जयदेव, सुरदान, स्वोर घौर मोरा की भाँति रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत के प्रमर गायक है। यही नहीं, बन्य धमर गायकों की तुलना में उनके गीतों का घौर उनके संगीत का विदेश में कहीं यधिक प्रसार हुथा है। उनके गीतों ने विश्व-भर के संगीतजों बौर संगीत प्रेमियों के हृदय में अपना स्थान बना लिया है।
घतत्व, यह उचित ही है कि राष्ट्रीय संगीत नाटक प्रकादेनी रवीन्द्र-वाताब्दी समारोह के अवसर पर स्वर-निधि नामक उनके गीतों का यह मंकलन प्रकाशित कर रही है।
इस संकलन में विश्व-कवि द्वारा रचित हजारों बल्कि असंख्य गीतों में से कंवल एक सो गीत समाविष्ट हुए है। संकलन का यह कार्य शांति निकेतन की स्वर्गीया इंदिरा देवी चौपुरानी ने किया है घोर उन्हीं ने इन गीतों का वर्गीकरण और अनुक्रम तैयार किया है। संकलन में कवि के सर्वोत्तम गौत चुनने की अपेक्षा कवि की सर्वाधिक प्रतिनिधि रचनाएं प्रस्तुत करने की और अधिक ध्यान रखा गया है। यही कारण है कि इस संकलन में भक्ति गीत, ऋतु-गीत, राष्ट्रीय गोत, पर्व-गीत आदि जन-साधारण के भाव-जीवन से सम्बन्धित विविध प्रकार के गीत एकत्रित हैं। यह संकलन ५०-५० गीतों के दो खण्डों में प्रस्तुत किया जा रहा है।
राष्ट्रीय स्तर के ऐसे प्रकाशन के लिए एक राष्ट्रीय स्वर-लिपि की अनिवार्य प्रावश्यकता है। सम्प्रति देश में कई विभिन्न स्वर-लिपि प्रणालियाँ प्रचलित हैं। लिपियों को विविधता के अतिरिक्त उनमें और भी कई प्रकार के विभेद हैं। उनके पृथक-पृथक संकेत-चिन्ह हैं। इन कठिनाइयों के कारण बहुत दिनों से देवनागरी लिपि में एक प्रतिनिधि मानक स्वर-लिपि की ग्रावश्कता का अनुभव किया जा रहा था। इसी उद्देश्य से संगीत नाटक घकादेमी ने भारतीय राष्ट्रीय स्वर-लिपि के निर्माण का कार्य अपने हाथ में लिया है। इस प्रयास के द्वारा संगीतात्मक अभिव्यक्ति की विभिन्न धाराओं के बीच सद्भावना के सेतु के निर्माण का कार्य तो सुगम होगा ही, साथ ही इसके माध्यम से विभिन्न प्रादेशिक संगीतों के लिपीकरण का कार्य भी सुगम हो जायेगा। विशेष रूप से लोक-संगीत की लिपि तैयार करने में इस मानक स्वर-लिपि से बहुत सहायता मिलेगी ।
इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगीत नाटक अकादेमी ने विशेषज्ञों की एक विशेष समिति नियुक्त की थी जिनके परिथम के फलस्वरूप एक ऐसी स्वर-लिपि निर्धारित की जा सकी है जिसे देश भर में राष्ट्रीय स्तर पर मानक स्वरलिपि के रूप में व्यवहुत किया जा सकता है। इस लिपि में उन सभी स्वरलिपियों के सर्वश्रेष्ठ तत्व सम्मिलित कर लिये गये हैं जो इस समय देश के विविध अंचलों में प्रचलित हैं।