प्राक्कथन
हठयोग मंजरी यह हठयोग के अभ्यासों का साङ्गोपाक् वर्णन करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । इस ग्रन्थ का प्रथम प्रकाशन धार्मिक प्रेस प्रयाग से ब्रह्मज्ञान विद्यार्थी जी द्वारा गया था । मैंने उक्त प्रकाशित ग्रन्थ की प्रतियाँ प्राप्त करने का हर संभव प्रयास किया, परन्तु न तो यह प्रेस उपलब्ध है ओर न ही इसके प्रकाशक । अस्तु! ग्रन्थ मैं प्रतिपादित अभ्यासों की सरलता एवं सुगमता तथा जिज्ञासुओं हेतु इस ग्रन्थ की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इस ग्रन्थ के पुनर्प्रकाशन का विचार तो बहुत पहले आया था परन्तु स्थिति ऊहापोह की थी कि कहीं प्रथम प्रकाशक की अनुमति लिए बिना इस ग्रन्थ का पुनर्प्रकाशन करना ठीक होगा या नहीं । इस अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति में बहुत समय बीत गया । अन्त तो गत्वा मुझे लगा की ग्रन्थ की महत्वपूर्ण सूचनाएँ योग जिज्ञासुओं तक पहूँचनी चाहिए । अत: मैंने अपने अन्तर्मन के भाव को सुन कर इस ग्रन्ध के पुनर्प्रकाशन का निर्णय इस तथ्य के आधार लिया कि इस ग्रन्थके प्रकाशन में जो खर्च होगा तदनुरूप इस का मूल्य निर्धारित होगा । इस तथ्य की पुष्टि ग्रन्थ के मूल्य से स्पष्ट है ।
ग्रन्थ अत्यन्त रोचक एवं अनुभवों से ओतप्रोत है । सभी विषय हिन्दी भाषा में होने के कारण सरलता से हृदयङग्म किये जा सकते हैं । मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सुधी पाठक मेरे इस प्रयास को अन्यथा नहीं लेंगे । उक्त प्रयास धनार्जन हेतु नहीं अपितु हृदय के उस भाव को उजागर करता है जो मेरे गुरु दिवंगत स्वामी कुवलयानन्द जी ने कभी प्रकट किया था कि योग से सम्बन्धित कोई भी जानकारी प्राप्त हो तो उसे आम लोगों तक पहुंचाना अपना कर्तव्य समझना चाहिए । इस ग्रन्थ के पुनर्प्रकाशन से योग जिज्ञासु अवश्य लाभान्वित होंगे तथा अपने सुझावों को मुझ तक पहुँचाने का कष्ट करेंगे । ऐसी अपेक्षा है ।
अनुक्रमणिका |
||
1 |
मंगलाचरण |
पत्र |
2 |
गुरु नमस्कार |
1 |
3 |
महा सिद्धन के नाम |
8 |
4 |
हठ विद्या को गोप्य रखना |
26 |
5 |
योगियों का अधार हठयोग |
3 |
6 |
योग के आठ अंगों को नाम यम, नेम, आसम, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारना, ध्यान, समाधि । |
37 |
7 |
यम पहिला अंग |
36 |
8 |
नेम दूसरा अंग |
40 |
आसन विधान ।। 3 ।। |
||
1 |
स्वस्तिक आसम |
47 |
2 |
गौ मुख आसन |
48 |
3 |
वीर आसन |
49 |
4 |
योग आसन |
50 |
5 |
कुर्कुट आसन |
51 |
6 |
कूर्म आसन |
52 |
7 |
धनुष आसन |
54 |
8 |
मछन्दर पीठ आसन |
55 |
9 |
पश्चिम तान आसन |
57 |
10 |
मोर आसन |
56 |
11 |
मड़ा आसन |
62 |
12 |
सिद्ध आसन |
64 |
13 |
पद्म आसन |
67 |
14 |
सिंह आसन |
71 |
15 |
भग आसन |
77 |
16 |
गोरख आसन |
9 |
17 |
कपाली आसन |
|
18 |
योग का विघ्न करना |
|
19 |
योग का क्रम |
9 |
20 |
योगियों के आहार की विधि |
10 |
21 |
अपथ्य भोजन |
16 |
22 |
पथ्य भोजन |
10 |
काया साधन का कर्म ।। |
||
1 |
धोती कर्म |
30 |
2 |
वस्ति कर्म |
33 |
3 |
नेती कर्म |
38 |
5 |
