वेद भारतीय संस्कृति के मूल आधार स्तम्भ हैं और वेदों के द्वारा अनुमोदित 'आवार' ही मनुष्य का प्रथम धर्म है (आवारः प्रथमो धर्मः) । जो आचरण सज्जनों के द्वारा किया जाता है, उसे भी सदाचार कढ़ते हैं, इसकी व्याख्या मनुस्मृति में वर्णित है-
तस्मिन् देशे व आचारः पारम्पर्यक्रमात् ।
वर्णानां सान्तरालानां स सदाचार उच्यते ॥
मनुस्मृति, 1.18
किसी भी प्रदेश में प्रामाणिक एवं प्रतिष्ठित जनों के द्वारा किया गया आचार-व्यवहार, जो कि परम्परा से अनुस्यूत हो, वह सदाचार कढा जाता है। इस सदाचार को पुष्ट एवं अनुकरणीय करने के लिए नीतिशास्त्रों का उदय हुआ। धर्मनीति, राजनीति और दण्डनीति इसी नीतिशास्त्र की विधाएँ हैं। इन तीनों का अन्योन्याश्रय सम्वन्ध है। धर्मनीति के विना राजनीति दस्युओं का आश्रय स्थल बन जाती है, निष्याण हो जाती है। अविवेकपूर्ण राजनीति में धर्म का स्थान नहीं होने से वह अनियंत्रित होकर विनाश को जन्म देती है।
नीतिशास्त्रीय वचनों का विकास वैदिक साहित्य, ब्राह्मण एवं उपनिषद्, पुराण, साहित्य, स्मृतिग्रन्थ, वीर साहित्य सभी में होता रहा है। धर्म और नीति से संवलित यह उपदेशपरक साहित्य अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों का ही साधन है। इन ग्रन्थों में लोक जीवन के आचार एवं व्यवहार के साथ जीवन की निःसारता का निरूपण भी हैं, जो मोक्ष का उपदेश करता है। भारतीय धर्म और दर्शन के तत्व को सरल एवं साररूप में प्रस्तुत करने वाले नीतिवचनों की सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य में प्राप्ति होती है तथापि महाभारत में विदुरनीति और विदुलोपाख्यान पहले ग्रन्थ हैं, जो पृथक् से नैतिक पुस्तक के रूप देखे जा सकते हैं। श्रीमदभगवद्गीता तो स्वयं भगवान के मुख से प्रवाहित धर्म, दर्शन एवं नीति का अद्भुत शब्द होने के कारण गौरवमयी धार्मिक पुस्तिका ही है। यही कारण है कि स्वयं महाभारतकार घोषणा करते हैं कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो कुछ यहाँ कहा गया है, वह अन्यत्र भी उपलब्ध होगा, परन्तु जो नहीं कहा गया, वह अन्यत्र कहीं प्राप्त नहीं होगा-
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् ववचित् ॥
महाभारत, 1.62.53
इस रूप में महाभारत विश्वकोष कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित एक लाख श्लोकात्मक यह महाग्रन्थ भारतीय संस्कृति का जाज्वल्यमान रत्नस्वरूप है। इसमें कौरवों-पाण्डवों के भीषण युद्ध में भारत के सर्वस्व विनाश की कथा वर्णित है। यह संस्कृत वाङ्गत्य का आधारस्तम्भ तथा उपजीव्य काव्यों के लिए अजस्रस्रोत है। ऐसे विश्वकोष रूप महाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत प्रजागर पर्व में विदुरनीति आठ अध्यायों में विस्तृत है।
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