पुस्तक परिचय
लाल किताब पाँच भागों में क्रमश 1939, 1940, 1941,1942 और 1952 में प्रकाशित हुई थी । सन् 1942 में प्रकाशित पुस्तक इल्मे सामुद्रिक की लाल किताब इस शृंखला की चौथी पुस्तक थी जिसमें 384 पृष्ठ थे। यह पुस्तक बाकी सभी पुस्तकों से अलग है । सन् 1939 के संस्करण में पंडित रूप चंद जी, जोशी ने हस्त रेखा पर अधिक बल दिया था परंतु 1940 के संस्करण में पंडित जी ने फलित पर अधिक बल दिया और कुछ उपाय भी सुझाये । गुटका को गद्य के रूप में लिखा गया और यह पुस्तक बाकी पुस्तको से लिए गये महत्त्वपूर्ण भागों का एक संकलन है ।
यहाँ हमारा प्रयास है कि पुस्तक को सरल हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया जाये ताकि लाल किताब के जिज्ञासु इससे लाभ उठा सके । पुस्तक में कुछ संशोधन भी किये गयें हैं जो कि बरतनी को ध्यान में रख कर किये गये हैं। इस के साथ हम लाल किताब की लग्न सारणी भी पाठकों को उपलब्ध करा रहे जो अभी तक अप्रकाशित थी । हमें आशा है कि यह सारणी पाठकों के लि? फलित में काफी कारगर साबित होगी।
भूमिका
मानव को आदिकाल से अपना शुभाशुभ भविष्य जानने की उत्कंठा रही है । इस उद्देश्य से उसने आकाश का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया । हमारे पूर्वजों ने बहुत सी कठिनाइयां सह कर आकाश में घूमने वाले ग्रहों सूर्य, चंद्र आदि की खोज की तथा हर ग्रह का रंग, प्रभाव, भूमि से दूरी और चाल का पता लगाया । ग्रह की किस किस समय पर कैसी स्थिति होगी और उस स्थिति में आने पर वह ग्रह धरती पर रहने वाले मनुष्यों एवं जीव जन्तुओं पर क्या और कैसा प्रभाव डालेगा, इसका अनुमान लगा कर भविष्यवाणी की जाने लगी, जिसे ज्योतिष कहा गया ।
ज्योतिषशास्त्र भारतीय विद्या का महत्वपूर्ण अंग है, विशेषकर इसलिए कि एक और तो इसे पराविद्या की कोटि में रखा गया है तो दूसरी और सर्वसाधारण के दैनन्दिन जीवन में इसका सतत् प्रयोग जैसे शुभ घड़ी, लग्न, मुहूर्त शोधन आदि के लिए किया गया है । शास्त्रों के अनुसार
वेदाहि यज्ञार्थभिप्रवत्त, कालानुपूर्व्या विहिताश्च यज्ञा ।
तस्माविदं कालविधान शास्त्रं, वो ज्योतिष वेद स वेद यज्ञान्।।
जिसने ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त कर लिया, उसने यज्ञ का, कर्म का, कर्तव्य का ज्ञान प्राप्त कर लिया । विश्व के समस्त ज्ञान समाज को कर्म में प्रवृत्त करने में अभिप्रवृत्त हैं और सभी कर्म काल की अनिवार्यता अपेक्षा करते हैं । ज्योतिष कालपुरुष के इस लोक में काल का संविधान है ।
वर्तमान में ज्योतिष के अनेक मत प्रचलित हैं पाराशर, जैमिनि पद्धति, कृष्णामूर्ति पद्धति, पाश्चात्य आदि । इसी संदर्भ में बीसवीं शताब्दी के मध्य में अविभजित पंजाब के जिला जालंधर के गांव फरवाला में रहने वाले पं रुपचंद जोशी जी ने एक अनुठी एवं अद्भुत ज्योतिष पद्धति की रचना करी जिसे सामान्यतह लाल किताब के नाम से जाना गया। पं रुपचन्द जोशी जी Controller of Defence Account Dept में एक लेखाधिकारी के रुप में कार्यरत थे तथा उर्दू एवं इंग्लिश के अच्छे ज्ञाता थे । उन्होंने ज्योतिष के विस्तृत ज्ञान को संक्षिप्त करके अपने अनोखे व अद्भुत सिद्धान्त रचे और उन सिद्धान्तों को उन्होने उस समय की प्रचलित उर्दू फारसी भाषा में एक पुस्तक के रुप में 1942 से 1952 के मध्य क्रमबद्ध पांच भागों में लिख कर प्रकाशित किया । जिनकी जिल्द का रंग लाल होने के कारण ज्वाल किताब का नाम दिया गया ।
