अगदतंत्र विषयक यह पुस्तक केरलीय विषग्रंथ विषवैद्य ज्योत्स्निका का हिंदी रूपांतरण है। इसके अंतर्गत विष के भेदों, लक्षणों व चिकित्सा का उल्लेख मिलता है जो कि केरला के विषवैद्यों का अनुभूत ज्ञान है। वर्तमान में अगदतंत्र एक क्लिनीकल विषय या विभाग बन चुका है। अतः ऐसे ग्रंथों का ज्ञान होना, नितांत आवष्यक है। उपरोक्त के अलावा इस पुस्तक में ऐसे अगदों का वर्णन मिलता है जो कि वर्तमान में बहुत सुगमता के साथ बनाए व प्रयोग किए जा सकते हैं। मूलतः विषवैद्य ज्योत्स्निका ग्रंथ मलयालम में है। अतः इसे सरल षब्दों के साथ हिंदी में रूपांतरित करने का प्रयास किया गया है ताकि सम्पूर्ण भारतवासी, इस विषिष्ट ज्ञान से वंचित न रह सके तथा लाभान्वित हों। आषा है कि यह कृति आयुर्वेद के अगदतंत्र विषय से संबंधित समस्त विद्वजनों को अवष्य पसंद आएगी।
इस पुस्तक की मुख्यलेखिका डॉ. शान्ति मान्याल, रानी दुल्लैया स्मृति पी.जी. आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, भोपाल, मध्यप्रदेशके अगदतंत्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। आपने दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, वर्धा, महाराष्ट्र से बी.ए.एम.एस. एवं अगदतंत्र विषय से एम.डी. पूर्ण की है। इसके अलावा वर्तमान में आप दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, वर्धा, महाराष्ट्र में पीएच.डी. हेतु अध्ययनरत हैं। आपने कई ग्रंथ, शोधपत्र व लेखभी प्रकाशित किये हैं, जो अपने आप में मानक प्रकाशन हैं।
जैसा कि विदित है कि विषवैद्य ज्योत्स्निका एक केरलीय विषग्रंथ है। इस ग्रंथ में अगदतंत्रसंबंधी नवीन तथ्य व समस्त विषजन्य विकारों का उचित प्रबंधन भी वर्णित है। चूँकि वर्तमान में एन. सी.आई.एस.एम. के अनुसार अगदतंत्र एक क्लिनीकल विषय या विभाग बन चुका है। अतः विषवैद्य ज्योत्स्निका जैसे ग्रंथ का भी ज्ञान होना आवश्यक है। इस प्रकार उपरोक्त उद्येश्य की पूर्ति के लिए यह पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत करना ही हमारा प्रयास है। चूँकि विषवैद्य ज्योत्स्निका मूलतः मलयालम भाषा में वर्णित है लेकिन इसका अंग्रेजी रूपांतरण, अगदतंत्र विभाग, वी.पी.एस. वी. आयुर्वेद महाविद्यालय, कोट्टकल, केरल द्वारा किया गया है, जो कि पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। अतः उसी के आधार पर हमने इस ग्रंथ को हिंदी में रूपांतरित/अनुवाद करने का प्रयास किया ताकि सम्पूर्ण भारत में इस विशिष्ट ज्ञान का लाभ लिया जा सके। अंततः विष के सटीक निदान व चिकित्सा के लिए, यह पुस्तक आयुर्वेद विद्ववानों व छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें परम संतोष होता है।
अतः अंत में मैं यह आशा करता हूँ कि यह पुस्तक अगदतंत्र के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में अध्ययनरत विद्याथियों के साथ साथ शिक्षकों को भी बहुत पसंद आएगी। इसके अलावा इस कृति में कोई त्रुटी या सुझाव हो तो कृपया अवश्य सूचित करें।
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