प्रकाशक का वक्तव्य
उपचार पद्धति का यह 13 वाँ संस्करण प्रकाशित करते हुए श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लि० के संचालकों को बहुत हर्ष हो रहा है; क्योंकि इस पुस्तक का यह 13 वाँ संस्करण प्रकाशित होना ही इसकी उपयोगिता और लोकप्रियता का प्रमाण है ।
जैसा कि प्रथम संस्करण की भूमिका में हमने कहा था, रोगी की समुचित चिकित्सा में दवा के साथ-साथ उपचार और पथ्य भी बहुत ही महत्व रखते हैं । इस विषय को सर्वसाधारण को जानकारी हमारे देश में इतनी कम है कि अच्छी औषधि तथा कुशल वैद्य प्राप्त होने पर भी रोग के चंगुल में फसी हुई जनता का रोग से इतना शीघ्र छुटकारा नहीं होता, जितना शीघ्र होना चाहिए ।
सर्वसाधारण गृहस्थ के सैकड़ों रुपये प्रतिवर्ष बच सकते हैं, यदि उन्हें उपचार और पथ्य का साधारण ज्ञान भी हो जाय और इसी लक्ष्य को सम्मुख रखकर इस पुस्तक का प्रकाशन हमने किया है ।
प्रस्तुत संस्करण में अनेक समयोपयोगी संशोधन-परिवर्द्धन भी किये गये हैं, जिससे पुस्तक की उपयोगिता और भी अधिक हो गई है ।
कम से कम यानी लागत मात्र मूल्य पर ऊँचे दर्जे के आयुर्वेदीय साहित्य का प्रचार-प्रसार करना बैद्यनाथ प्रकाशन का मूल सिद्धान्त रहा है । इसीलिए इस पुस्तक का मूल्य भी बहुत कम रखा गया है ।
भूमिका
चिकित्सा पर हिन्दी में बहुत-सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, पर इसके विविध अङ्गों पर पथ्यापथ्य-सम्बन्धी पुस्तकों का अभाव-सा ही है । हमारे साहित्य को सर्वाङ्गपूर्ण होना चाहिए । शास्त्रीजी ने इस पुस्तक को लिखकर जनता का अत्यधिक हित किया है । जो लोग चिकित्सा कार्य करते हैं, वे जानते हैं कि हमारे यहाँ लोगों को पथ्य और उपचार की बातें बतलाने में चिकित्सक को कितना सिर खपाना पड़ता है । बुखार बढ़ गया तो क्या करें; भूख लगे तो क्या दें; आदि के लिए या तो भाग- भागकर चिकित्सक के यहां जाना पड़ता है और चिन्तित होना पड़ता है और उसे बुलाने के लिए बार-बार पैसे देने पड़ते है । इस पुस्तक को पढ़ लेने से सभी बातें समझ में आ जाती हैं । विष में, सर्प आदि काट लेने में, बेहोशी में क्या करना चाहिए आदि बातें भी बड़े सुन्दर ढंग से लिखी गयी है । पुस्तक इस ढंग से लिखी गई है कि साधारण जनता के अतिरिक्त चिकित्सकों को भी बहुत-सी आवश्यक बातों का ज्ञान हो जायगा और यह अन्धकार दूर हो जायगा कि पथ्य का प्रभाव रोग पर होता है, दवाई पर नहीं ।
विषय |
पृं.सं. |
|
1 |
प्रथम परिच्छेद |
|
2 |
रोगी का कमरा |
1 |
3 |
पूर्ण प्रकाश |
1 |
4 |
शुद्ध हवा |
2 |
5 |
द्वितीय परिच्छेद |
|
6 |
परिचारक |
3 |
7 |
अयोग्य परिचारक |
4 |
8 |
परिचारक के कर्तव्य |
4 |
9 |
तृतीय परिच्छेद |
|
10 |
आवश्यक उपचार |
6 |
11 |
ड्रेसिंग ( घावों की मरहम -पट्टी) |
6 |
12 |
देशी चिकित्सा में |
6 |
13 |
पानी की पट्टी |
6 |
14 |
गन्धक और राई का स्नान |
6 |
15 |
