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उत्तररामचरितम्: Uttara Ramacharitam ("Sona" with Sanskrit-Hindi Explanation Episode III)

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Item Code: HBB897
Author: Bhavabhuti
Publisher: HANS PRAKASHAN, DELHI
Language: Sanskrit Text with Word to Word Meaning and Hindi Translation
Edition: 2025
ISBN: 9789394184411
Pages: 121
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 130 gm
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Book Description
प्राक्कथन

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापथे प्रवर्तते। गुणाति तत्त्वं हितमिच्दुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरुर्निगद्यते ॥ योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसराम्भोधी निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मक निष्ठारतः । शिष्याणां शुभचित्त शुद्धिजनकः संसर्ग मात्रेण यः सोऽन्यांस्तारयति स्वयं च तरति स्वार्थं विना सदगुरुः ॥

महाकवि भवभूति द्वारा प्रणीत उत्तररामचरित नाटक का संस्कृत, हिन्दी तथा अंग्रेजी में अनेक व्याख्या एवं अनुवाद प्रकाशित हैं। भवभूति का उत्तररामचरित संस्कृत साहित्य का अनुपम ग्रन्थ है।

नाटककार भवभूति भावों एवं अभिव्यञ्जनाओं के महाकवि हैं। साहित्यशास्त्र के आचार्यों में उत्तररामचरित के प्रणेता भवभूति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कवियों के लिए यह व्यावहारिक मार्ग का निर्देश करता है। भरत के नाट्यशास्त्र के सिद्धान्तों का संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित विवेचन इस ग्रन्थ की विशेषता है।

उत्तररामचरित के अभिज्ञानशाकुन्तल से या भवभूति को कालिदास से उत्कृष्ट बनाने वाली उक्तियाँ संस्कृत में प्राचीन काल से उधृत रही हैं। संस्कृत में पुरातन प्रचलित 'कवय कालिदासाद्याभवभूतिर्महाकविः' 'उत्तरे रामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' आदि का प्रतिवाह संस्कृत के मर्मज्ञों की ओर से नहीं हुआ। इस नाट्य विभूति में भवभूति ने जिस शिष्ट, मर्यादित और गंभीर नाट्यशैली का परिचय दिया है वह दूसरे सभी नाटककारों के लिए स्पृहा की वस्तु है।

भूमिका

संस्कृत भाषा में रम्य तथा हृदयावर्जक रचना की समीक्षा की पद्धति को काव्यशास्त्र, अलङ्कारशास्त्र, साहित्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र या आलोचना शास्त्र कहते हैं। भवभूति के उत्तररामचरित में भाषा, भाव, रस, रीति, छन्द आदि काव्य के गुणों तथा वस्तु, नेता, संवाद, अभिनय, देश, काल, चरित्र चित्रण, प्रभाव आदि नाट्यगुणों की जैसी पुष्टि की है वह अन्यत्र किसी नाटककारों में दिखायी नहीं देता। भवभूति के अन्य दो नाटक मालतीमाधव और महावीर चरित्र इस दृष्टि से समीचीन नहीं है लेकिन उत्तररामचरित में उनकी काव्यकला और नाट्यकला ने संस्कृत के सभी कलाकारों को परास्त कर दिया है। भवभूति के जीवन वृत, समय और कृतियों की स्थिति स्पष्ट है। उन पर बहुत से व्याख्याकारों द्वारा बहुत बार कुछ लिखा जा चुका है।

भवभूति का जीवन वृत्त

संस्कृत के कवियों में अपना परिचय देने की प्रवृत्ति नहीं देखी जाती है परन्तु भवभूति के सम्बन्ध में ऐसी बात नहीं है। उन्होंने अपने रूपकों की प्रस्तावना में अपने सम्बन्ध में कुछ जानकारियाँ दी हैं। इन जानकारियों के अनुसार उनका जन्म कश्यप वंश में उदुम्बर नामक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा को पढ़ने वाले आहिताग्नि थे। वे विदर्भ देश (आधुनिक वरार) के अन्तर्गत पद्मपुर के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम नीलकण्ठ, माता का नाम जातुकर्णी और पितामह का नाम गोपाल था। भवभूति के पूर्वज अपने सदाचार तथा वेदाध्ययन के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध थे। वे पंक्तिपावन थे तथा पांच अग्नियों की स्थापना करने वाले थे। उन्होंने सोमयज्ञ भी किये थे, वे श्रौत के परंवेत्ता थे।

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