॥ श्रीहरिः ॥
गीता एक परम रहस्यमय ग्रन्थ है। इसमें सम्पूर्ण वेदोंका सार संग्रह किया गया है। इसकी रचना इतनी सरल और सुन्दर है कि थोड़ा अभ्यास करनेसे भी मनुष्य इसको सहज ही समझ सकता है, परंतु इसका आशय इतना गूढ़ और गम्भीर है कि आजीवन निरन्तर अभ्यास करते रहनेपर भी उसका अन्त नहीं आता। प्रतिदिन नये-नये भाव उत्पन्न होते ही रहते हैं. इससे वह सदा नवीन ही बना रहता है। एवं एकाग्रचित्त होकर श्रद्धा-भक्तिसहित विचार करनेसे इसके पद-पदमें परम रहस्य भरा हुआ प्रत्यक्ष प्रतीत होता है। भगवान्के गुण, प्रभाव, स्वरूप, तत्त्व, रहस्य और उपासनाका तथा कर्म एवं ज्ञानका वर्णन इस गीताशास्त्रमें किया गया है
भारतीय जीवन-दर्शनकी दृष्टिमें किसी ग्रन्धकी उपयोगिता अथवा उपादेयता इस बातपर निर्भर करती है कि वह मानव जीवनको परम लक्ष्यतक पहुँचानेमें कहाँतक सहायक है। इस दृष्टिसे विचार करनेपर जात होता है कि श्रीमद्भगवद्गीताका एकमात्र आश्रय ही मानवमात्रको लक्ष्यकी प्राप्ति करा देनेमें सबसे अधिक सहायक, उपयोगी तथा सबल साधनके रूपमें कसौटीपन खरा उतरता है।
समस्त ब्रह्मांड के कण-कण में विद्यमान सदा अहेतु की कृपा वत्सल, परम सुहृदय भगवान श्री राधेगोविन्द इस निबन्ध के साक्षी प्रेरक, पथ प्रदर्शक एवं सहयोगीके कृपा प्रसाद की कृती को हम परम पुनीत व नैतिक कर्तव्य मानकर अपने सभी गुरुजनों, स्वजनों व बन्धुवर के प्रति विनम्रता से समर्पित करते हैं हम अपेक्षा करते हैं कि इस कृति की त्रुटियों के लिए विद्वद्धन हमें शमा प्रदान करेंगे व इस लेखन कार्य को स्वीकृत करेंगे
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