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि संगीत नाटक अकादेमी के आग्रह पर इस संकलन के लिए रवीन्द्रनाथ ठाकुर के सौ गीतों का चयन शान्ति-निकेतन की स्वर्गीया श्रीमती इंदिरादेवी चौघुरानी ने किया था। संकलन का यह कार्य उन्होंने स्वर्गवास के कुछ ही दिनों पूर्व किया था। एक समय की बात है, रवीन्द्र-संगीत के विशेषज्ञ स्वर्गीय दीनेन्द्रनाथ ठाकुर और इंदिरादेवी में इस बात की होड़ लग गयी कि रवीन्द्र-संगीत का श्रेष्ठ ज्ञाता उन दोनों में से कौन है। दीनेन्द्रनाथ ठाकुर का दावा था कि रवीन्द्र-संगीत- विषयक उनका ज्ञान अधिक है। इंदिरादेवी इससे सहमत नहीं थीं, उनका कहना था कि उनका ज्ञान दीनेन्द्रनाथ ठाकुर के ज्ञान से बढ़कर है। बाद में दोनों में समझौता हो गया। यह तय पाया गया कि रविवाबू के परवर्ती गीतों के सम्बन्ध में दीनेन्द्रनाथ का ज्ञान इंदिरादेवी से बढ़-चढ़कर था लेकिन उनके प्रारंभिक गीतों का ज्ञान इंदिरादेवी को ही अधिक था। इसमें कोई संदेह नहीं कि रवीन्द्रनाथ के प्रारंभिक गौतों का सबसे अधिक ज्ञान इंदिरादेवी को ही था, और दीनेन्द्रनाथ के स्वर्गवास के बाद, रवीन्द्रनाथ के परवर्ती गीतों का ज्ञान भी उन्हीं को सबसे अधिक था। अतएव, मेरा विश्वास है कि उनके द्वारा प्रस्तुत रवीन्द्रनाथ के गीतों का यह संकलन सर्वाधिक संतोप दे सकेगा।
मैं समझता हूँ, पश्चिम को रवीन्द्रनाथ के गीतों का परिचय देने का अभी तक एक मात्र ही प्रयत्न हुआ है। यह प्रयत्न "दि ट्वेन्टी सिक्स सांग्स ऑफ रवीन्द्रनाथ टैगोर" नामक ग्रन्थ के रूप में किया गया है जिसका संपादन डा० आरनोल्ड ए० वाके और मो० फिलिप स्टर्न ने मिलकर किया है। पर केवल 26 गोतों के परिचय से किसी को संतोप नहीं हो सकता, क्योंकि रवीन्द्रनाथ ने अपने जीवन में ढाई हजार से भी अधिक गीतों की रचना की थी। यही कारण है कि मूल धुनों के साथ रवीन्द्रनाय के गीतों का परिचय पाने की पश्चिम में निरंतर माँग की जाती रही है। साथ ही यह माँग भी की जाती रही है कि स्टाफ स्वरलिपि में गीतों के लिप्यंतरण के अतिरिक्त उनका पाठानुवाद भी दिया जाना चाहिए। क्योंकि रवीन्द्र संगीत की यह विशेषता है कि उसमें शब्द और स्वर प्रभिन्न रूप से मिले हुए हैं, बौर अर्थ-ज्ञान के बिना उनका स्वर-जान पूरा मानन्द नहीं दे सकता ।
इसी उद्देश्य से संगीत नाटक अकादेमी ने रवीन्द्र शताब्दी समारोह के उपलक्ष में बंगला न जानने बाले जिज्ञामुखों को रवीन्द्र-संगीत का परिचय देने के लिए यह योजना तैयार की।
योजना की पूति के लिए सबसे पहली आवश्यकता थी रवीन्द्र-संगीत के बृहद कोप में से उपयुक्त प्रतिनिधि गीतों का संकलन। संकलन करते समय इस बात पर दृष्टि रखना आवश्यक था कि रवीन्द्रनाथ ने जितने प्रकार के गीत रचे हैं उन सभी का सम्यक् प्रतिनिधित्व हो सके, यथा भक्ति-गीत, प्रेम-गीत, ऋतु-गीत, राष्ट्रीय-गीत, पर्व-गीत आदि-आदि; साथ ही, संकलित गोतों द्वारा रवीन्द्रनाथ की उस विशिष्ट प्रणाली का भी परिचय मिल सके जिसके आधार पर उन्होंने भारतीय संगीत के शास्त्रीय और लोर-तत्वों का समन्वय किया था। यही नहीं, यह भी आवश्यक था कि संकलित गीत रवीन्द्रनाथ के संगीत-प्रयोगों का घौर रूढ़ियों के प्रति उनके विद्रोह का भी सम्यक् आभास दे सकें क्योंकि ये दोनों तत्व रवीन्द्र-संगीत को मुख्य विशेषताओं में हैं।
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