लाल किताब का प्रथम संस्करण ई. सन् 1939 में सामुद्रिक की लाल किताब के फरमान के शीर्षक से छपा सन् 1940 में द्वितीय संस्करण सामुद्रिक की लाल किताब के अरमान के शीर्षक से, सन् 1941 में लाल किताब तीसरा हिस्सा (गुटका) के शीर्षक से तीसरा संस्करण, सन् 1942 में चतुर्थ संस्करण इल्मे सामुद्रिक की लाल किताब के शीर्षक से तथा अंत में सन् 1952 में इल्मे सामुद्रिक की बुनियाद पर लाल किताब के शीर्षक से पाचवां तथा अंतिम संस्करण छपा । प्रत्येक संस्करण को पंडित जी अपने ज्ञान और अनुभव से और अधिक परिष्कृत करते गये । इन सारे संस्करणों के प्रकाशक श्री गिरधारी लाल जी थे । इन संस्करणों का उर्दू फारसी भाषा में होने के कारण से हिन्दी भाषा के पाठक इसके अनमोल ज्ञान से वंचित रहे । लाल किताब के नाम से अनेक अप्रमाणिक पुस्तके ज्योतिष बाजार में आयीं, जो पाठकों के मन में अनेक प्रकार के भ्रम व शंकाओं का कारण बनी । इसका सबसे बड़ा कारण इस किताब के सभी संस्करणों का उर्दू भाषा में होना था । कुछ लेखकों ने इसका हिन्दी में लिप्यंतरण भी किया परन्तु उर्दू शब्दों को सिर्फ देवनागरी भाषा में ही लिखा जिससे समस्या वहीं की वहीं रही। हास्यास्पद स्थिति तो यह है कि जिन महानुभावों ने इसका लिप्यंतरण किया है उनका उर्दु भाषा के बारे में कितना ज्ञान है इस बारे में उन्होनें कुछ नहीं बताया। अत यह लिप्यंतरण कितना विश्वसनीय है इस पर एक प्रश्न चिह्न लग जाता है।
अत पुस्तक का हिन्दी भाषा में अनुवाद करने का निर्णय लेने का हमारा उद्देश्य यही था कि लाल किताब वास्तव में क्या है? इसकी वास्तविक एवं विश्वसनीय जानकारी ज्योतिष प्रेमियों तक पंहुचे ।
प्रस्तुत पुस्तक लाल किताब के सन् 1942 के संस्करण इल्मे सामुद्रिक की लाल किताब का हिन्दी अनुवाद है । इस संस्करण में पंडित जी ने सामुद्रिक शास्त्र व ज्योतिष शास्त्र दोनो को सम्मिलित किया । सम्पूर्ण भारत में इस विषय पर शायद यह पहली पुस्तक है जिसमें हाथ की रेखाओं को जांच करके जन्मकुंडली का निर्माण करना, कौन से रंग के पैन में कौन सी स्याही को प्रयोग करना, कुंडली में स्थित ग्रह स्थिति के अनुसार से घर की वास्तु स्थिति को सही करना, एक सारणी की मदद से कुछ ही क्षणों में वर्षफल बनाने की विधि, इसके साथ साथ लाल किताब में कई नये नियमों का निरुपन करके फलित को अत्यंत सक्षिप्त व सरल करना एवं कई अन्य विषयों का समावेश करके गागर में सागर भर दिया गया है । इसके साथ साथ ही पंडित जी ने ज्योतिष के द्वारा समाज को नया रास्ता भी दिखाया । उनके के अनुसार चंद्र को शुभ करने के लिए अपनी माता व अन्य बड़ी बुढ़ी औरतों की सेवा करना व उनसे आशिर्वाद लेना, वृहस्पति को शुभ फलों को अनुभव करने के लिए पिता या बाबे का आशिर्वाद लेना आदि सबसे उत्तम रहेगा । इसी प्रकार कई अन्य सरल और साधारण उपायों द्वारा उलझनों से निकलने के साथ साथ इन उपायों के द्वारा सामाजिक मर्यादा को कायम किया जिसकी आज के भौतिकतावाद के युग में अति आवश्यकता थी । यह अवश्य है कि लाल किताब में आज के समय जैसा कुछ नहीं है । आज के आधुनिक ज्योतिष में जो थोड़ा बहुत बदलाव आया है, इसका अंश भी लाल किताब में नहीं है । इसका एक कारण यह है भी है कि इसमें पाश्चात्य ज्योतिष पर कोई विशेष महत्व नहीं दिया गया । इसके बावजुद अपने सरल नियमों एवं फलादेश एवं सस्ते व सुलभ उपायों के कारण यह पद्धति काफी लोकप्रिय हुई है । आज हर ज्योतिष प्रेमी इसका अध्ययन करना चाहता है ।