सेंक |
7 |
16 |
(१) भोगी सेंक |
7 |
17 |
(२) सूखी सेंक |
7 |
18 |
पोस्तफली की सेंक |
7 |
19 |
पुलटिस |
8 |
20 |
आँख में दवा |
8 |
21 |
मालिश |
8 |
22 |
स्वेद-पसीना |
8 |
23 |
संवाहन ( चापना) |
8 |
24 |
स्नान और स्पंज |
9 |
25 |
शीत जल से स्नान |
9 |
26 |
उष्ण जल स्नान |
9 |
27 |
वाष्प स्नान |
10 |
28 |
जोंक का प्रयोग |
10 |
29 |
एनिमा या गुदाबस्ति |
11 |
30 |
1-विरे चक एनिमा |
11 |
31 |
2-संशोधक एनिमा |
12 |
32 |
3-कृमिनाशक एनिमा |
12 |
33 |
4-शामक एनिमा |
12 |
34 |
5-पौष्टिक एनिमा |
12 |
35 |
6-उत्तेजक एनिमा |
13 |
36 |
उत्तरबस्ति |
13 |
37 |
पुरुषों की उत्तरबस्ति |
13 |
38 |
स्त्रियों की उत्तरबस्ति |
13 |
39 |
गण्डूष |
13 |
40 |
नस्य |
13 |
41 |
नाड़ी, श्वास और तापमान |
14 |
42 |
श्वास |
15 |
43 |
तापमान |
15 |
44 |
चतुर्थ परिच्छेद |
|
45 |
दुर्घटनाएँ और उनका उपचार |
16 |
46 |
सर्प-दंशन |
16 |
47 |
आग से जलना |
16 |
48 |
पागल कुत्ते का काटना |
17 |
49 |
जल में डूबना |
18 |
50 |
फाँसी लगाना |
18 |
51 |
मकड़ी का फिरना |
19 |
52 |
बिच्छू -बर्रे का दंशन |
19 |
53 |
चूहे का काटना |
19 |
54 |
अंशुघात -लू लगना |
19 |
55 |
आघात |
20 |
56 |
कुचल जाना |
20 |
57 |
विष - भक्षण |
20 |
58 |
उलटी लानेवाली वस्तुएँ |
20 |
59 |
विरेचन |
21 |
60 |
अफीम |
21 |
61 |
संखिया |
21 |
62 |
धतूरा |
21 |
63 |
पंचम परिच्छेद |
|
64 |
रोगी का आहार |
22 |
65 |
तुलसी की चाय |
22 |
66 |
अदरख की चाय |
22 |
67 |
यवाग् |
23 |
68 |
(क) पेया |
23 |
69 |
(ख) मण्ड |
23 |
70 |
(ग) विलेपी-लप्सी यूष |
23 |
71 |
पचमुष्टिक यूष |
23 |
72 |
सत्तू |
23 |
73 |
दूध |
24 |
74 |
दही |
24 |
75 |
मलाई |
24 |
76 |
तक्र |
24 |
77 |
मक्खन |
25 |
78 |
क्षीरपाक |
25 |
79 |
फल |
25 |
80 |
दाल, शाक और चटनी |
25 |
81 |
विरोधी पदार्थ |
26 |
82 |
सर्वदा उपयोगी पथ्य |
27 |
83 |
सर्वदा अपथ्य |
27 |
84 |
षष्ठ परिच्छेद |
28 |
85 |
रोगी के आवश्यक नियम |
28 |
86 |
उपवास |
28 |
87 |
रोगी के व्यायाम |
28 |
88 |
रोगी के व्यसन |
28 |
89 |
मानसिक शान्ति |
29 |
90 |
ब्रह्मचर्य |
29 |
91 |
सिनेमा और नाटक |
29 |
92 |
पुस्तकें |
30 |
93 |
शय्याव्रण |
30 |
94 |
निद्रा |
30 |
95 |
मल-मूत्र त्याग |
31 |
96 |
बिस्तर बदलना |
31 |
97 |
शोर - गुल से बचाना |
31 |
98 |
मुलाकातियों से रक्षा |
31 |
99 |
द्वितीय खण्ड |
|
100 |
पथ्य- अपथ्य |
32 |
101 |
रोगी का आहार-विहार |
32 |
102 |
पथ्य का परिचय |
32 |
103 |
नवज्वर |
33 |
104 |
मलेरिया |
33 |
105 |
टाइफाइड मोतीझरा |
33 |
106 |
सत्रिपात |
34 |
107 |
जीर्णज्वर |
34 |
108 |
अतिसार |
35 |
109 |
संग्रहणी |
35 |
110 |
गुल्म ( वायुगोला) |
36 |
111 |
अर्श ( बवासीर) |
36 |
112 |
पाण्डु ( पीलिया) |
36 |
113 |
