परमायु दशा: Paramayu Dasha

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Item Code: NZA978
Author: गिरिश चन्द्रजोशी (Girish Chandra Joshi)
Publisher: Alpha Publications
Language: Hindi
Edition: 2006
ISBN: 817948033X
Pages: 216
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 290 gm
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Book Description

पुस्तक के बारे में

परमायु दशा महर्षि पाराशर की अन्य नक्षत्र दशाओं की भांति एक नक्षत्र दशा है । दूसरे रूप में आनुपातिक विंशोत्तरी दशा है । दशाफल विशोत्तरीवत् ही है, परन्तु दशामान विशोत्तरीवत् निश्चित नहीं होता । इस पुस्तक में दशा, अंतरदशा तथा प्रति-अतरदशा ज्ञात करने हेतु यथाशक्ति सरलीकृत तालिकायँ दी गई हैं । विगत दो दशको से सैकड़ों परमायु दशा युक्त जन्मपत्र देखने को मिले, जिनमें विंशोत्तरी की अपेक्षा परमायु दशा को ही फलादेश की सत्यता के अधिक निकट पाया । प्राचीन भारतीय ज्योतिष शास्त्र की लुप्त हो चुकी फलादेश की यह प्रभावी विधा लेखक को वर्षो की कड़ी में हनत, प्राचीन पाण्डुलिपियों के आलोड़न व हिमालय तथा नेपाल के अनेक महर्षियों से विशद संवाद के उपरान्त उपलब्ध हुई है । इसे जन-सामान्य के लिए इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है । सम्पूर्ण मानव जीवन पर ग्रह अपना गुणात्मक प्रभाव डालते हैं । अरिष्ट ग्रहों का शमन कर जीवन में चमत्कारिक उपलब्धियों प्राप्त की जा सकती हैं । इन अरिष्ट ग्रहों की शान्ति व विभिन्न मनोकामनाओं की सम्पूर्ति हेतु शास्त्रों में विविध प्रकार के अनुष्ठान निर्देशित हैं ।

लेखक के बारे में

सोलह वर्ष की किशोरावस्था से ही ज्योतिष के प्रति रुझान के परिणामस्वरूप स्वाध्याय से ज्योतिष सीखने की ललक व गुरु की तलाश में कुमाऊँ क्षेत्र के तत्कालीन प्रकाण्ड ज्योतिर्विदों के उलाहने सहने के बाद भी स्वाध्याय से अपनी यात्रा जारी रखते हुए वर्ष 1985 में वह अविस्मरणीय दिन आया जब वर्षों की प्यास बुझाने हेतु परम गुरु की प्राप्ति योगी भाष्करानन्दजी के रूप में हुई । पूज्य गुरुजी ने न केवल मंत्र दीक्षा देकर में रा जीवन धन्य किया अपितु अपनी ज्यौतिष रूपी ज्ञान की अमृतधारा से सिचित किया । शेष इस ज्योतिष रूपी महासागर से कुछ बूँदे पूज्य गुरुदेव श्री के०एन० राव जी के श्रीचरणों से प्राप्त हुईं । जैसा कि वर्ष 1986 की गुरुपूर्णिमा की रात्रि को योगी जी के श्रीमुख से यह पूर्व कथन प्रकट हुए '' कि में रे देह त्याग के बाद सर्वप्रथम मेरी जीवनी तुम लिखोगे । मैं वैकुण्ठ धाम में नारायण मन्दिर इस जीवन में नही बना पाऊँगा । मुझे पुन : आना होगा '' । कालान्तर में योगी जी का कथन सत्य साबित हुआ । वर्ष 1997 से प्रथम लेखन-1. योगी भाष्कर वैकुण्ठ धाम में योगी जी के जीवन पर लघु पुस्तिका का प्रकाशन हुआ । तत्पश्चात् 2. हिन्दू ज्योतिष का सरल अध्ययन भाषा टीका 3. व्यावसायिक जीवन में उतार-चढ़ाव भाषा टीका 4. आयु अरिष्ट अष्टम चन्द्र तथा प्रतिष्ठित पत्रो-दैनिक जागरण तथा अमर उजाला में प्रकाशित सौ से अधिक सत्य भविष्यवाणियों के उपरान्त दो वर्षों की अथक खोज के उपरान्त लुप्त हो चुकी परमायुदशा आपके हाथ में है ।

 