नौली कर्म |
46 |
6 |
पवन बस्ती कर्म |
50 |
7 |
ब्रह्म दांतन कर्म |
54 |
8 |
बागली क्रियाकर्म |
57 |
9 |
संग प्रवाली कर्म |
59 |
10 |
कपाल भाती कर्म |
60 |
प्रणायाम ।। 4 ।। |
3 |
|
नाड़ी सोधन विधि |
15 |
|
प्राणायाम तीन प्रकार |
92 |
|
ओंकार |
14 |
|
कुंभक आठ प्रकार के ।। |
||
1 |
सूर्य भेंटू |
1 |
2 |
उज्जाई |
3 |
3 |
सीतकार |
7 |
4 |
सीतली |
9 |
5 |
भस्त्रिका कुंभक |
11 |
6 |
भ्रामरी कुंभक |
18 |
7 |
मूर्छा कुंभक |
20 |
सावनी कुंभक |
23 |
|
8 |
केवल कुंभक |
26 |
योग सिद्ध के लक्षण |
31 |
|
प्रत्याहार का अंग ।। 5 ।। |
||
इंद्री संयम |
||
धारणा |
||
पृथ्वी धारणा |
18 |
|
अप धारणा |
21 |
|
तेज धारणा |
23 |
|
वायु धारणा |
27 |
|
आकाश धारणा |
31 |
|
फल और पंच भूत |
||
का मंत्र सहित ।। |
||
ध्यान अंग ।।7 ।। |
24 |
|
षट चक्र ध्यान |
||
1 |
आधार चक्र |
25 |
2 |
स्वाधिष्ठान |
25 |
3 |
माँ पूरक |
25 |
4 |
अनहद |
25 |
5 |
विशुद्ध |
|
6 |
आशा |
|
ध्यान मुद्रा |
26 |
|
समाधि अंग ।। 8 ।। |
28 |
|
दस महा मुद्रा |
||
1 |
महा मुद्रा |
32 |
2 |
महा वेध |
31 |
3 |
महा बंध |
2 |
4 |
खेचरी मुद्रा के साधन फल, मंत्र |
32 |
मेलक मुद्रा |
36 |
|
5 |
उड़ीयान बंध |
37 |
6 |
मूल बंध |
38 |
7 |
जालंधर बंध |
38 |
8 |
विपरीत करनी मुद्रा |
39 |
9 |
बज्ज्रोली मुद्रा |
40 |
10 |
शक्ति चालनी मुर्द्रा |
42 |
छाया पुरुष दर्शन विधि |
43 |
|
कालज्ञान मंत्र |
44 |
|
कायाकल्प भांगो का |
45 |
|
कायाकल्प हाड़ का |
45 |
प्राक्कथन
हठयोग मंजरी यह हठयोग के अभ्यासों का साङ्गोपाक् वर्णन करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । इस ग्रन्थ का प्रथम प्रकाशन धार्मिक प्रेस प्रयाग से ब्रह्मज्ञान विद्यार्थी जी द्वारा गया था । मैंने उक्त प्रकाशित ग्रन्थ की प्रतियाँ प्राप्त करने का हर संभव प्रयास किया, परन्तु न तो यह प्रेस उपलब्ध है ओर न ही इसके प्रकाशक । अस्तु! ग्रन्थ मैं प्रतिपादित अभ्यासों की सरलता एवं सुगमता तथा जिज्ञासुओं हेतु इस ग्रन्थ की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इस ग्रन्थ के पुनर्प्रकाशन का विचार तो बहुत पहले आया था परन्तु स्थिति ऊहापोह की थी कि कहीं प्रथम प्रकाशक की अनुमति लिए बिना इस ग्रन्थ का पुनर्प्रकाशन करना ठीक होगा या नहीं । इस अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति में बहुत समय बीत गया । अन्त तो गत्वा मुझे लगा की ग्रन्थ की महत्वपूर्ण सूचनाएँ योग जिज्ञासुओं तक पहूँचनी चाहिए । अत: मैंने अपने अन्तर्मन के भाव को सुन कर इस ग्रन्ध के पुनर्प्रकाशन का निर्णय इस तथ्य के आधार लिया कि इस ग्रन्थके प्रकाशन में जो खर्च होगा तदनुरूप इस का मूल्य निर्धारित होगा । इस तथ्य की पुष्टि ग्रन्थ के मूल्य से स्पष्ट है ।
