विमल सुधा- Vimal Sudha (Collection of Poetry)

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Item Code: HBA816
Author: Rajkumar Raj
Publisher: Rakhi Prakashan Pvt Ltd, Agra
Language: Hindi
Edition: 2011
ISBN: 9789380375120
Pages: 80
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 100 gm
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Book Description

भूमिका

विरह वेदना से परिपूर्ण काव्यों में 'विमल सुधा' नाम की यह रचना श्री राजकुमार 'राज' द्वारा रचित है। राज जी ने ब्रजभाषा में इस काव्य की रचना की है लेकिन कहीं-कहीं खड़ी बोली का मिश्रित रूप भी कई छंदों में आया है।

प्रेम जब हृदय की वस्तु बन जाता है तथा वासनात्मक रूप से परे नर-नारी प्रति समर्पण का भाव उत्पन्न होता है तो वह शुद्ध मानसिक प्रेम कहलाता है। राज जी का यह काव्य विमल को समर्पित है उनकी पत्नी का असमय देहावसान उन्हें हृदय तक झकझोर गया। दारुण दुःख का पारावार न रहा। दिन-रात विमल की स्मृतियाँ दुःख के सागर में डुबो देती। काल के गाल में शनैः शनैः जाते देख कवि हृदय हूक हुक कर रोने लगा उस समय कविता ने राज जी को संबल दिया। अपनी समस्त चेतनाओं के साथ राज जी ने विमल सुधा लिखना प्रारम्भ किया। इस रचना में छन्दों का सुन्दर समावेश है। छन्द विधा के राज जी सशक्त हस्ताक्षर है। राज जी ने अपनी पत्नी को समर्पित यह काव्य रचना करके आज की वर्तमान पीढ़ी को संदेश दिया है कि प्रेम कभी मरता नहीं वह तो सात जन्मों तक जिंदा रहता है। अपनी प्रियतमा कहीं भी चली जाय उसकी यादें सदा ताजा रहती है उसके हाव-भाव, क्रिया कलाप मीठी-मीठी बातें, चुहल बाजियाँ, शिकवा, शिकायतें सभी याद आते हैं।

प्राक्कथन

राजकुमार 'राज' हिन्दी जगत के ऐसे सहृदय कवि है, जिन्होनें 'प्रेम संदेसो' जैसी अनुपम रचना हिन्दी साहित्य को दी है। 'राज' जी ऐसे कवि है जिनकी लेखनी ने कभी विराम नहीं लिया। सहजता, सहृदता, भोलापन उनमें मिलता है। उनकी कविता में सरसता तथा अनुपम भावसौन्दर्य है जो अन्य कवियों से भिन्न है उनका कविता पढ़ने का ढंग श्रोताओं को भाव-विभोर कर देता है। राजकुमार राज प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं 'प्रेमसंदेसो' में भी उनका प्रेम राधा और कृष्ण के माध् यम से छलक-छलक जाता है वहीं अन्य कविताओं में भी प्रेम की अनुभूति के दर्शन होते हैं चाहे उनकी माँ पर लिखी गई कविता हो अथवा ग्राम्य जीवन पर लिखे गए गीत हों। उनकी कविता पर बाहरी प्रभाव कम आन्तरिक भावों की प्रदीप्ति अधिक है। 'राज' का कवि ग्राम्य सुषमा से आया है। उनके काव्य में ग्राम्य जीवन के चित्र हैं गाँव की भाषा के साथ-साथ उनका रहन-सहन ग्राम्य जीवन के चित्र तथा भावों की अन्यतम सुषमा है। 'राज' जी को साहित्य जगत में वह स्थान नहीं मिल सका जिसके वे अधिकारी है, लेकिन उन्हें इस बात की कोई चिन्ता नहीं हैं वे अनवरत लेखन में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं। उनकी कविता रागात्मक वृत्ति की कविता है जो खड़ी बोली तथा ब्रजभाषा मिश्रित है। कहीं कहीं विशुद्ध ब्रजभाषा है तो कहीं कहीं खड़ी बोली का भी मिश्रण हो गया है उन्होंने भावों के समक्ष भाषा को आड़े नहीं आने दिया है। राज जी से मेरा परिचय सन् 1981 से है जब वे मुझसे मिले तो ऐसा लगा जैसे प्रेम का साक्षात रूप उपस्थित हो गया है जब वे मुझसे मिलने आते हैं या मैं उनसे मिलता हूँ तो तीन-चार घण्टों का मेल-मिलाप सहजता से हो जाता है तीन-चार नव सृजित रचनाएँ, छन्द जब तक नहीं सुनाते तब तक मन भरता नहीं मंच की प्रस्तुति उनकी सफलता की गारंटी होती है फिर भी लोग उन्हें उनका उचित अवसर नहीं देते क्योंकि आज का युग आदान-प्रदान का है मंच पर वे ही लोग स्थापित है जो आदान प्रदान की संस्कृति से जुड़े हैं। प्रश्न ये नहीं है कि उन्हें मंच नहीं मिलते प्रश्न यह है कि हम किस ओर जा रहे हैं हम कैसी कविता सुनना पसंद कर रहे हैं।

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