मैं प्रो. बी. एस. सोंडे, डीन, अभियांत्रिकी विभाग, भारतीय वैज्ञानिक संस्थान, बंगलौर तथा आई. ई. टी. ई. के प्रेजिडेंट के प्रति आभार प्रकट करता हूं, जिन्होंने मुझे यंत्रमानव और यंत्रमानव विज्ञान पर यह पुस्तक लिखने को कहा। मुझे यह पुस्तक लिखने में बहुत प्रसन्नता हुई। इस प्रकार के विषय पर पुस्तक लिखते हुए मेरे लिए मौलिकता का दावा करना संभव नहीं है। यह पुस्तक अन्य बहुत-सी पुस्तकों में इसी विषय पर प्रकाशित अन्य तकनीकी सामग्री पर आधारित है। सभी स्रोतों का यहां उल्लेख करना संभव नहीं है, इसलिए मैं उन सभी आलेखों एवं पुस्तकों के लेखकों का अत्यंत आभारी हूं। मुझे (पूरे कर्नाटक में) उच्च विद्यालय के विद्यार्थियों को व्याख्यान देने का मौका मिला, जिसमें विद्यार्थियों ने अनेक रुचिपूर्ण सवाल किए एवं चर्चाओं में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस पुस्तक की विषय-सूची में उन सभी प्रश्नों एवं चर्चाओं का स्पष्ट प्रभाव है। वे सभी विद्यार्थी मेरी प्रशंसा एवं आभार के पात्र हैं।
प्राचीन काल से मानव मस्तिष्क में एक ऐसे दास यंत्र की कल्पना कौंधती रही है जिसमें असीम ताकत हो और जो उसके लिए अद्भुत कार्य कर सके। अलादीन एवं जादुई चिराग की कहानी विश्व प्रसिद्ध है। जब चिराग को रगड़ा जाता था तब उसमें से एक जिन्न निकलता था जो आज्ञा के अनुसार कार्य करता था। इस कहानी से जहां हमें अद्भुत दास यंत्र रखने के लाभ का ज्ञान होता है, वहीं इस शक्तिशाली यंत्र के बुरे हाथों में पड़ने के खतरे की भी जानकारी मिलती है।
भारत की पौराणिक कथयाओं में भी ऐसे अनेक राजकुमारों एवं जादूगरों की कहानियां हैं जिनके पास ऐसे दासों एवं यंत्रों को अपने काबू में रखने की शक्ति थी। रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्यों में ऐसी विशाल तथा जादुई शक्तियों का वर्णन है। श्रीकृष्ण एक पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाकर रख सकते थे। हनुमान एक पर्वत उठाकर हवा में उड़ सकते थे। रामायण और महाभारत में वर्णित धनुष-बाण के अंदर जादुई शक्ति भरी थी। दूसरे देशों में भी ऐसी कहानियां तथा महाकाव्य प्रचलित हैं।
प्रागैतिहासिक काल से ही मनुष्य यंत्रमानव एवं असाधारण प्राणियों और जीव-जंतुओं से मुग्ध होता रहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि मिस्र देश के मंदिरों में पुजारी यांत्रिक भुजाएं तथा अपने आराध्य की मूर्तियां बनाकर रखते थे। उन्हें वे गुप्त रूप से नियंत्रित करते थे मानो वे ईश्वर की प्रेरणा से कार्य कर रहे हों। पुजारी ऐसे यंत्रों का प्रयोग अपने विश्वासी को प्रभावित करने तथा अपने आलोचकों को धमकाने के लिए किया करते थे। जब एक भीमकाय देवता आग तथा धुआं निगल लेता तथा पुरातन पंथियों की तरफ हाथ हिलाता था और उनसे आज्ञा मनवा लेता था तो इससे लोग निश्चित रूप से प्रभावित होते होंगे।
यूनान के नामी प्राचीन गणितज्ञ तथा अभियंता एलेग्सैंड्रिया ने एक ऐसा झरना बनाया, जिस पर उसका नाम लिखा था। इसमें उसने दो ऐसी तकनीकों का प्रयोग किया था जिसे मिस्र देश के पुजारियों ने पूजा-स्थल पर जादुई कारनामों के रूप में अपनाया। चित्र-1 में ऐसे एक दरवाजे का विवरण है जो खोखले धातु का बना था तथा मंदिर के द्वार पर लगा होता था। इसमें एक ऐसी यंत्र विधि थी, जिससे ऐसा प्रतीत होता था जैसे ईश्वर की इच्छा से ही मंदिर का दरवाजा खुलता है। जब धूप-नैवेद्य जलाए जाते थे, नीचे छुपाए जल के बंद बर्तन में गर्म हवा का दबाव खोखले धातु की बनी पूजा की वेदी में बढ़ जाता जिससे कम दबाव वाली बाल्टी में जल गिरने लगता था। इससे बाल्टी में जल का वजन बढ़ जाता, बाल्टी नीचे जाने लगती और यह क्रिया मंदिर के द्वार खोल देती थी (चित्र 2)। दरवाजे का स्वयं खुलना भक्तों को ईश्वर की महिमा प्रतीत होती थी जबकि यह पुजारियों द्वारा हवन सामग्री जलाने के कारण होता था। वास्तव में, छिपी हुई यांत्रिक विधि का लोगों को पता नहीं चल पाता था।
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