निवेदन
सर्व प्रथम मैं अपने दीक्षागुरु नवद्वीप धामवासी प्रभुपाद परमदयाल पतितपावन श्रीश्री १०८ मदनगोपाल गोस्वामी को साष्टांग प्रणाम करता हूँ । राधाकुण्ड वासी भजनानन्दी शुद्ध सदाचारी वैष्णव श्रीश्री १०८ कृष्णदास बाबाजी महाराज जिनकी कृपा स्पे मैं भेष संस्करण एवं भजन पद्धति के सम्बन्ध में शिक्षा प्राप्त कर रहा हूँ । जिनके अतुलनीय कृपा के प्रभाव से मैं श्रीब्रजधाम आगमन करने में समथ झा हूँ वे श्रीराधाकुण्डवासी परम करुनामय श्रीश्री १०८ भजहरि दास बाबाजी महाराज (मेरे ज्येष्ठ भ्राता) को साष्टाग प्रणाम करता हूँ । अत: समस्त वैशावगणों को साष्टाग प्रणानान्ते निवेदन है कि - लगभग मैंने १० वर्ष से ब्रजमण्डल के छोटे बड़े समस्त गांवों मे प्रनण करके गांववासी, भजनानन्दी महात्मागणो के मुख से गाव की उत्पतिा के कारण, मन्दिर एवं महिमादि का संग्रह तथा विभिन्न ग्रन्थों से ब्रजमण्डल का महिमा संग्रह किया । गांव मे भ्रमण करते समय विभिन्न प्रकार की वाधाओं के आते हुए भी श्रीराधारानी की कृपा से किसी प्रकार की असुविधा नही हुई । अपनी आँखो से दर्शन करके प्रमाण निर्धारित करके जो भी सग्रह करने में समर्थ द्या हूँ वह इस श्री श्री ८४ कोस ब्रजमण्डल नामक ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया है । श्रीब्रजधाम चिन्मय भूमि का कण कण भी मणिमुक्त के समान है । इसलिये अतुलनीय चुभइ का महिमा वर्णन करने में मेरी सामर्थ्य नहीं है । केवल मात्र उल्लिखित गुरु-वैष्णवगण की कृपा ही से किंचित दिशा निर्णय किया हैं! श्रीब्रजमण्डल की किरन प्रकार परिक्रमा करनी है उनका मानचित्र सलग्न है तथा कुछ मन्दिर एवं कुछ कुण्ड के चित्र भी इस ग्रन्थ में प्रदर्शित हैं।
यह ग्रन्थ पूर्व संस्करण में भारत के जिला अनुसार लिखा गया था । उससे परिक्रमार्थी यात्रीगण उपलब्धी करने में कुछ परेशानी महसूस करते थे । कुछ भक्तजनों ने मुझे परिक्रमानुसार इस ग्रन्थ को लिखने के लिए कहा । इसलिये वर्तमान नया संस्करण परिक्रमानुसार लिखा गया हैं । हरसाल हमारे गोस्वामीगणों ने भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के वाद जो द्वादशी तिथि आती है उसी दिन २२ से ८४ कोस ब्रजमण्डल की परिक्रमा यात्रा शुरू की थी । इसलिए गोस्वामिगणो के नियमानुसार आज भी महन्तगण इसी तिथि से परिक्रमा यात्रा शुरू करते हैं । इस परिक्रमा में यात्रीगण वृन्दावन स्थित प्राचीन श्रीमदनमोहन मन्दिर से द्वादशी तिथि को मथुरा स्थित श्रीभूतेश्वर महादेव मन्दिर को जाते हैं । त्रयोदशी तिथि के दिन यही से परिक्रमा यात्रा शुरू की जाती है एव पुन: आकर परिक्रमा को समाप्त किया जाता है । तथा यहॉ से वृन्दावन जाकर पंचकोस को परिक्रमा एव साधु-सन्तो-ब्राह्मणों की सेवा करके परिक्रमा को सम्पूर्ण रूप में समाप्त करते है । परिक्रमा कराने वाले महन्तगण कभी-कभी सुविधा असुविधा विचार कर परिक्रमा मार्ग में परिवर्तन भी कर देते हैं ।
पृथ्वी के समस्त तीर्थ ब्रज में विराजमान है । जिनके दर्शन श्रीकृष्णजी ने स्वयं अपने माता-पिता एवं ब्रजवासियों को कराये थे । जैसे गोवर्धन में मानसीगंगा, बद्रीनाथ में श्रीबद्रीनाथजी एव काम्यवन में रामेश्वर सेतुबन्ध इत्यादि । अत: विश्वास करते हुए इन तीर्थो में जाने से सभी की मनोकामना पूर्ण हो जायेगी, इसमें कोई संशय नहीं है । वृन्दावन आकर अथवा वृन्दावन निवास करते समय ऐंसी भावना मन में रखनी चाहिए कि-''अभी भी श्रीकृष्णजी यहाँ लीला रच रहे है । ''साधारण सोच के अनुसार अप्राकृत प्रेम असम्भव है । चिन्मय अप्राकृत ब्रजभूमि में नन्द-यशोदा एवं ब्रजवासीगणो ने श्रीकृष्ण लीला दर्शन किया था, इसके पश्चात् शास्त्रानुसार गोस्वामिगणों एवं सिद्धबाबाओं ने भी दर्शन किये तथा उस प्रकार के और भी बहुत से प्रमाण मिलते है । इससे ज्ञात होता है कि अभी भी यहाँ श्रीकृष्ण लीला चल रही है । तो आइये हम सभी मिलकर श्रीकृष्ण लीला एवं श्रीकृष्णलीला स्थलों के दर्शन कर अपने जीवन को सफल बनायें ।
इस कथ को पढ़कर अनेकों भक्तजन उपकृत हुए हैं, यह सुनकर मुझे बहुत आनन्द हुआ है, जिससे कि मैं अपने आप को धन्य महसूस कर रहा हूँ । मेरे ग्रन्थ से उपकृत अन्य कुछ प्रेमी लेखकगणों द्वारा रचित नथ जैसे- १. भक्त प्रवर श्रीअर्जुन लाल बंसल द्वारा रचित- ''बज वृन्दावन'' । २. डा० वसन्त यामदग्नि द्वारा रचित- ''डगर चलि श्रीगोवर्धन की ओर'' । ३. महान सन्त श्रीश्यामलाल हकीम सम्पादक द्वारा परिचालित- 'श्रीहरिनाम' मासिक पत्र । ४. शिलांग से- ''शिलांग हिन्दु धर्म सभा'' द्वारा परिचालित .'अमृतवाणी'' । परम भक्त श्रीअनिल कुमार बनर्जी सम्पादक द्वारा परिचालित 'श्रीराधावल्लभ' मासिक पत्रिका । उनका मन भक्तिपथ में सदा अग्रसर रहे यही मैं भगवान् श्रीकृष्णजी से प्रार्थना करता हूँ ।
क्य में अनेक प्रकार की भूल हो सकती है उसके लिए कृपामय पाठकबृन्द से क्षमा याचना करता हूँ ।
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