रक्तपित्त |
37 |
114 |
हदय - रोग |
37 |
115 |
प्रदाह |
37 |
116 |
आमवात |
38 |
117 |
विसर्प |
38 |
118 |
वमन |
38 |
119 |
तूष्णा |
39 |
120 |
अम्लपित्त |
39 |
121 |
चेचक ( मसूरिका) |
39 |
122 |
हैजा ( विसूचिका) |
40 |
123 |
प्लेग (Plague) |
40 |
124 |
अपस्मार (मृगी) |
41 |
125 |
उन्माद |
41 |
126 |
मूर्च्छा (बेहोशी) |
42 |
127 |
मदात्यय |
42 |
128 |
हिस्टीरिया |
43 |
129 |
न्यूमोनिया (Pneumonia) |
43 |
130 |
पसली चलना (डब्बा रोग) |
44 |
131 |
ब्लडप्रेसर |
44 |
132 |
प्रमेह |
44 |
133 |
उपदंश (आतशक) |
45 |
134 |
श्वास |
45 |
135 |
राजयक्ष्मा (तपेदिक) |
46 |
136 |
उदर-कृमि |
46 |
137 |
अरुचि |
47 |
138 |
शूल |
47 |
139 |
वातरक्त |
48 |
140 |
उरुस्तम्भ |
48 |
141 |
शीतपित्त |
48 |
142 |
मूत्रकृच्छ् |
49 |
143 |
मूत्राघात |
49 |
144 |
अश्मरी |
49 |
145 |
मेदो रोग |
49 |
146 |
कृशता |
50 |
147 |
शोथ |
50 |
148 |
कास (खाँसी) |
50 |
149 |
हिक्का (हिचकी) |
51 |
150 |
स्वरभेद (गला बैठना) |
51 |
151 |
श्लीपद (फीलपाँव) |
51 |
152 |
गण्डमाला |
52 |
153 |
विद्रधि |
52 |
154 |
नाड़ीब्रण (नासूर) |
52 |
155 |
प्रदर |
52 |
156 |
गर्भिणी-रोग |
53 |
157 |
सूतिका-रोग |
53 |
158 |
मुख-रोग |
53 |
159 |
कर्ण-रोग |
54 |
160 |
नासा-रोग |
54 |
161 |
शिरो-रोग |
54 |
162 |
नेत्र-रोग |
54 |
163 |
वातव्याधि |
55 |
प्रकाशक का वक्तव्य
उपचार पद्धति का यह 13 वाँ संस्करण प्रकाशित करते हुए श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लि० के संचालकों को बहुत हर्ष हो रहा है; क्योंकि इस पुस्तक का यह 13 वाँ संस्करण प्रकाशित होना ही इसकी उपयोगिता और लोकप्रियता का प्रमाण है ।
जैसा कि प्रथम संस्करण की भूमिका में हमने कहा था, रोगी की समुचित चिकित्सा में दवा के साथ-साथ उपचार और पथ्य भी बहुत ही महत्व रखते हैं । इस विषय को सर्वसाधारण को जानकारी हमारे देश में इतनी कम है कि अच्छी औषधि तथा कुशल वैद्य प्राप्त होने पर भी रोग के चंगुल में फसी हुई जनता का रोग से इतना शीघ्र छुटकारा नहीं होता, जितना शीघ्र होना चाहिए ।
सर्वसाधारण गृहस्थ के सैकड़ों रुपये प्रतिवर्ष बच सकते हैं, यदि उन्हें उपचार और पथ्य का साधारण ज्ञान भी हो जाय और इसी लक्ष्य को सम्मुख रखकर इस पुस्तक का प्रकाशन हमने किया है ।
प्रस्तुत संस्करण में अनेक समयोपयोगी संशोधन-परिवर्द्धन भी किये गये हैं, जिससे पुस्तक की उपयोगिता और भी अधिक हो गई है ।
कम से कम यानी लागत मात्र मूल्य पर ऊँचे दर्जे के आयुर्वेदीय साहित्य का प्रचार-प्रसार करना बैद्यनाथ प्रकाशन का मूल सिद्धान्त रहा है । इसीलिए इस पुस्तक का मूल्य भी बहुत कम रखा गया है ।
भूमिका
