स्थूल ब्रह्माण्ड आपेक्षिकता के सिद्धांतो का पालन करता है और सूक्ष्म स्तर पर क्वाण्टम यान्त्रिकी के नियम लागू होते है | कोई ऐसा एकीकृत सिद्धांत अभी तक विकसित नहीं किया जा सका है जो दोनों स्थितियों में ब्रह्माण्ड की सटीक व्याख्या का सके | इसका समाधान हमें वैदिक चिन्तन में दिखाई देता है जहाँ ब्रह्म की अवधारणा की गयी है | वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं महानतम से भी महान केवल 'एक' है जो सबका कारण भी है और परिणाम भी | वह अंदर भी है, बाहर भी, है भी और नहीं भी | अव्यक्त है और व्यक्त भी | मैक्सप्लांक की सम्प्रदान योग्य ऊर्जा की अविभाज्य न्यूनतम इकाई ही वेदोक्त अविनाशी अविभाज्य 'आत्मा' है जो 'परमात्मा' का अंश है और ब्रह्माण्ड के समस्त जड़-चेतन में व्याप्त है | विज्ञानं की 'सिंग्युलैरिटी' और वेदोक्त हिरण्यगर्भ कदाचित एक ही है, जहाँ से ब्रह्माण्ड की उत्पति हुई | प्रकाशमय ब्रह्म से ही समस्त पदार्थो की उत्पति हुई जो विज्ञान सम्मत है | वेद का कथन है की ब्रह्माण्ड का तीन-चौथाई भाग अदृश्य है | विज्ञान भी इसे मानता है और इसे कृष्ण ऊर्जा का कहा गया है |
'महाविस्फोट' का साक्षी प्रणव ही वह आदि स्पंदन जिसके साक्ष्य वैज्ञानिको को ब्रह्माण्डीय पृष्ठभूमि वितरण के रूप में मिले है और जिसकी गूंज समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त है | क्वाण्टम जगत की अनिश्चितता, अंतर्गुम्फन, अस्थानिकता, संदेशो का तत्काल सम्प्रेषण एवं समष्टि का भाव ब्रह्म की ही अनुभूति कराते है | ऐसे ही न जाने कितने अनसुलझे रहस्यों के समाधान हमें वेद में ही मिल सकते है |
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