पुस्तक के बारे में
सर्वतोमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार उमाशंकर जोशी (1911-1988) की आरंभिक शिक्षा गाँव बामण। में तथा हाईस्कूल की पढ़ाई पास के कस्बे ईंडर (उत्तर गुजरात) में हुई । उच्च अध्ययन के लिए अहमदाबाद आए । 1930 में गांधीजी के आह्वान पर स्वाधीनता आदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण कारावास झेलना पड़ा । जेल से निकलकर गुजरात विद्यापीठ में काका कालेलकर के सान्निध्य में रहे । यही पर । 1931 में उनका प्रथम खंडकाव्य विश्वशांति नवजीवन से प्रकाशित हुआ । 1932 में स्वाधीनता आदोलन के दौरान पुन: कारावास भोगा । जेल में ही उनका कहानी लेखन तथा नाट्यलेखन आरंभ हुआ । इसी समय वे मार्क्स के विचारों से भी प्रभावित हुए । 1939 में उनका काव्यसंग्रह निशिथ प्रकाशित हुआ जिस पर 1968 में उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ।
उमाशंकर जोशीने गुजराती भाषा में अपनी विपुल सर्जन राशि से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है । उनकी रचनाओं में समकालीन भारतीय जीवन का कालखंड अपनी समग्रता में अभिव्यक्त हुआ है ।
उमाशंकर जोशी । 1978 में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष चुने गए । ‘विश्वभारती’ शांतिनिकेतन के आचार्य पद (1979)। को भी सुशोभित किया ।
उमाशंकर जोशी लगभग आधी सदी तक गुजराती में अपनी तथा परवर्ती पीढ़ी के लिए प्रेरणा तथा चुनौती बने रहे । रवीन्द्रनाथ के बाद अखिल भारतीय स्तर पर उनकी जोड़ के प्राज्ञ साहित्यकार बहुत कम हैं ।
प्रस्तुत विनिबंध में गुजराती-हिन्दी के सुपरिचित निबंधकार समीक्षक और अनुवादक भोलाभाई पटेल ने उमाशंकर जोशी के वाङ्मय व्यक्तित्व का परिचय प्रस्तुत किया है । भोलाभाई पटेल गुजरात युनिवर्सिटी में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर-अध्यक्ष तथा गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहे हैं । देवोनी घाटी के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा इयारुइगंम (असमिया) के लिए अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं । भारत सरकार द्वारा पद्यश्री से भी अलंकृत हुए है ।
अनुक्रम
1
एक पहाड़ी झरने की सागरयात्रा
2
मंगल शब्द से मौन तक : कविता
9
3
ग्रामीण जीवन का यथार्थ : नाटक
26
4
प्रयोगधर्मी कहानियाँ
33
5
अन्य सर्जनात्मक गद्य
40
6
आस्वादमूलक अवबोधकथा : समीक्षा
50
7
गांधीगिरा के अनन्य साधक
62
8
सर्वतोमुखी प्रतिभा के साहित्यकार
68
परिशिष्ट
74
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