ग्रन्थ अत्यन्त रोचक एवं अनुभवों से ओतप्रोत है । सभी विषय हिन्दी भाषा में होने के कारण सरलता से हृदयङग्म किये जा सकते हैं । मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सुधी पाठक मेरे इस प्रयास को अन्यथा नहीं लेंगे । उक्त प्रयास धनार्जन हेतु नहीं अपितु हृदय के उस भाव को उजागर करता है जो मेरे गुरु दिवंगत स्वामी कुवलयानन्द जी ने कभी प्रकट किया था कि योग से सम्बन्धित कोई भी जानकारी प्राप्त हो तो उसे आम लोगों तक पहुंचाना अपना कर्तव्य समझना चाहिए । इस ग्रन्थ के पुनर्प्रकाशन से योग जिज्ञासु अवश्य लाभान्वित होंगे तथा अपने सुझावों को मुझ तक पहुँचाने का कष्ट करेंगे । ऐसी अपेक्षा है ।
अनुक्रमणिका |
||
1 |
मंगलाचरण |
पत्र |
2 |
गुरु नमस्कार |
1 |
3 |
महा सिद्धन के नाम |
8 |
4 |
हठ विद्या को गोप्य रखना |
26 |
5 |
योगियों का अधार हठयोग |
3 |
6 |
योग के आठ अंगों को नाम यम, नेम, आसम, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारना, ध्यान, समाधि । |
37 |
7 |
यम पहिला अंग |
36 |
8 |
नेम दूसरा अंग |
40 |
आसन विधान ।। 3 ।। |
||
1 |
स्वस्तिक आसम |
47 |
2 |
गौ मुख आसन |
48 |
3 |
वीर आसन |
49 |
4 |
योग आसन |
50 |
5 |
कुर्कुट आसन |
51 |
6 |
कूर्म आसन |
52 |
7 |
धनुष आसन |
54 |
8 |
मछन्दर पीठ आसन |
55 |
9 |
पश्चिम तान आसन |
57 |
10 |
मोर आसन |
56 |
11 |
मड़ा आसन |
62 |
12 |
सिद्ध आसन |
64 |
13 |
पद्म आसन |
67 |
14 |
सिंह आसन |
71 |
15 |
भग आसन |
77 |
16 |
गोरख आसन |
9 |
17 |
कपाली आसन |
|
18 |
योग का विघ्न करना |
|
19 |
योग का क्रम |
9 |
20 |
योगियों के आहार की विधि |
10 |
21 |
अपथ्य भोजन |
16 |
22 |
पथ्य भोजन |
10 |
काया साधन का कर्म ।। |
||
1 |
धोती कर्म |
30 |
2 |
वस्ति कर्म |
33 |
3 |
नेती कर्म |
38 |
5 |
नौली कर्म |
46 |
6 |
पवन बस्ती कर्म |
50 |
7 |
ब्रह्म दांतन कर्म |
54 |
8 |
बागली क्रियाकर्म |
57 |
9 |
संग प्रवाली कर्म |
59 |
10 |
कपाल भाती कर्म |
60 |
प्रणायाम ।। 4 ।। |
3 |
|
नाड़ी सोधन विधि |
15 |
|
प्राणायाम तीन प्रकार |
92 |
|
ओंकार |
14 |
|
कुंभक आठ प्रकार के ।। |
||
1 |
सूर्य भेंटू |
1 |
2 |
उज्जाई |
3 |
3 |
सीतकार |
7 |
4 |
सीतली |
9 |
5 |
भस्त्रिका कुंभक |
11 |
6 |
भ्रामरी कुंभक |
18 |
7 |
मूर्छा कुंभक |
20 |
सावनी कुंभक |
23 |
|
8 |
केवल कुंभक |
26 |
योग सिद्ध के लक्षण |
31 |
|
प्रत्याहार का अंग ।। 5 ।। |
||
इंद्री संयम |
||
धारणा |
||
पृथ्वी धारणा |
18 |
|
अप धारणा |
21 |
|
तेज धारणा |
23 |
|
वायु धारणा |
27 |
|
आकाश धारणा |
31 |
|
फल और पंच भूत |
||
का मंत्र सहित ।। |
||
ध्यान अंग ।।7 ।। |
24 |
|
षट चक्र ध्यान |
||
1 |
आधार चक्र |
25 |
2 |
स्वाधिष्ठान |
25 |
3 |
माँ पूरक |
25 |
4 |
अनहद |
25 |
5 |
विशुद्ध |
|
6 |
आशा |
|
ध्यान मुद्रा |
26 |
|
समाधि अंग ।। 8 ।। |
28 |
|
दस महा मुद्रा |
||
1 |
महा मुद्रा |
32 |
2 |
महा वेध |
31 |
3 |
महा बंध |
2 |
4 |
खेचरी मुद्रा के साधन फल, मंत्र |
32 |
मेलक मुद्रा |
36 |
|
5 |
उड़ीयान बंध |
37 |
6 |
मूल बंध |
38 |
7 |
जालंधर बंध |
38 |
8 |
विपरीत करनी मुद्रा |
39 |
9 |
बज्ज्रोली मुद्रा |
40 |
10 |
शक्ति चालनी मुर्द्रा |
42 |
छाया पुरुष दर्शन विधि |
43 |
|
कालज्ञान मंत्र |
44 |
|
कायाकल्प भांगो का |
45 |
|
कायाकल्प हाड़ का |
45 |