प्रकाशकका निवेदन
गांधी जब 1942-44 के बीच आगाखां महल, पूनामें नजरबन्द थे, तब उन्होंने ये प्रकरण लिखे थे। जैसा कि मूल पुस्तक हस्तलिखित प्रति बतलाती है, उन्होने 28-8-42 को ये प्रकरण लिखने शुरू: किये और 18-12-42 को इन्हें पूरा किया था । उनकी दृष्टिमें इस विषयका इतना महत्त्व था कि वे हमेशा इन्हें प्रेसमें देनेसे हिचकिचाते रहै । वे धीरज रखकर इन प्रकरणोंको बार-बार तब तक दोहराते रहे, जब तक इस विषय पर प्रकट किये गये अपने विचारोंसे उन्हें पूरा सन्तोष न हो गया । अगर उनका हमेशा बढनेवाला अनुभव इन प्रकरणोंमें कोई सुधार करनेकी प्रेरणा देता, तो वैसा करनेका उनका इरादा था । मूल पुस्तक गुजरातीमें लिखी गई थी, जिसका हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद गांधीजीने अपनी रहनुमाईमें डॉ० सुशीला नय्यरसे कराया था । घटा-बढाकर अंतिम रूप देनेकी दृष्टिसे गांधीजीने इन दौनों अनुवदोंको देख भी लिया था ।
इसलिए पाठक यह मान सकते हैं कि तन्दुरुस्तीके महत्त्वपूर्ण विषय पर गांधीजी अपने देशवासियोंसे और दुनियासे जो कुछ कहना चाहत थे, उसका अनुवाद खुद उन्होंने ही किया है । ईश्वरकी और उसके प्राणियोंकी सेवा गांधीजीके जीवनका पवित्र मिशन था और तन्दुरुस्तीके प्रश्नका अध्ययन उनकी दृष्टिमें उसी सेवाका अंग था ।
अनुक्रमणिका
3
विषय-सूचि
5
प्रस्तावना गांधीजी
15
पहला भाग
1
शरीर
2
हवा
4
पानी
6
खुराक
7
मसाले
16
चाय, कॉफी, और कोको
17
मादक पदार्थ
19
8
अफ़ीम
22
9
तम्बाकू
24
10
ब्रह्मचर्य
26
दूसरा भाग
पृथ्वी अर्थात मिट्टी
34
38
आकाश
45
तेज
49
वायु-हवा
50
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