मेरा प्राकृतिक आहार तक का साहसी अभियान
पका हुआ आहार उस शराब की लत की तरह है जिसके नशे में सम्पूर्ण सभ्यता सदियों सै डूबी हुई है। दिनों दिन यह लत बढ़ती जा रही है । नशे में धुत ऐसे समाज के सामने प्राकृतिक आहार की बात करना शराबी को मद्य निषेध का पाठ पढ़ाने के बराबर है ।
पक्वाहार का नशा एक ऐसा भयंकर दलदल है जिससे निकलना कठिन है । शराब छोडना, अधार्मिक से धार्मिक होना, चरित्रवान होना शायद बहुत सरल है परन्तु पके हुए आहार के पुराने स्वाद और आदतों को छोड़ना कठिनतम है ।
अध्यात्म की ऊँचाइयों के शिखर पर पहुँचकर, सब नशों से मुक्त होकर स्वय महात्मा भी ऋ नशे से मुक्त नहीं हो पाते हैं । बुद्धि के स्तर पर अमृत की सारी खूबियों को समझकर भी, मानकर भी, व्यावहारिकता में व्यक्ति पुराने नशे से मुक्त नहीं हो पाते हैं । जब चारों तरफ हर इन्सान इस नशे में डूबा है तो इसे न अपनाने वाला एक अकेला व्यक्ति इस दलदल में अपने आपको असहाय महसूस करता है । चारों तरफ एक ही प्रकार के नशेबाजों को देखकर, वह व्यक्ति पागल सा नजर आता है और नशेबाजों की भीड़ में वह स्वय को भी ऐसा ही समझता है।
ऐसे दलदल में से निकल कर प्राकृतिक आहार रूपी आरोग्य के सागर तक पहुँचने का मार्ग दिखने में अत्यन्त सरल होते हुए भी कितना दुर्गम होगा, यह हर व्यक्ति समझ सकता है ।
इसलिए मैंने साहसी अभियान कहा है, एक दुर्गम यात्रा कहा है । इस यात्रा के दरम्यान आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों के बारे में चर्चा करना बहुत जरूरी है।
अनुक्रमणिका
1
2
मानव का सही प्राकृतिक आहार
7
3
असाध्य रोगों में प्राकृतिक आहार के अचूक लाभ
16
4
प्राकृतिक आहार के अद्भुत चमत्कार
21
5
बच्चो के लिए प्राकृतिक आहार
30
6
प्राकृतिक आहार सम्बन्धी गलतफहमियाँ प्रश्नोत्तर
36
रोगकारक आहार (माँसाहार, दूध, अनाज, दालें, मसाले, शहद)
50
8
महात्मा रोगी क्यों?
63
9
दैनिक आहार
71
10
कच्चा खाने योग्य प्राकृतिक आहार की सूची
76
11
वजन बढ़ाने वाला आहार
79
12
विविध रोगों में प्राकृतिक आहार
86
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