चिकित्सा पर हिन्दी में बहुत-सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, पर इसके विविध अङ्गों पर पथ्यापथ्य-सम्बन्धी पुस्तकों का अभाव-सा ही है । हमारे साहित्य को सर्वाङ्गपूर्ण होना चाहिए । शास्त्रीजी ने इस पुस्तक को लिखकर जनता का अत्यधिक हित किया है । जो लोग चिकित्सा कार्य करते हैं, वे जानते हैं कि हमारे यहाँ लोगों को पथ्य और उपचार की बातें बतलाने में चिकित्सक को कितना सिर खपाना पड़ता है । बुखार बढ़ गया तो क्या करें; भूख लगे तो क्या दें; आदि के लिए या तो भाग- भागकर चिकित्सक के यहां जाना पड़ता है और चिन्तित होना पड़ता है और उसे बुलाने के लिए बार-बार पैसे देने पड़ते है । इस पुस्तक को पढ़ लेने से सभी बातें समझ में आ जाती हैं । विष में, सर्प आदि काट लेने में, बेहोशी में क्या करना चाहिए आदि बातें भी बड़े सुन्दर ढंग से लिखी गयी है । पुस्तक इस ढंग से लिखी गई है कि साधारण जनता के अतिरिक्त चिकित्सकों को भी बहुत-सी आवश्यक बातों का ज्ञान हो जायगा और यह अन्धकार दूर हो जायगा कि पथ्य का प्रभाव रोग पर होता है, दवाई पर नहीं ।
विषय |
पृं.सं. |
|
1 |
प्रथम परिच्छेद |
|
2 |
रोगी का कमरा |
1 |
3 |
पूर्ण प्रकाश |
1 |
4 |
शुद्ध हवा |
2 |
5 |
द्वितीय परिच्छेद |
|
6 |
परिचारक |
3 |
7 |
अयोग्य परिचारक |
4 |
8 |
परिचारक के कर्तव्य |
4 |
9 |
तृतीय परिच्छेद |
|
10 |
आवश्यक उपचार |
6 |
11 |
ड्रेसिंग ( घावों की मरहम -पट्टी) |
6 |
12 |
देशी चिकित्सा में |
6 |
13 |
पानी की पट्टी |
6 |
14 |
गन्धक और राई का स्नान |
6 |
15 |
सेंक |
7 |
16 |
(१) भोगी सेंक |
7 |
17 |
(२) सूखी सेंक |
7 |
18 |
पोस्तफली की सेंक |
7 |
19 |
पुलटिस |
8 |
20 |
आँख में दवा |
8 |
21 |
मालिश |
8 |
22 |
स्वेद-पसीना |
8 |
23 |
संवाहन ( चापना) |
8 |
24 |
स्नान और स्पंज |
9 |
25 |
शीत जल से स्नान |
9 |
26 |
उष्ण जल स्नान |
9 |
27 |
वाष्प स्नान |
10 |
28 |
जोंक का प्रयोग |
10 |
29 |
एनिमा या गुदाबस्ति |
11 |
30 |
1-विरे चक एनिमा |
11 |
31 |
2-संशोधक एनिमा |
12 |
32 |
3-कृमिनाशक एनिमा |
12 |
33 |
4-शामक एनिमा |
12 |
34 |
5-पौष्टिक एनिमा |
12 |
35 |
6-उत्तेजक एनिमा |
13 |
36 |
उत्तरबस्ति |
13 |
37 |
पुरुषों की उत्तरबस्ति |
13 |
38 |
स्त्रियों की उत्तरबस्ति |
13 |
39 |
गण्डूष |
13 |
40 |
नस्य |
13 |
41 |
नाड़ी, श्वास और तापमान |
14 |
42 |
श्वास |
15 |
43 |
तापमान |
15 |
44 |
चतुर्थ परिच्छेद |
|
45 |
दुर्घटनाएँ और उनका उपचार |
16 |
46 |
सर्प-दंशन |
16 |
47 |
आग से जलना |
16 |
48 |
पागल कुत्ते का काटना |
17 |
49 |
जल में डूबना |
18 |
50 |
फाँसी लगाना |
18 |
51 |
मकड़ी का फिरना |
19 |
52 |
बिच्छू -बर्रे का दंशन |
19 |
53 |
चूहे का काटना |
19 |
54 |
अंशुघात -लू लगना |
19 |
55 |
आघात |
20 |
56 |
कुचल जाना |
20 |
57 |
विष - भक्षण |
20 |
58 |
उलटी लानेवाली वस्तुएँ |
20 |
59 |
विरेचन |
21 |
60 |
अफीम |
21 |
61 |
संखिया |
21 |
62 |
धतूरा |
21 |
63 |
