प्रकाशकीय
हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसने राम का नाम न सुना हो और रामकथा से परिचित न हो। अपने देश में ही क्यों, संसार के अनेक देशों में राम-भक्ति की धारा प्रवाहित है। दक्षिण-पूर्व एशिया में तो समूचा लोकजीवन राम की भक्ति से ओतप्रोत है। सच बात तो यह है कि राम के नाम में और उनके चरित्र में कुछ ऐसा जादू है कि उनकी कथा को एक बार पढ़ लेने से तृप्ति नहीं होती, उसे बार-बार पढ़ने को जी चाहता है।
इस पुस्तक के चार भागों में हमने राम के जीवन के प्रमुख प्रसंगों को लेकर सारी कथा इस प्रकार दीं है कि सामान्य पढ़े-लिखे पाठक भी इसे आसानी से समझ सकते हैं। बचि-बीच में चुनी हुई चौपाइयाँ तथा दोहे भी दे दिये हैं, जिससे यह पुस्तक और भी सरस तथा रोचक बन गई है।
हमें पूरा विश्वास है कि सभी वर्गों और क्षेत्रों के पाठक इस पुस्तक का पूरा लाभ न केवल स्वयं लेंगे, अपितु दूसरों को भी लेने की प्रेरणा देंगे।
अनुक्रमण
राम-जन्म
1
जन्म
9
2
नामकरण
14
3
बाल-लीला
16
4
विद्याभ्यास
19
5
विश्वामित्र की माँग
21
6
यज्ञ-रक्षा
26
7
जनकपुरी कीं ओर
29
8
नगरी में स्वागत
32
प्रथम दर्शन
35
10
स्वयंवर में
38
11
धनुष-भंग
41
12
परशुराम-संवाद
44
13
सुखद-संवाद
50
बारात की शोभा
52
15
जनकपुरी में स्वागत
55
विवाह-संस्कार
56
17
उसी मण्डप में
59
18
सत्कार
61
हृदय-स्पर्शी विदाई
62
20
वापसी
64
अयोध्यापुरी में
65
राम-वनगमन
22
राजतिलक का विचार
71
23
मन्थरा की कुटिलता
73
24
कैकेयी का दुराग्रह
75
25
पुत्र की कर्तव्य-निष्ठा
78
सीताजी को रोकने का प्रयत्न
82
27
लक्ष्मण भी तैयार हो गये
84
28
माता-पिता और पुरवासियों की वेदना
88
प्रस्थान
89
30
निषाद-मिलन
91
31
केवट की अनोखी चाह
93
ऋषि-मुनियों के आश्रम में
94
33
दशरथ-मरण
99
34
चित्रकूट में वास
102
लक्ष्मण का कोप
105
36
भरत-मिलाप
106
37
राम नहीं लौटे
110
विदाई
113
39
अनुसूया का उपदेश
115
40
राम की प्रतिज्ञा
119
मुनि अगस्त से भेंट
122
42
शूर्पणखा का प्रपंच
128
43
खर-दूषण-वध
131
रावण के दरबार में
135
सीता-हरण
45
मारीच और रावण का प्रपंच
141
46
कंचन-मृग के पीछे
143
47
146
48
जटायु की वीरगति
148
49
सीता के वियोग में
151
शबरी की भक्ति
153
51
नारदजी को उपदेश
157
राम-हनुमान मिलन
161
53
सुग्रीव से भेंट
165
54
बालि-वध
171
वर्षा-वर्णन
178
शरद-वर्णन
182
57
सुग्रीव पर कोप
184
58
सीता की खोज में
188
हनुमान का साहस
191
60
भक्त विभीषण से भेंट
194
रावण की धमकी
197
सीता को ढाढ़स
200
63
अशोक वाटिका में युद्ध
204
रावण की सभा में
206
लंका दहन
212
66
हनुमान की वापसी
216
67
सीता की दशा का वर्णन
220
68
लंका को ओर
223
लंका-विजय
69
मंदोदरी की सलाह
227
70
विभीषण का अपमान
228
शरणागत पर कृपा
233
72
समुद्र पर पुल
238
अंगद-रावण-संवाद
241
74
अंगद का पैर जमाना
246
लंका पर चढ़ाई
249
76
युद्धारम्भ
251
77
मेघनाद का युद्ध-कौशल
254
लक्ष्मण पर शक्ति-प्रयोग
266
79
कालनेमि का माया-जाल
269
80
भरत को भ्रम
263
81
राम का विलाप
लक्ष्मण की मूर्च्छा-भंग
268
83
कुम्भकरण-वध
270
मेघनाद-वध
273
85
रावण से युद्ध
277
86
रावण-वध
282
87
विभीषण का राजतिलक
287
सीताजी का आगमन
288
अयोध्या को प्रस्थान
290
90
मार्ग में
293
हनुमान भरत से मिले
296
92
आनन्दमग्न अयोध्या
300
मंगल-मिलन
302
राम का राजतिलक
307
95
मित्रों को विदाई
310
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