एक वायलिन समंदर के किनारे
इस उपन्यास का नायक-केशव-हजारों साल पीछे छूट गई दुनिया से हमारी दुनिया में आया है । आया है एक लड़की से प्रेम करने की अटूट इच्छा लिये । वह लड़की उसे मिलती भी है, लेकिन त्रासदी यह कि वह उसकी हत्या कर डालता है !
तो जो व्यक्ति अपनी दुनिया से हमारी दुनिया में प्यार करने आया था, उसने हत्या क्यों की? यही है इस उपन्यास का मुख्य सवाल, जिसकाजवाब कृश्न चंदर ने अपने खास अंदाज में दिया है । इस प्रक्रिया में उनका यह बहुचर्चित उपन्यास वर्तमान सभ्यता के पूँजीवादी जीवन-मूल्यों पर तोप्रहार करता ही है, उन मूल्यों को भी उजागर करता है, जो मानव सभ्यता को निरंतर गतिशील बनाए हुए हैं । उनकी मान्यता है कि पुरानी दुनियाके सिद्धांतों से नई दुनिया को नहीं परखा जा सकता । नई दुनिया की स्त्री भी नई है-प्रेम के कबीलाई और सामंती मूल्य उसे स्वीकार नहीं । अब वहस्वतंत्र है । वास्तव में सतत परिवर्तनशील मूल्य-मान्यताओं का अंत:संघर्ष इस कथाकृति को जो ऊँचाई सौंपता है, वह अपने प्रभाव में आकर्षक भी है और मूल्यवान भी ।
कृश्नचंदर
जन्म : सन् 1941 ।
उर्दू कथा-साहित्य में अपनी अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित उपन्यासकार । प्रगतिशील और यथार्थवादी नजरिए से लिखे जानेवाले साहित्य के प्रमुख पक्षधरों में से एक ।
40 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित । फिल्म-कथा-लेखन और फिल्म-निर्देशन भी किया । भारत की प्राय: सभी प्रमुख भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद । साथ ही अंग्रेजी,रूसी, पोलिश, जर्मन, हंगेरियन, डेनिश तथा चीनी आदि विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित ।
प्रमुख उपन्यास : अन्नदाता हम वहशी हैं, एक गधे की आत्मकथा, तूफान की कलियों जब खेत जागे, आगे बावन पत्ते, एक वायलिन समदंर के किनारे, कगज की नाव मेरी यादो के किनारे, एक करोड की बोतल, गरजन की एक शाम, आदि ।
निधन : सन् 1971 |
एक वायलिन समंदर के किनारे
इस उपन्यास का नायक-केशव-हजारों साल पीछे छूट गई दुनिया से हमारी दुनिया में आया है । आया है एक लड़की से प्रेम करने की अटूट इच्छा लिये । वह लड़की उसे मिलती भी है, लेकिन त्रासदी यह कि वह उसकी हत्या कर डालता है !
तो जो व्यक्ति अपनी दुनिया से हमारी दुनिया में प्यार करने आया था, उसने हत्या क्यों की? यही है इस उपन्यास का मुख्य सवाल, जिसकाजवाब कृश्न चंदर ने अपने खास अंदाज में दिया है । इस प्रक्रिया में उनका यह बहुचर्चित उपन्यास वर्तमान सभ्यता के पूँजीवादी जीवन-मूल्यों पर तोप्रहार करता ही है, उन मूल्यों को भी उजागर करता है, जो मानव सभ्यता को निरंतर गतिशील बनाए हुए हैं । उनकी मान्यता है कि पुरानी दुनियाके सिद्धांतों से नई दुनिया को नहीं परखा जा सकता । नई दुनिया की स्त्री भी नई है-प्रेम के कबीलाई और सामंती मूल्य उसे स्वीकार नहीं । अब वहस्वतंत्र है । वास्तव में सतत परिवर्तनशील मूल्य-मान्यताओं का अंत:संघर्ष इस कथाकृति को जो ऊँचाई सौंपता है, वह अपने प्रभाव में आकर्षक भी है और मूल्यवान भी ।
कृश्नचंदर
जन्म : सन् 1941 ।
उर्दू कथा-साहित्य में अपनी अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित उपन्यासकार । प्रगतिशील और यथार्थवादी नजरिए से लिखे जानेवाले साहित्य के प्रमुख पक्षधरों में से एक ।
40 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित । फिल्म-कथा-लेखन और फिल्म-निर्देशन भी किया । भारत की प्राय: सभी प्रमुख भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद । साथ ही अंग्रेजी,रूसी, पोलिश, जर्मन, हंगेरियन, डेनिश तथा चीनी आदि विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित ।
प्रमुख उपन्यास : अन्नदाता हम वहशी हैं, एक गधे की आत्मकथा, तूफान की कलियों जब खेत जागे, आगे बावन पत्ते, एक वायलिन समदंर के किनारे, कगज की नाव मेरी यादो के किनारे, एक करोड की बोतल, गरजन की एक शाम, आदि ।
निधन : सन् 1971 |