पंचम परिच्छेद |
|
64 |
रोगी का आहार |
22 |
65 |
तुलसी की चाय |
22 |
66 |
अदरख की चाय |
22 |
67 |
यवाग् |
23 |
68 |
(क) पेया |
23 |
69 |
(ख) मण्ड |
23 |
70 |
(ग) विलेपी-लप्सी यूष |
23 |
71 |
पचमुष्टिक यूष |
23 |
72 |
सत्तू |
23 |
73 |
दूध |
24 |
74 |
दही |
24 |
75 |
मलाई |
24 |
76 |
तक्र |
24 |
77 |
मक्खन |
25 |
78 |
क्षीरपाक |
25 |
79 |
फल |
25 |
80 |
दाल, शाक और चटनी |
25 |
81 |
विरोधी पदार्थ |
26 |
82 |
सर्वदा उपयोगी पथ्य |
27 |
83 |
सर्वदा अपथ्य |
27 |
84 |
षष्ठ परिच्छेद |
28 |
85 |
रोगी के आवश्यक नियम |
28 |
86 |
उपवास |
28 |
87 |
रोगी के व्यायाम |
28 |
88 |
रोगी के व्यसन |
28 |
89 |
मानसिक शान्ति |
29 |
90 |
ब्रह्मचर्य |
29 |
91 |
सिनेमा और नाटक |
29 |
92 |
पुस्तकें |
30 |
93 |
शय्याव्रण |
30 |
94 |
निद्रा |
30 |
95 |
मल-मूत्र त्याग |
31 |
96 |
बिस्तर बदलना |
31 |
97 |
शोर - गुल से बचाना |
31 |
98 |
मुलाकातियों से रक्षा |
31 |
99 |
द्वितीय खण्ड |
|
100 |
पथ्य- अपथ्य |
32 |
101 |
रोगी का आहार-विहार |
32 |
102 |
पथ्य का परिचय |
32 |
103 |
नवज्वर |
33 |
104 |
मलेरिया |
33 |
105 |
टाइफाइड मोतीझरा |
33 |
106 |
सत्रिपात |
34 |
107 |
जीर्णज्वर |
34 |
108 |
अतिसार |
35 |
109 |
संग्रहणी |
35 |
110 |
गुल्म ( वायुगोला) |
36 |
111 |
अर्श ( बवासीर) |
36 |
112 |
पाण्डु ( पीलिया) |
36 |
113 |
रक्तपित्त |
37 |
114 |
हदय - रोग |
37 |
115 |
प्रदाह |
37 |
116 |
आमवात |
38 |
117 |
विसर्प |
38 |
118 |
वमन |
38 |
119 |
तूष्णा |
39 |
120 |
अम्लपित्त |
39 |
121 |
चेचक ( मसूरिका) |
39 |
122 |
हैजा ( विसूचिका) |
40 |
123 |
प्लेग (Plague) |
40 |
124 |
अपस्मार (मृगी) |
41 |
125 |
उन्माद |
41 |
126 |
मूर्च्छा (बेहोशी) |
42 |
127 |
मदात्यय |
42 |
128 |
हिस्टीरिया |
43 |
129 |
न्यूमोनिया (Pneumonia) |
43 |
130 |
पसली चलना (डब्बा रोग) |
44 |
131 |
ब्लडप्रेसर |
44 |
132 |
प्रमेह |
44 |
133 |
उपदंश (आतशक) |
45 |
134 |
श्वास |
45 |
135 |
राजयक्ष्मा (तपेदिक) |
46 |
136 |
उदर-कृमि |
46 |
137 |
अरुचि |
47 |
138 |
शूल |
47 |
139 |
वातरक्त |
48 |
140 |
उरुस्तम्भ |
48 |
141 |
शीतपित्त |
48 |
142 |
मूत्रकृच्छ् |
49 |
143 |
मूत्राघात |
49 |
144 |
अश्मरी |
49 |
145 |
मेदो रोग |
49 |
146 |
कृशता |
50 |
147 |
शोथ |
50 |
148 |
कास (खाँसी) |
50 |
149 |
हिक्का (हिचकी) |
51 |
150 |
स्वरभेद (गला बैठना) |
51 |
151 |
श्लीपद (फीलपाँव) |
51 |
152 |
गण्डमाला |
52 |
153 |
विद्रधि |
52 |
154 |
नाड़ीब्रण (नासूर) |
52 |
155 |
प्रदर |
52 |
156 |
गर्भिणी-रोग |
53 |
157 |
सूतिका-रोग |
53 |
158 |
मुख-रोग |
53 |
159 |
कर्ण-रोग |
54 |
160 |
नासा-रोग |
54 |
161 |
शिरो-रोग |
54 |
162 |
नेत्र-रोग |
54 |
163 |
वातव्याधि |
55 |