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यायावर शब्दशिल्पी पं. बनारसीदास चतुर्वेदी: Yayavar Shabdashilpi Pt. Banarsidas Chaturvedi

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Item Code: HBB038
Author: Edited By Ashutosh Chaturvedi
Publisher: Prabhat Prakashan, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2022
ISBN: 9789355620125
Pages: 185
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 350 gm
Book Description
भूमिका

जुलाई 1978 की बात है। मैं ग्यारहवीं कक्षा का विद्यार्थी था। उन दिनों जुलाई मथुरा और आसपास के क्षेत्रों में भारी बाढ़ आई हुई थी। मैं अपने दोस्तों के साथ रोजाना उसे देखने जाता था। इसका पता जब दादाजी (पत्रकार शिरोमणि पं. बनारसी दास चतुर्वेदी) को लगा, तो जैसी कि उनकी आदत थी, उन्होंने निर्देश दिया कि बाढ़ का विस्तृत विवरण लिखकर भेजो। मैंने विस्तार से बाढ़ के प्रकोप और हम जैसे तमाशबीनों के बारे में उन्हें लिखकर भेजा। वे इस विवरण को पढ़कर अत्यंत प्रसन्न हुए और इसके जवाब में उनका लाल व नीली स्याही से लिखा पोस्टकार्ड आया, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है- तुम अच्छा लिख लेते हो और तुममें पत्रकार बनने के सभी गुण मौजूद हैं। बस उनके इस आशीर्वचन ने पत्रकार बनने की नींव रख दी। वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह ने कुछ समय पहले एक लेख लिखा था कि हिंदी के लेखक और पत्रकार पं. बनारसीदास चतुर्वेदी को न याद करते हैं, न ही उनकी पत्रिका 'विशाल भारत' को। यहाँ तक कि उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर भी उन्हें याद नहीं किया जाता। कभी उनकी याद में कोई औपचारिक कार्यक्रम हो भी तो उसमें उन्हें अपने समय का अग्रगण्य संपादक बताकर उनके प्रति अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली जाती है, जबकि एक पंक्ति में उनका परिचय देना हो तो कहा जाना चाहिए कि उनके जैसा शहीदों की स्मृति को सामने लाने वाला और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। दादाजी ने शहीदों की स्मृति-रक्षा के लिए 'शहीदों का श्राद्ध' नाम से एक साहित्यिक आंदोलन छेड़ा था। शहीदों की स्मृति-रक्षा के लिए उन्होंने जैसे प्रयत्न किए, शायद ही किसी और हिंदी संपादक ने किए हों। मुझे लगा कि यह मेरा कर्तव्य और दायित्व है कि कम-से-कम नई पीढ़ी को दादाजी के कार्यों से परिचित कराया जाए। जनवरी 1928 में 'मॉडर्न रिव्यू और प्रवासी' के संचालक-संपादक रामानंद चट्टोपाध्याय ने 'विशाल भारत' का प्रकाशन शुरू किया और बनारसीदास चतुर्वेदी को उसका संपादक बनाया गया। सन् 1937 तक बनारसीदासजी ने कोलकाता में रहकर इसका संपादन किया। बनारसीदास चतुर्वेदी के कार्यकाल में 'विशाल भारत' अपने समय का हिंदी का सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली पत्र बन गया था। 'विशाल भारत' ने तीन बड़े आंदोलन चलाए। एक था- घासलेटी साहित्य विरोधी आंदोलन। इस आंदोलन की चपेट में पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र', आचार्य चतुरसेन शास्त्री और ऋषभचरण जैन जैसे लोग तक आ गए थे। यहाँ तक कि गोरखपुर के हिंदी साहित्य सम्मेलन में घासलेटी साहित्य की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव भी पारित हुआ था। एक और आंदोलन था- कस्मै देवाय, यानी हम किसके लिए लिखें। एक अन्य आंदोलन था- अस्पष्ट भाषा के विरुद्ध। इसमें 'माधुरी' में प्रकाशित एक लेख में वर्तमान धर्म की तीखी आलोचना की गई थी और चुनौती दी गई थी कि कोई बताए कि इसका अर्थ क्या है। '

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