उपनिषदों में प्रतिपादित आध्यात्मिक विद्या का विवेचन करने वाली पुस्तकों की कमी साहित्य जगत् में नहीं है। सभी वैदिक विद्वान् और रचनाकार निर्विरोध रूप में यह स्वीकार करते हैं कि आधयात्मिक विद्या के सभी तत्व उपनिषदों में राशिभूत हैं, कहीं विशद और कहीं सूक्ष्म रूप में। अपनी-अपनी सारग्राहिणी मेधा के अनुरूप उन्होंने इन तत्वों का उद्घाटन करने का प्रयास भी पर्याप्त किया है। यह सब होते हुए भी प्रस्तुत पुस्तक की विलक्षणता और महत्ता की क्षति नहीं होती। अपनी नूतन विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ समालोचक, अनुसधित्सु और साधारण जिज्ञासु सभी के लिए समान रूप से उपादेय है।
'औपनिषदिक अध्यात्म विज्ञान' पुस्तक की अनन्य साधारण विलक्षणता है: पुरातन कलेवर में नूतनता की सृष्टि। आत्मा, ब्रह्म, जगत्, आचार एवं मोक्ष-ये ही उपनिषदों के शाश्वत तत्व हैं किन्तु इन तत्वों के स्वरूप का प्रकाशन जिस उद्धरण बहुल तार्किक पद्धति से किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। इतना ही नहीं द्वैतवाद, अद्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, शुद्धाद्वैत तथा त्रैतवाद आदि दाशनिक सिद्धान्तों की विभिन्न धाराएं किस प्रकार उपनिषदों से प्रसृत हुई. इसका युक्तियुक्त विवेचन भी इस ग्रन्थ में पढ़ने को मिलेगा। जो अध्येता आचार्य शंकर, रामानुज, निम्बार्क, मध्यक, वल्लभ, वाचस्पति मिश्र, विज्ञानभिक्षु और स्वामी दयानन्द के औपनिषदिक मन्तव्यों को एकत्र देखने के अभिलाषी है तथा उनकी समीक्षा में अभिरूचि रखते हैं, उनके लिए यह ग्रन्थ अवश्यमेव अनुशीलनीय है।
इस पुस्तक की दूसरी विलक्षता है, इसमें वर्णित विभिन्न योगमार्गों का संचय और समन्वय। यह तथ्य-समन्वयता सबको ज्ञात नहीं है कि समस्त योग पद्धतियों का मूल स्रोत उपनिषदों से ही प्रकाशित हुआ है। पातंजल योगसूत्र में वर्णित राजयोग, क्रियायोग, अष्टांगयोग, भक्तियोग आदि योग पद्धतियों के बीज उपनिषदों में विद्यमान हैं। इस पुस्तक में उक्त पद्धतियों के बीजों को उपनिषदों से संकलित कर अंकुरित करने का प्रयास भी पहली बार किया गया है। योगविद्या के जो जिज्ञासु विभिन्न योगधाराओं में एकत्र स्नान करने के रसिक हैं, वे अवश्य ही इसमें अवगाहन कर आनन्दित होंगे।
4 जुलाई 1955 को दिल्ली प्रांत के ओमनगर (शिकारपुर) ग्राम में जन्में डॉ. ईश्वर भारद्वाज, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार जाजत राखण्ड भारत में योग के मर्मज्ञ विद्वान के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें उ.प्र. के महामहिम राज्यपाल श्री विष्णुकान्त शास्त्री जी द्वारा योग के क्षेत्र में अप्रतिम कार्य के लिए 'विशिष्ट नागरिक सम्मान' से सम्मानित किया गया। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय तथा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार से एम.ए. हिन्दी, आचार्य संस्कृत तथा एम.ए. दर्शन की शिक्षा प्राप्त कर गुरुकुल साहित्य कांगड़ी विश्वविद्यालय से ही 'संन्यासयोग' पर पीएच-डी. तथा डी.लिट् की उपाधि हेमवती नन्दन बहुगणा विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल से प्राप्त की। 1982 में योग में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में योग विभाग की स्थापना की तथा उसका उत्तरोत्तर विकास करके प्रमाण-पत्र, डिप्लोमा, स्नातक कक्षाएं, स्नातकोत्तर कक्षाएं तथा पीएच डी. तक शोध की व्यवस्था इन्हीं की देन है। इन्हें योग के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न विश्वविद्यालयों / संस संस्थानों, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, केन्द्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद्, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा अन्य संस्थाओं के द्वारा योग विशेषज्ञ के रूप में अपनी समितियों में मनोनीत किया जाता है। योग के साधना पक्ष पर चिन्तन तथा योग का प्रामाणिक ज्ञान देने के लिए कृतसंकल्प डॉ. भारद्वाज का जीवन योग के प्रामाणिक विद्वान के रूप में आमंत्रित किया जाता हैं।
उपनिषदें ज्ञान की वह दिव्य राशि हैं, जिन्हे काल भी कवलित करने में अक्षम रहा है। इस ज्ञान के द्वारा अविद्या के बीज का नाश करके परब्रह्म की प्राप्ति की जा सकती है। यह ज्ञान मनुष्य के कष्टों की आत्यंतिक निवृत्ति करने में सक्षम है। यदि हमें चिरकाल तक आनंद में रहना है तो उपनिषद् ज्ञान इसका मुख्य उपाय है क्योंकि ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः"|
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