अब लाल किताब का चतुर्थ संस्करण इल्मे सामुद्रिक की लाल किताब 1942 का हिन्दी रूपान्तर आपके हाथों में है । हमने कोशिश की है कि हिन्दी में अनुवाद के साथ साथ इसका मूल स्वरूप भी कायम रहे जिससे इन्नकी अपनी विशिष्ट शैली की पहचान हिन्दी के ज्योतिष प्रेमियों को हो । हम इस प्रयास में कितने सफल रहे, यह जानने के लिए अपने प्रेरणा स्रोत पाठकों की प्रतिक्रियाओं का इन्तजार रहेगा ।
जिज्ञासु इसका अध्ययन करें, मनन करें, अभ्यास करें मगंल होगा । स्वयं लाभान्वित हों, अपने ज्ञान से समाज को लाभान्वित करें। वेदस्य निर्मल चक्षु ज्योतिष वेद का निर्मल नेत्र है । इसके बोध से स्वयं वेदचक्षु से सम्पन्न हों, औरों को सम्पन्न करें । ऐसी हमारी प्रार्थना है ।
इस पुस्तक में जो त्रुटियां हैं, वह हमारी अप्रबुद्ध शक्ति के कारण हैं तथा पाठकों से निवेदन है कि हमे अपनी विद्वतापूर्ण राय से कृतार्थ करें ।
प्राक्कथन
इल्मे सामुद्रिक की लाल किताब (1942) लाल किताब ज्योतिष श्रखंला की चतुर्थ पुस्तक है । इस पुस्तक में ज्योतिष शास्त्र एवं सामुद्रिक शास्त्र के सिद्धान्तों को एक दूसरे का पूरक मानते हुए प्रथम बार फलित की विस्तृत एंव विवेचना की गई है । मूलत यह पुस्तक उर्दू भाषा में है और इसका प्रामाणिक हिन्दी भाष्य हिन्दी भाषी पाठकों के लिए अनुपलब्द था बाजार में उपलब्द अधिकांश पुस्तकें केवल लिप्यांतरण (उर्दु भाषा के शब्दों को सिर्फ देवनागरी लीपी में लिखना) ही हैं जिसका कोई लाभ हिन्दी भाषी पाठकों को नहीं होता । अनुवादकों के उर्दू भाषा के ज्ञान का कोई समुचित प्रमाण भी नहीं था इसलिए उनके द्वारा किये गये उनके अनुवाद की प्रमाणिकता संदिग्ध है । अत पं लक्ष्मीकांत वशिष्ठ ने जब मुझे यह बताया कि वह और उमेश शर्मा (जो कि लाल किताब ज्योतिष के एक जाने माने विद्वान हैं) इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद कर रहें हैं तो मन में अत्यन्त प्रसन्नता हुई क्यों कि मुझे विश्वास था कि पं उमेश शर्मा जी का वर्षा का अनुभव एवं पं लक्ष्मी कांत जी का उर्दु का ज्ञान, दोनो का समिश्रण पाठकों ऊं समक्ष इस पुस्तक को सही एवं स्पष्ट रुप में प्रस्तुत करने में सफल होगा और जब इसकी अनुवादित पांडुलिपि का अपने एक मित्र द्वारा, जो उर्दू भाषा का अच्छा ज्ञान रखते हैं, से अक्षरक्ष अध्ययन करवाया तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई कि मेरा विशवास बिलकुल सही था ।
चुंकि लाल किताब की अपनी एक लय तथा सुगंध है जिसको बरकरार रखते हुए पुस्तक का अनुवाद करने में अनुवादकों की मेहनत व लगन स्पष्ट झलकती है । जिसके लिए दोनो अनुवादक बधाई के पात्र हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक लाल किताब ज्योतिष पढ़ने वालो के लिए एक सुखद अनुभव होगी ऐसा मेरा विशवास है ।
अनुवादकों को पुन हार्दिक बधाई एवं आर्शीवाद तथा माता महाकाली से प्रार्थना करता हुं कि वह लक्ष्मीकांत जी एवं उमेश शर्मा जी को बल बुद्धि एवं आयु प्रदान करें जिससे वह आने वाले समय में ज्योतिष जगत की और भी सेवा कर सके।
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