भगवद्गीता के पाठ का बहुत महत्त्व है। हिन्दी जानने वाले बहुत से श्रद्धालु संस्कृत न जानने की वजह से संस्कृत में गीता का पाठ नहीं कर पाते। कुछ लोग लड़खड़ाते हुए पाठ करने की कोशिश करते हैं पर भाव समझने के लिए साथ में अनुवाद पढ़ने लग जाते हैं। इस प्रयास में वे पाठ का आनन्द नहीं उठा पाते और कई बार गीता का पाठ करना ही छोड़ देते हैं। ऐसे श्रद्धालुओं को ध्यान में रखकर मैंने भगवद्गीता का भावानुवाद मूल संस्कृत छन्दों में करने का प्रयास किया है। इस भावानुवाद को पढ़ते हुए पाठकों को कुछ-कुछ मूल संस्कृत पाठ-सा आनन्द मिलेगा। ऐसा मेरा विश्वास है। पाठ करते हुए गीता के भाव भी साथ-साथ स्पष्ट होते जाएँगे। इससे पाठक गीता के कर्मयोग के संदेश से प्रेरणा पाकर जीवन को सफल बनाने में प्रयासरत होंगे। आशा है पाठकों को यह प्रयास पसंद आएगा।
भगवद्गीता में संस्कृत भाषा के अनुष्टुप और त्रिष्टुप छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्रो. ओम प्रकाश सारस्वत और डॉ. महेन्द्र शर्मा 'सूर्य' ने इन छन्दों को समझने में मेरी सहायता की है। भावानुवाद करते हुए बच्चन जी का भगवद्गीता का काव्यमय भावानुवाद भी बहुत सहायक सिद्ध हुआ। गीता प्रेस गोरखपुर का श्रीमद्भगवद्गीता ग्रन्थ तो इस भावानुवाद का आधार है ही। श्री अरविंद कुमार और श्रीमती कुसुम कुमार का 'सामांतर कोश' छन्दों के अनुसार पर्यायवाची शब्दों के चयन में बहुत सहायक सिद्ध हुआ। मेरी पत्नी श्रीमती भूमा शर्मा के समर्पित सहयोग के बिना यह कार्य सम्भव न हो पाता। इन सबके प्रति मैं हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ।
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