नवग्रह यात्रा: Navagraha Yatra

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Item Code: NZA783
Author: डॉ. मीनाक्षी शर्मा (Dr Meenakshi Sharma)
Publisher: Ahuja Prakashan
Language: Hindi
ISBN: 8181100468
Pages: 216
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 250 gm
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Book Description

अपनों से अपनी बातें

ज्योतिष मानव जीवन की ज्योति (प्रकाश) है जो मानव जीवन के अंधकार को मिटा प्रकाशमय बनाने में सहयोग करती है । जन्म काल से मृत्युपर्यन्त जीवन के साथ ज्योतिष का सम्बन्ध रहता है। किसी भी कार्य में सफलता और उसके श्री गणेश (आरम्भ समय) के अनुसार ही होती है। किस समय में किस कार्य के आरम्भ करने में विफलता होती है। इसविषय में हमारे ऋषि-महर्षियों ने परीक्षण कर अपनी-अपनी उपलब्धी के अनुसार प्राणी मात्र के कल्याणार्थ लिख गये है, जो ज्योतिष के पुरातन प्राचीन ग्रन्थों में अंकित है।

'उत्तम सर्व भास्त्रेशु ज्योतिष शास्त्रं स्मृत यत:

विनेतद खिल श्रौंर्त रमार्त कर्म न सिद्धर्यात ।।

वैदिक या लौकिक कोई भी कार्य, बिना ज्योतिष के सिद्ध नही होता है। इसलिये सभी शास्त्रों में ज्योतिष श्रेष्ठ कहा गया है ।

एतदर्थ प्रेमी पाठकों तथा अपनी ओर से प्रकाशक महोदय का धन्यवाद देना भी मैं अपना कर्तव्य समझती हूँ । शुभ मंगल कामनाओं सहित-

डॉ.मीनाक्षी शर्मा

मानव कल्याण में ज्योतिष का महत्व

ज्योतिष एक अनुभूति का जगत है। ज्योतिष कोई दर्शन या तांत्रिक विद्या नही है। कोई चिंतन मनन की प्रक्रिया अथव विचार प्रणाली नही है। ज्योतिष शुद्धतम रूप की अनुभूति है। इसका पहला चरण है, अपनी अनुभूति तथा दूसरा चरण है दूसरे की अनुभूति, इसका तीसरा चरण है अखण्ड अस्तिव की अनुभूति। सभ्यता के विकास के कम मे मनुष्य विचार की दुनियां में ऐसा भटक गया है, कि अब वह केवल विचारो में ही जीता है। उसकी भावनात्मक दुनिया, संवेदनशीलता और अनुभूति के जगत पर केवल विचारों के बादल छाये है। वह मिथ्या जगत का ही होकर रह गया है।

ज्योतिष शास्त्र कहता है ज्योतिष ठीक विपरीत प्रक्रिया है, ज्योतिष तुम्हे मिथ्या से बचाता है। ज्योतिष की शिक्षा यहीं है, कि उस सत्य को फिर से खोजो जो आपके अन्तर्मन में छिपा है, और फिर सच्चे हो जाओ।

मनुष्य की जीवन ऊर्जा उसकी निरन्तर विचार प्रक्रिया के कारण उसके मस्तिष्क में केन्द्रित हो गई है । इसलिये मनुष्य केवल सोचता है, लेकिन अनुभव नहीं करता अथवा उसका सोचना उसे अनुभव करने के समान लगता है। क्योंकि उसका मन के साथ ऐसा तारतम्य जुड़ गया है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसे अनुभूत उपाय एवं मन्त्र है जे इस तारतम्य को तोड्ने के लिये ही बने है।