प्रस्तावना

कुमाऊँ तथा नेपाल में विगत चार-पांच दशक पूर्व प्रचलित तथा प्रयोग में लाई जाने वाली मुख्य दशा, जिसका परमायु दशा के रूप में-उल्लेख मिलता है । विगत लम्बे समय से प्राय : मुझे फलादेश के लिए ऐसी जन्म पत्रियां प्राप्त होती रही हैं । जिनमें मुख्य दशा के रूप में परमायु / अनुपाती दशा तथा सहायक योगिनी दशा ही लगी होती थी । विंशोत्तरी दशा का प्रयोग ऐसी कुण्डलियों में मैं जिज्ञासावश करता रहा परन्तु फलादेश हेतु परमायु दशा को ही मैंने सत्यता के अधिक निकट पाया । मन में जिज्ञासा थी कि लुप्त हो चुकी परमायु दशा की गणना-विधि की खोज की जाये । परन्तु यत्र-तत्र प्रयास करने पर निराशा ही हाथ लगी । विगत दो वर्ष पूर्व गुरूदेव की पुस्तक में दो पंक्तियां पढ़ी, जिसमें लिखा था कि परमायु दशा के रहस्य अभी छिपे हैं। यह पढ़कर पुन : प्रेरणा हुई । आपके आशीर्वाद के बल पर पुन : खोज में जुट गया । निकटवर्ती नेपाल के कुछ वयोवृद्ध ज्योतिर्विदों से संपर्क किया, परन्तु पुन : असफलता हाथ लगी। पुन : कुछ पुस्तकें टटोलने पर आचार्य मुकुन्ददेव पर्वतीय कृत आयुनिर्णय तथा गौरी-जातक में परमायु दशा के संकेत मिले परन्तु वह या तो अपूर्ण थे । या मुझ अल्पज्ञ की बुद्धि इन्हें समझने मे असमर्थ थी । अन्तत : गुरूकृपा से मेरे बड़े भ्रातातुल्य व मेरे ज्योतिषीय मित्र सिमखेत बागेश्वर जनपद निवासी श्री मनमोहन जोशी जी के दिवंगत पिता ज्योतिर्विद हरीशचन्द्र जोशी के हस्तलिखित परमायु दशा के संदर्भ मे कुछ अभिलेख जीर्णशीर्ण अवस्था मे प्राप्त हुए, जिन्हे परस्पर जोड़कर आप के सहयोग से परमायु दशा की गणना विधि प्राप्त करने मे सफलता दो वर्ष के उपरान्त प्राप्त हो सकी जिसे भारतीय विद्या भवन के सम्मानित ज्योतिष शिक्षक कुमाऊँ मूल के श्री के. के. जोशी जी ने आधिक सरलीकृत किया । परमायु दशा महर्षि पाराशर की अन्य नक्षत्र दशाओं की भांति एक नक्षत्र दशा है । दूसरे रूप में आनुपातिक विंशोत्तरी दशा है । दशाफल विंशोत्तरीवत ही है परन्तु दशामान विंशोत्तरीवत निश्चित नहीं होता । इस पुस्तक मे दशा अंतरदशा तथा प्रति-अंतरदशा ज्ञात करने हेतु यथाशक्ति सरलीकृत तालिकायें दी गई है। विगत दो दशकों से सैकड़ो परमायु दशा युक्त जन्मपत्र देखन को मिले न् जिनमे विंशोत्तरी की अपेक्षा परमायु दशा को ही फलादेश की सत्यता के अधिक निकट पाया । परन्तु जिज्ञासा अभी शान्त नहीं हो पाई. कारण योगिनी दशा के फलित के रहस्य संभवतया अभी भी लुप्त हैं । यद्यपि योगिनी दशा में अनेक प्रयाग हो चुके है. परन्तु लगता यह है कि संभवतया योगिनी दशा के कुछ सूत्र शायद अभी खोजने बाकी हैं । इस कार्य में श्री के. के. जोशी जी की प्रेरणा हेतु मैं सदैव उनका आभारी हूं । इसके अतिरिक्त श्री प्रमोद कोठारी, जिन्होंने लिखने में मेरा सहयोग किया, श्री अनिल पाण्डेय जिन्होंने तालिका निर्माण का गणितीय कार्य सम्पादित कर मुझे सहयोग दिया तथा मेरे ज्येष्ठ पुत्र मनोज जोशी, जिन्होने गणना आदि के कार्य मे सहयोग प्रदान किया । आप सब का आभार व्यक्त करते हुए अत में गणित ज्योतिष के प्रथम गुरू आदरणीय सतोष पंत जी का आभार व्यक्त करता हूं. जिनकी कृपा से मुझे ज्योतिष के गणित खण्ड का बोध हुआ । पुस्तक कै दशाफल खण्ड में ज्यौतिष. प्रारब्ध तथा कालचक्र का वृहत पाराशरी एवं उत्तर कालागृत से सहायता ली गई है । अंत में पुस्तक की टाइपिंग तथा डिजाइनिंग कार्य हेतु सहयोग करने हेतु श्री प्रशान्त वत्स, शाहदरा, दिल्ली का मैं सहृदय आभार व्यक्त करता हूं ।

अनुक्रमणिका

 
 

प्रस्तावना

(ix)

1

परमायु अथवा अनुपाती दशा की मूल गणना विधि

1

2

दशाफल के सिद्धान्त

13

3

दशान्तर्दशफलाध्याय

52

4

प्रत्यन्तर्दशा फलाध्याय

107

5

उदाहरण कुण्डलियों द्वारा व्याख्या

110

6

सरलीकृत तालिकाओं की सहायता से गणना विधि

169

 

शब्दावली

205

Sample Pages


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