विद्यालय शिक्षा के सभी स्तरों के लिए अच्छे शिक्षाक्रम, पाठ्यक्रमों और पाठ्यपुस्तकों के निर्माण की दिशा में हमारी परिषद् पिछले पच्चीस वर्षों से कार्य कर रही है। हमारे कार्य का प्रभाव भारत के सभी राज्यों और संघशासित प्रदेशों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा है और इस पर परिषद् के कार्यकर्ता संतोष का अनुभव कर सकते हैं। ।
किन्तु हमने देखा है कि अच्छे पाठ्यक्रम और अच्छी पाठ्यपुस्तकों के बावजूद हमारे विद्यार्थियों की रुचि स्वतः पढ़ने की ओर अधिक नहीं बढ़ती। इसका एक मुख्य कारण अवश्य ही हमारी दूषित परीक्षा-प्रणाली है जिसमें पाठ्यपुस्तकों में दिए गए ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है। इस कारण बहुत ही कम विद्यालयों में कोर्स के बाहर की पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया. जाता है। लेकिन अतिरिक्त पठन में बच्चों की रुचि न होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न आयुवर्ग के बालकों के लिए कम मूल्य की अच्छी पुस्तकें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी नहीं हैं। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में इस कमी को पूरा करने के लिए कुछ काम प्रारंभ हुआ है पर वह बहुत ही नाकाफी है। ।
इस दृष्टि से परिषद् ने बच्चों की पुस्तकों के लेखन की दिशा में एक महत्त्वाकांक्षी योजना प्रारंभ की है। इसके अंतर्गत, पढ़ें और सीखें शीर्षक से एक पुस्तकमाला तैयार करने का विचार है जिसमें विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों के लिए सरल भाषा और रोचक शैली में अनेक विषयों पर बड़ी संख्या में प्रस्तकें तैयार की जाएँगी। हम आशा करते हैं ।
कि 1987 के अंत तक हिन्दी में हम निम्नलिखित विषयों पर 50 पुस्तकें प्रकाशित कर सकेंगे ।
आजादी से पहले कल-कारखानों के क्षेत्र में हमारा देश बहुत पिछड़ा हुआ था। इंजीनियरिंग से सम्बन्धित सभी छोटे-बड़े कामों के लिए हमें विदेशों का मुँह ताकना होता था। ऐसे समय श्री विश्वेश्वरैया ने अपने कठिन परिश्रम व लगन से दुनिया को यह दिखला दिया कि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी भारत के लोग बड़े-बड़े काम कर सकते हैं। उन्होंने देश के उत्थान के लिए योजनाओं का महत्त्व बतलाया। वे चाहते थे कि हमारे देश में बड़े-बड़े उद्योग लगें जिससे देश की गरीबी दूर हो। लेकिन एक परतंत्र देश कर ही क्या सकता था? संतोष का विषय है कि आजादी मिलने के बाद भी श्री विश्वेश्वरैया हमारे बीच रहे और उन्होंने अपने सपने साकार होते हुए देखे। आजादी के बाद हमारे देश ने उद्योगों में तेजी से तरक्की की है और आज भारत को विश्वेश्वरैया जैसे महान् इंजीनियरों की पहले से भी कहीं अधिक आवश्यकता है।
भारत के आज के बच्चे कल के नागरिक हैं। वे विश्वेश्वरैया जैसे महान् व्यक्ति के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं, परन्तु विश्वेश्वरैया जैसे महान् व्यक्तियों के जीवन पर कम ही पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इसका मुख्य कारण है कि उनका अधिकांश कार्य इंजीनियरिंग की गूढ़ बातों से सम्बन्धित है, जिसे जनसाधारण को समझाना आसान नहीं। यह प्रसन्नता की बात है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् ने श्री विश्वेश्वरैया के जीवन पर ऐसी पुस्तक तैयार करने की पहल की जिसे बच्चे भी समझ सकें। प्रस्तुत पुस्तक में विश्वेश्वरैया के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं और उपलब्धियों के बारे में सरल ढंग से बतलाया गया है। हमें आशा है कि इस पुस्तक को पढ़कर बच्चे श्री विश्वेश्वरैया के जीवन से प्रेरणा लेंगे और उनके आदर्शों को जहाँ तक संभव होगा, अपने जीवन में अनुसरण करने की चेष्टा करेंगे।
पुस्तक की अधिकांश सामग्री श्री विश्वेश्वरैया द्वारा रचित पुस्तक मेरे कामकाजी जीवन के संस्मरण (नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली) से ली गई है। लेखक ने कुछ अन्य पुस्तकों की भी मदद ली है जिसके लिए वह उनके लेखकों व प्रकाशकों का आभारी है। अंत में लेखक डा० अनिल विद्यालंकार और डा० हीरालाल बाछोतिया के प्रति भी आभार प्रदर्शित करता है जिन्होंने पुस्तक की पांडुलिपि पढ़कर उसमें अनेक संशोधन किए।
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