ज्योतिष शास्त्र के सबंध में बहुत सी भ्रातियाँ प्रचलित हो रही है, आज भी मनुष्य ज्योतिष से सर्वथा अनजान है। ज्योतिष शास्त्र वैदिक युग से भी पुराना ज्ञान भंडार है, यह सिर्फ आस्था, विश्वास और श्रद्धा पर ही स्थित है। ज्योतिष शास्त्र का गणित लगाकर सही भविष्य कथन एवं मार्ग दर्शन करना, किसी भी ज्योतिष आचार्य के वश में नहीं होता, इसके लिये ईश्वरीय व दैवीय कृपा व आशीर्वाद अनिवार्य है । प्रभु की कृपा के बिना ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान होना असंभव है। मनुष्य अपने भीतर अच्छे-बुरे, नैतिक-अनैतिक, शुभ-अशुभ केद्वंद्व में घिरा रहता है। सभी धर्मों का जीवन में सही योगदान है। ज्योतिष इन सभी धर्मों के प्रति विद्रोह है ज्योतिष अपने ढंग ही सर्वथा अनूठी विद्या है, अनूठी साधना है। सभी देश व काल में ज्योतिष काल अनुपम योगदान रहा है । ज्योतिष व्यक्ति के आन्तरिक जगत में प्रसुप्त एवं चैतन्य सम्पदा से संबंधित होने की उसमें स्थापित एंव प्रतिष्ठित होने की विधिवत् प्रणाली है । आज ज्योतिष शास्त्र ने पुन: हमारी आध्यात्मिक धार्मिक समृद्धि के द्वार खोल दिये है। ज्योतिष शास्त्र में उपलब्ध शक्तिशाली उपाय, टोटके, मन्त्र, विधि विधान ग्रहों की शान्ति व अनुकूल समय के लिये मौजूद है। जिनसे श्रद्धापूर्वक करके हम अपना वर्तमान, भविष्य और भूतकाल को भी सुधार सकते है। पूर्वजन्म के पितृ दोष, पितृ ऋण हम दान पुण्य द्वारा उतार सकते है। वर्तमान काल पूजा अर्चना से सुधारा जा सकता है। भविष्य काल को सुधारने के लिये ज्योतिष शास्त्र में अनुभूत उपाय है, जो प्रत्येक मानव जीवन के लिये कल्याणकारी है।

 

 

अनुक्रमणिका

ग्रह:

1

सूर्य-एक आग्नेय पिंड

7

2

चन्द्रमा-मन का कारक ग्रह

14

3

मंगल-शौर्य का प्रतीक

23

4

बुध-एक चंचल ग्रह

31

5

गुरू-एक सौम्य देवता ग्रह

38

6

शुक्र-ऐश्वर्य प्रधान ग्रह

45

7

शन-एक तपस्वी ग्रह

54

8

राह-केतु-शनि के छाया उपग्रह

65

राशि:

1

मेष

73

2

वृषभ

76

3

मिथुन

79

4

कर्क

82

5

सिंह

85

6

कन्या

88

7

तुला

91

8

वृश्चिक

94

9

धनु

97

10

मकर

100

11

कुम्भ

103

12

मीन

106

भाव:

1

प्रथम भाव-तन स्थान

109

2

दूतीय भाव-धन स्थान

113

3

तृती भाव-भातृ भाव स्थान

117

4

चतुर्थ भाव मातृ स्थान

122

5

पंचम भाव संतान स्थान

127

6

षृष्ठ भाव शत्रु व रोग स्थान

132

7

सप्तम भाव गृहस्थ स्थान

138

8

अष्टम भाव मृत्यु स्थान

143

9

नवम भाव - पुण्य व भाग्य स्थान

147

10

दशम भाव कर्म स्थान

153

11

एकादश भाव - लाभ स्थान

158

12

द्वादश भाव - व्यय एवं मोक्ष स्थान

163

जन्म कुंडली

1

जन्म कुंडली के एक ही भाव में दो ग्रहों का फलादेश

167

2

जन्म कुंडली के एक ही भाव में तीन ग्रहों का फलादेश

171

3

जन्म कुंडली के एक ही भाव मे चार ग्रहों का फलादेश

176

4

जन्म कुंडली के एक ही भाव में पाँच ग्रहों का फलादेश

181

5

जन्म कुंडली के एक ही भाव में छ: ग्रहों का फलादेश

184

6

प्रभाव युक्त राहु-केतु का फलादेश

185

7

मूल त्रिकोण

190

8

शनि की साढ़े साती

196

9

शनि की ढैया

209

 

 

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