पुस्तक परिचय
योग साधना स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा अपने गृहस्थ शिष्यों को लिखे पत्रों का संकलन है, जिसने कितने ही लोगों के जीवन में आनन्द की किरणें बिखेरी हैं । श्री स्वामीजी के ये पत्र हर एक व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत हैं । साधक की साधना का, गृहस्थ की उलझन का, मुमुक्षु की जिज्ञासा का समाधान योग साधना में प्राप्त होगा ।
अध्यात्म के कठिन पथ पर नयी दिशा, उत्साह, प्रेरणा, स्वास्थ्य एवं शान्ति देने के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है ।
लेखक परिचय
स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा ग्राम में 1923 में हुआ । 1943 में उन्हें ऋषिकेश में अपने गुरु स्वामी शिवानन्द के दर्शन हुए । 1947 में गुरु ने उन्हें परमहंस संन्याय में दीक्षित किया । 1956 में उन्होंने परिव्राजक संन्यासी के रूप में भ्रमण करने के लिए शिवानन्द आश्रम छोड़ दिया । तत्पश्चात् 1956 में ही उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय योग मित्र मण्डल एवं 1963 मे बिहार योग विद्यालय की स्थापना की । अगले 20 वर्षों तक वे योग के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में विश्व भ्रमण करते रहे । अस्सी से अधिक ग्रन्यों के प्रणेता स्वामीजी ने ग्राम्य विकास की भावना से 1984 में दातव्य संस्था शिवानन्द मठ की एवं योग पर वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से योग शोध संस्थान की स्थापना की । 1988 में अपने मिशन से अवकाश ले, क्षेत्र संन्यास अपनाकर सार्वभौम दृष्टि से परमहंस संन्यासी का जीवन अपना लिया है ।
प्रस्तावना
जीवन संग्राम में शान्ति एवं मानसिक संतुलन बनाये रखना सुखी जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है । ऋषि, महात्माओं ने सत्संग की महिमा गायी है । आधुनिक व्यस्त जीवन पद्धति में लोगों को सत्संग मिलना कठिन है, जीवन मशीनवत् हो गया है, कोई प्रेरणा नहीं, कोई दिशा नहीं, मन अशान्त, तन रोगी, गृहस्थी जंजाल लगने लगती है, ऐसी अवस्था में हजारों संतप्त और किंकर्तव्यविमूढ़ों को जीवन खे नयी दिशा, उत्साह, प्रेरणा, स्वास्थ्य एवं शान्ति देने के लिए सत्संग स्वरूप सद् साहित्य ही मदद दे सकता है ।
योग साधना स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा अपने गृहस्थ शिष्यों को डे पत्रों का संग्रह है, जिसने कितने ही लोगों के जीवन में आनन्द की किरणे बिखेरी है । श्री स्वामीजी के ये पत्र हर एक व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत है । साधक की साधना का, गृहस्थ की उलझन का, मुमुक्षु की जिज्ञासा का समाधान योग साधना में प्राप्त होगा ।
विषय सूची |
|
प्रस्तावना |
IX |
मैं कौन हूँ |
X |
विश्वप्रेम के नाम पत्र |
1 |
स्वामी सत्यव्रतानन्द के नाम पत्र |
113 |
सुशीला सहाय के नाम पत्र |
189 |
कैप्टन नरेन्द्र के नाम पत्र |
301 |
स्वामी धर्मशक्ति के नाम पत्र |
341 |
एक संन्यासी शिष्य को पत्रादेश |
435 |
पुस्तक परिचय
योग साधना स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा अपने गृहस्थ शिष्यों को लिखे पत्रों का संकलन है, जिसने कितने ही लोगों के जीवन में आनन्द की किरणें बिखेरी हैं । श्री स्वामीजी के ये पत्र हर एक व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत हैं । साधक की साधना का, गृहस्थ की उलझन का, मुमुक्षु की जिज्ञासा का समाधान योग साधना में प्राप्त होगा ।
अध्यात्म के कठिन पथ पर नयी दिशा, उत्साह, प्रेरणा, स्वास्थ्य एवं शान्ति देने के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है ।
लेखक परिचय
स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा ग्राम में 1923 में हुआ । 1943 में उन्हें ऋषिकेश में अपने गुरु स्वामी शिवानन्द के दर्शन हुए । 1947 में गुरु ने उन्हें परमहंस संन्याय में दीक्षित किया । 1956 में उन्होंने परिव्राजक संन्यासी के रूप में भ्रमण करने के लिए शिवानन्द आश्रम छोड़ दिया । तत्पश्चात् 1956 में ही उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय योग मित्र मण्डल एवं 1963 मे बिहार योग विद्यालय की स्थापना की । अगले 20 वर्षों तक वे योग के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में विश्व भ्रमण करते रहे । अस्सी से अधिक ग्रन्यों के प्रणेता स्वामीजी ने ग्राम्य विकास की भावना से 1984 में दातव्य संस्था शिवानन्द मठ की एवं योग पर वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से योग शोध संस्थान की स्थापना की । 1988 में अपने मिशन से अवकाश ले, क्षेत्र संन्यास अपनाकर सार्वभौम दृष्टि से परमहंस संन्यासी का जीवन अपना लिया है ।
प्रस्तावना
जीवन संग्राम में शान्ति एवं मानसिक संतुलन बनाये रखना सुखी जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है । ऋषि, महात्माओं ने सत्संग की महिमा गायी है । आधुनिक व्यस्त जीवन पद्धति में लोगों को सत्संग मिलना कठिन है, जीवन मशीनवत् हो गया है, कोई प्रेरणा नहीं, कोई दिशा नहीं, मन अशान्त, तन रोगी, गृहस्थी जंजाल लगने लगती है, ऐसी अवस्था में हजारों संतप्त और किंकर्तव्यविमूढ़ों को जीवन खे नयी दिशा, उत्साह, प्रेरणा, स्वास्थ्य एवं शान्ति देने के लिए सत्संग स्वरूप सद् साहित्य ही मदद दे सकता है ।
योग साधना स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा अपने गृहस्थ शिष्यों को डे पत्रों का संग्रह है, जिसने कितने ही लोगों के जीवन में आनन्द की किरणे बिखेरी है । श्री स्वामीजी के ये पत्र हर एक व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत है । साधक की साधना का, गृहस्थ की उलझन का, मुमुक्षु की जिज्ञासा का समाधान योग साधना में प्राप्त होगा ।
विषय सूची |
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प्रस्तावना |
IX |
मैं कौन हूँ |
X |
विश्वप्रेम के नाम पत्र |
1 |
स्वामी सत्यव्रतानन्द के नाम पत्र |
113 |
सुशीला सहाय के नाम पत्र |
189 |
कैप्टन नरेन्द्र के नाम पत्र |
301 |
स्वामी धर्मशक्ति के नाम पत्र |
341 |
एक संन्यासी शिष्य को पत्रादेश |
435 |