्रत्यक्षत: नीरस सिद्धान्तों को प्रस्तुत करना और अभ्युक्तियों के साथ कठिन भागों को सरलता से पठनीय बनानाबनाना है जिसमें न केवल कठिन मुद्दों की व्याख्या की जायगी बल्कि इस विषय से अध्ययन में और अधिक रुचि पैदा करने में प्रोत्साहन मिलेगा ।
आशा है कि इस पुस्तक में प्रस्तुत योगों के विवेचन से इस विषय पर आगे बढ़ने में पाठकों को प्रोत्साहन मिलेगा ।
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