कवि कालिदास की कृतियों के गहन अध्येता और उसकी अनुश्रुतियों के सटीक अनुशीलक डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित के कालिदास विषयक उपन्यास विद्योत्तमा को पढ़ते-पढ़ते अनायास मुझे अपने पाठशालीय शिक्षण काल का स्मरण हो आया। 'हिन्दी शिक्षावली' पाँचवाँ भाग, (पृ 115-18) में कालिदास सम्बन्धी तब उत्तरी भारत में मान्य अनुश्रुतियों पर आधारित नौवें पाठ में महाकवि कालिदास का जीवन-चरित्र में राजा शारदानन्द की विद्वत्तमा महासुन्दर गुणवती और बड़ी पण्डिता राजकुमारी के साथ विवाह करने को समुत्सुक परन्तु शास्त्रार्थ में उससे पराजित अत्यधिक क्षुब्ध पण्डितों ने षड्यन्त्र कर एक स्वरूपवान् परन्तु निपट अशिक्षित देहाती नवयुवा के साथ हुए सर्वथा मौन सांकेतिक शास्त्रार्थ में राजकुमारी को पराजित कर उस अशिक्षित-ग्रामीण नवयुवा के साथ उसका विवाह करवा दिया। उनकी सुहागरात तथा आगे की कथा सुज्ञात है। इस पाठ की कुछ ही उल्लेखनीय विशिष्ट बातों को उद्धृत करना आवश्यक प्रतीत होता है। उसमें कालिदास को मालवा के राजा विक्रमादित्य का सर्वोत्तम नवरत्न लिखा है।
'कालिदास सारस्वत ब्राह्मण थे। इनकी जन्मभूमि कश्मीर थी परन्तु बहुधा वे उज्जैन रहते थे।' कुछ विद्वान् कहते हैं कि ज्योर्तिविदाभरण कालिदास की बनाई हुई नहीं है, किसी जैन मत वाले ने रची है और कालिदास का नाम लिख दिया है। इस पुस्तक में शालिवाहन के प्रचलित किये शाका का उल्लेख है।
इधर कालिदास के जन्म स्थान सम्बन्धी डॉ. शिवानन्द नौटियाल का 'क्या महाकवि कालिदास गढ़वाली थे ?' शीर्षक एक विस्तृत लेख सम्मेलन पत्रिका (भाग 65, सं० 1-2, शक 1901) में प्रकाशित हुआ है, जो अधिकतर कालिदास की विभिन्न कृतियों में प्राप्त आन्तरिक प्रमाणों पर आधारित है। उसी लेख में यह उल्लेख मिलता है कि उस क्षेत्र में प्रचलित अनुश्रुतियों के अनुसार कालिदास काशी वासी थे, जिसके आधार पर वाल्टर रूबन ने काशी को उनका जन्म स्थान माना है। परन्तु अपने गहन अध्ययन के द्वारा कालिदास के ग्रंथों से प्राप्त आंतरिक प्रमाणों के आधार पर ही अपने बहुचर्चित तथा विद्वानों द्वारा अति प्रशंसित लेख 'देवगिरि : कालिदास की जन्म भूमि' लेख में डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित ने इन सबसे भिन्न स्थापना की है और 'मेघदूत' में वर्णित देवगिरि क्षेत्र को उसका जन्म स्थान माना है। तत्कालीन देवगिरि पर तब स्कन्द का सुविख्यात मंदिर था, आजकल वह 'देवडुंगरी' कहलाती है और उज्जैन-मंदसौर के सीधे मार्ग पर उज्जैन से 25 मील उत्तर-पश्चिम में (23' 31' 3' 75' 37' पूर्व पर) स्थित है।
डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित का लिखा "विद्योत्तमा' कालिदास संबंधी लघु-उपन्यास है। राजपुरोहित ने उचित समझा कि कबल इसके कि महाकवि सम्बन्धी किम्वदन्तियाँ और ख्यातें लुप्त हो जाये उनको साहित्य में प्रतिबिंबित कर लिया जाये। ये ख्यातें मुझे स्वाभाविक ही अवैज्ञानिक अनैतिहासिक लगती हैं। शायद औरों को भी लगें, स्वयं डॉ. राजपुरोहित भी इन्हें वैज्ञानिक नहीं मानते, पर इनका सृजित साहित्य में जाना कुछ बेजा नहीं। इसी दृष्टि से प्राचीन-मध्यकालीन इन साहित्य-ऐतिहासिक परम्पराओं और लोकविश्वासों को मुद्रित कर देने का स्वागत करता हूँ। आशा करता हूँ कि विज्ञ पाठक अपने नीर-क्षीर विवेक से उनके अध्ययन पर विचार करेंगे और उनकी असंदिग्ध आवश्यकता को सराहेंगे। राजपुरोहित का प्रयास इस अध्ययन से फलेगा। ललित गद्य में उनका यह प्रयत्न पाठकों के मनोरंजन का साधक बने ।
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