भारत के जनजातीय छात्र-छात्राओं की शिक्षा की समस्या चिन्ता का विषय है। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी प्रगति धीमी होने के कारण उनका सर्वांगीण विकास उस गति से नहीं हो रहा है जिस गति से होना चाहिए। जनजातीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तक एवं अन्य पूरक पठन-सामग्री का नितान्त अभाव है और यह उनकी शिक्षा की प्रगति में एक बहुत बड़ी बाधा है। उनका अलिखित साहित्य लोकगीतों, लोककथाओं, पहेलियों एवं मुहावरों से भरा पड़ा हैं। लेकिन इस साहित्य का उपयोग पाठ्यपुस्तक एवं अन्य पठन-सामग्री तैयार करने में नाम मात्र के लिए ही किया जा रहा है। इससे पहले कि यह अलिखित साहित्य जनजातीय क्षेत्रों से लुप्त हो जाए, इसका संग्रह करना अत्यावश्यक है। संग्रह के बाद इसका उपयोग शिक्षोपयोगी कार्यों में भली-भांति किया जा सकता है।
इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् के अनौपचारिक शिक्षा तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति शिक्षा विभाग ने जनजातीय साहित्य का संग्रह कर उसे लिपिबद्ध करने का प्रयास किया है। संथाल, उराँव, मुंडा, गोंड आदि जनजातियों के लोकगीतों, लोककथाओं, पहेलियों, मुहावरों एवं उनके जीवन एवं संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर सामग्री एकत्रित की गई है। प्रस्तुत पुस्तिका उसी प्रयास का एक महत्वपूर्ण अंग है। आशा है यह पाठकों के लिए रुचिकर सिद्ध होगी और इसका उपयोग छात्र-छात्राओं हेतु पाठ्यपुस्तकों एवं अन्य पठन-सामग्रियों की रचना में किया जा सकेगा।
इस साहित्य की संरचना में सम्बद्ध राज्य सरकारों, जनजातीय कल्याण एवं शोध संस्थाओं, जनजातीय गांवों के वयोवृद्ध ज्ञाताओं एवं अन्य कई लोगों ने अपना अमूल्य समय एवं सहयोग देकर हमें अनुगृहीत किया है। हम उन सभी के आभारी हैं।
भारत का जनजातीय समुदाय शिक्षा की दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है। इसके बहुत से आर्थिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कारण हैं। शिक्षा की वर्तमान पद्धति भी जनजातीय जीवन एवं संस्कृति से मेल नहीं खाती है।
पाठ्यपुस्तक के अतिरिक्त और कोई भी पठन-सामग्री जनजातीय छात्रों को उपलब्ध नहीं है। जो पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध हैं उनमें भी जनजातीय जीवन एवं संस्कृति की कोई झलक नहीं मिलती। जनजातीय साहित्य, लोककथाओं, लोकगीतों, पहेलियों एवं मुहावरों से भरा पड़ा है। हालांकि यह सारा साहित्य अलिखित रूप में है, फिर भी इसका सदुपयोगं पठन-सामग्री तैयार करने में भली-भांति किया जा सकता है। जनजातीय साहित्य निर्माण की दिशा में कोई उल्लेखनीय काम अभी तक नहीं हुआ है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् के अनौपचारिक शिक्षा तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति शिक्षा विभाग ने जनजातीय साहित्य तैयार करने और इसका उपयोग पाठ्यपुस्तकों एवं अन्य पूरक पठन-सामग्रियों में करने की दिशा में कदम उठाया है। अनेक जनजातियों की लोककथाओं, लोकगीतों, पहेलियों एवं मुहावरों का संग्रह किया जा चुका है। कुछ जनजातियों के जीवन एवं संस्कृति की झलकियाँ भी तैयार की गई हैं। इस प्रकार की काफी सामग्री जुटाने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि निकट भविष्य में जनजातीय साहित्य का समुचित निर्माण हो सकेगा।
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